मंत्र साधना और सिद्धि प्राप्ति के लिए नवरात्र के सांतवें दिन रात्रि में मां कालरात्रि की क्यों की जाती है पूजा, जानिए रिपोर्ट में


या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ॐ कालरात्रि देव्ये नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे
नवरात्र का आज सातवां दिन है और आज माता दुर्गा के काली रूप की पूजा की जाती है. इस दिन को महासप्तमी भी कहा जाता है. मां कालरात्रि की पूजा करने से भूतप्रेत भी भाग जाते हैं. मां कालरात्रि को बेहद शक्तिशाली माना जाता हैं, जो लोग विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करते हैं, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है. इसीलिए माता काली को शुभकंरी माता के नाम से भी पुकारा जाता हैं. मां कालरात्रि की पूजा करने से करियर संबंधी आने वाली सभी प्रकार की दिक्कतें दूर होती हैं. वहीं जिन लोगों को अनावश्यक भय बना रहता है उन्हें भी मां कालरात्रि की पूजा करने से आराम मिलता है. जिन लोगों को आग, जीव-जंतु, भूतप्रेत का भय लगता है उन्हें मां कालरात्रि की पूजा जरुर करनी चाहिए.
माता का स्वरूप
माता के स्वरूप की बात करें तो मां कालरात्रि देखने में बहुत ही भयानक दिखती है लेकिन माता हृदय बहुत ही कोमल है. काली मां के नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं. माता का वाहन गर्धव यानि गधा है. मां कालरात्रि का दायां हाथ हमेशा उपर की ओर उठा रहता है, इसका अर्थ मां सभी को आशीर्वाद दे रही हैं. मां कालरात्रि के नीचले दाहिने हाथ की मुद्रा भक्तों के भय को दूर करने वाली है. उनके बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र है. निचले बाएं हाथ में कटार है.
पूजा की विधि
मां कालरात्रि की विशेष पूजा रात्रि में करने का नियम है. सारे तांत्रिक अपनी मंत्र साधना के लिए इस दिन का वर्ष भर इंतजार करते हैं. मान्यता है कि इस दिन मंत्र सिद्ध होते हैं. इसीलिए सप्तमी की रात्रि को सिद्धियों की रात भी कही गई है. मां कालरात्रि की पूजा आरंभ करने से पहले सिंदूर, लाल पुष्प, रोली लगाया जाता है. माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाएं. मां को लाल फूल अर्पित करें. साथ ही गुड़ का भोग लगाएं. इसके बाद मां के मन्त्रों का जाप या सप्तशती का पाठ करें. इस दिन मां की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है. माँ को गुड का भोग अवश्य लगायें.
कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बहुत बड़ा राक्षस था, जिसका नाम रक्तबीज था. इस राक्षस ने लोगों के साथ देवताओं को भी परेशान कर रखा था. रक्तबीज की विशेषता थी कि जब उसके खून की बूंद धरती पर गिरती थी तो बिलकुल उसके जैसा हि एक और राक्षस बन जाता था. इसकी शिकायत लेकर सभी देवता और ऋषी मुनी भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव जानते थे कि इस दानव का अंत माता पार्वती ही कर सकती हैं. भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया. इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति संधान किया.जिससे निकली तेज ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब मां काली ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया वैसे ही उसके शरीर से निकलने वाले सारे रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया. इस तरह से देवी मां ने सबका गला काटते हुए दानव रक्तबीज का अंत किया. रक्तबीज का वध करने वाला माता पार्वती के इसी रूप को कालरात्रि मां के नाम से जाना जाता है.
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