धनबाद(DHANBAD): झारखंड के 28 आदिवासी आरक्षित विधानसभा सीटें भाजपा के कई आदिवासी नेताओं की किस्मत बदल सकती है, तो कई की किस्मत में ताला भी लगा सकती है. भाजपा की जो योजना है,उसके मुताबिक आदिवासी सीटों पर भाजपा के झारखंड के बड़े नेताओं को ही लड़ाया जाए. इससे कई नेताओं की किस्मत बदल सकती है, कुछ चुनाव से पीछे हट सकते हैं तो कई सामान्य सीट की ओर जा सकते है. झारखंड के 28 आदिवासी आरक्षित विधानसभा सीटों पर इस बार भाजपा का फोकस है. सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस बार लगभग सभी आदिवासी सीटों पर भाजपा के बड़े और मजबूत नेताओं को उतारने की तैयारी है. खाका लगभग खींचा जा चुका है, अब उसे सिर्फ अमलीजामा पहनाना है.
आदिवासी नेताओं की सीटें बदल सकती है
अगर ऐसा हुआ तो झारखंड के कई बड़े आदिवासी नेताओं की सीटें बदल जाएगी. यह बात तो पहले से ही चर्चा में है कि भाजपा इस बार अपने पुराने और बड़े नेताओं को चुनाव में उतारेगी, जो फिलहाल मुख्य धारा से अलग हो गए है. लोकसभा चुनाव में भी उन्हें तरजीह नहीं मिली. ऐसे नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व सांसद रवींद्र राय, पूर्व सांसद रविंद्र पांडे सहित अन्य नेताओं के नाम गिनाये जा रहे है. झारखंड भाजपा के चुनाव सह प्रभारी असम के मुख्यमंत्री ने शनिवार को रांची में भी इसके संकेत दिए है. पिछले एक सप्ताह से राजनीतिक क्षेत्र में भी इसके संकेत दिख रहे है. इस योजना पर कई नेताओं की नाराजगी की बाते भी सामने आ रही है. वरिष्ठ नेता अगर चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो उसका असर कुछ और होगा. वैसे सह प्रभारी हिमंता विश्व सरमा के इस कथन से कम से कम भाजपा के कद्दावर सीटिंग विधायकों को बड़ी राहत मिली होगी. उन्होंने साफ कर दिया है कि चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा जाएगा.
एक सीट पर दावेदारों की है लंबी लाइन
फिलहाल स्थिति ऐसी है कि एक सीट पर कई दावेदार है. हालांकि यह दावेदारी कोई पहली बार नहीं हुई है. इसके पहले भी दावेदारों की संख्या कम नहीं थी. इस बार तो कई सीटिंग विधायकों को नए-नए दावेदार लगातार चुनौती दे रहे है. लेकिन धीरे-धीरे यह साफ होने लगा है कि जो सीटिंग विधायक सीट जीत सकते है, उन पर कोई खतरा नहीं है. यह अलग बात है कि झारखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर संगठन भी काम कर रहा है. संगठन भी अपने ढंग से जानकारी जुटा रहा है. भाजपा यह जानती है कि आदिवासी सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर किये बिना वह झारखण्ड में सरकार नहीं बना सकती है. झारखंड में विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश भाजपा पेंडिंग कामों को निपटा रही है. साथ ही साथ विधानसभा चुनाव के लिए दावेदारों की सूची और एक्सेप्टेंस का आंकड़ा भी जुटाया जा रहा है.
झारखंड बीजेपी विधानसभा चुनाव को लेकर बहुत ही सीरियस है
झारखंड बीजेपी इस बार विधानसभा चुनाव को लेकर बहुत ही सीरियस है. फिर से सत्ता में आने के लिए कोशिशें तेज है. चर्चा तो यह है कि इस बार कुछ नए ढंग से भाजपा चुनाव लड़ सकती है. पार्टी से नाराज चल रहे पूर्व सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री रहे लोगों को भी चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. इससे पार्टी के मुख्य धारा से जो लोग अलग होते जा रहे हैं, उनका पार्टी को सपोर्ट मिलेगा. कारण तो यह भी गिनाये जा रहे हैं कि चुनाव से पहले ही शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री को चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी भाजपा इसलिए बना दी, कि उन्हें काम करने का मौका मिलेगा. जो लोग कद्दावर हैं लेकिन राजनीति के शिकार हो गए हैं, उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की भी योजना है. ऐसा प्रयास संथाल में भी चल रहा है तो कोल्हान में भी चल रहा है. कोयलांचल और अगल-बगल के जिलों में भी चल रहा है. इस बार तो जयराम महतो की पार्टी भीं चुनौती देने को खड़ी है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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