हाय रे कलयुगी बेटा-पोता : यह अभागी मां अपनी कोख पर रोए कि तिरस्कार पर आंसू बहाये!

यह अभागी मां अपनी कोख पर रोए कि  समाज में  बुजुर्गों के तिरस्कार पर आंसू बहाये.  कहा जाता है कि बेटे की पीड़ा एक मां  समझ सकती है.  समझती भी है.  बच्चे जब बड़े होते हैं, जब बुजुर्गों को उनके सहारे की जरूरत होती है तो उन्हें बेसहारा छोड़कर निश्चित  हो जाते है.

हाय रे कलयुगी बेटा-पोता : यह अभागी मां अपनी कोख पर रोए कि तिरस्कार पर आंसू बहाये!