दुमका(GUMLA):सिक्के की खनक की दुनियां दीवानी होती है.हर किसी की बचपन के खजाने की अनमोल धरोहर खनकते सिक्के हुआ करते थे, लेकिन वक्त का सितम देखिए इन दिनों दुमका के बाजार से सिक्के की खनक दूर होने लगी है.भारत में सिक्का का इतिहास काफी पुराना रहा है जिसका स्वरूप समय समय पर बदलता रहा है.30 जून 2011 को सरकार ने चवन्नी और उससे कम मूल्य तक के सारे सिक्के को बंद कर दिया.प्रचलन में अधिक मूल्य के सिक्के आये तो कम मूल्य के सिक्के इतिहास के पन्नो तक सिमट कर रह गया.
सरैयाहाट सहित कुछ प्रखंडों में दो रुपये मूल्य के सिक्के प्रचलन में नहीं है
सरकार ने भले ही चवन्नी और उससे कम मूल्य के सिक्के को बंद किया हो लेकिन दुमका जिला के सरैयाहाट सहित कुछ प्रखंडों में दो रुपये मूल्य के सिक्के प्रचलन में नहीं है. 2 तक का सिक्का ग्राहक से दुकानदार नहीं लेते तो दुकानदार से थोक विक्रेता नहीं लेते। नतीजा यह प्रचलन से बाहर होता जा रहा है और इस पर प्रशासन या फिर बैंक की नजर नहीं है.सरैयाहाट में यदि आप दुकानदार को दो रुपए तक का सिक्का नहीं ले रहा है और यदि समान लेने के बाद दुकानदार को 2 ग्राहक को वापस करना है, तो वे आपको 2 का टॉफी देकर चलता कर देते हैं. परेशानी दोनों की है, इसके बाबजूद देखा जाए तो दुकानदार और ग्राहक की मौन सहमति से 2 तक के सिक्के का प्रचलन बाजार में बंद हो गया है.
ग्राहक का कहना है कि पाई पाई जोड़कर परिवार चलानेवालों पर बोझ बढ़ गया है
सरैयाहाट के दुकानदार का कहना है कि हजारों सिक्के जमा है, जिसे थोक विक्रेता नहीं स्वीकार्य करता है. इसलिए वे ग्राहकों से 2 तक का सिक्का नहीं लेते वहीं ग्राहक का कहना है कि पाई पाई जोड़कर घर परिवार चलाने वालों पर अतिरिक्त खर्च का बोझ बढ़ गया है.अब हम आपको सरैयाहाट से सटे जरमुंडी प्रखंड के बाबा बासुकीनाथ धाम के आस पास का नजारा दिखाते है.यहां कई वर्षों से 1 का नया सिक्का प्रचलन में नहीं है.नतीजा यह रास्तों पर गिरा मिलेगा औऱ उसे कोई उठाने वाला भी नहीं. 1 का पुराना सिक्का और 2 का सिक्का प्रचलन में तो जरूर है. लेकिन प्रचलन आम नहीं है. एक चक्र के रूप में यह चलता है.बाबा बासुकीनाथ धाम होने की वजह से यदि देश विदेश से श्रद्धालु आते हैं तो कई प्रदेशों से भिक्षु भी यहां आते है.
श्रद्धालु और भिक्षु के बीच एक चक्र के रूप में इन सिक्कों का प्रचलन होता है
श्रद्धालु और भिक्षु के बीच एक चक्र के रूप में इन सिक्कों का प्रचलन होता है.धार्मिक स्थल पर दान करने के लिए श्रद्धालु को सिक्का चाहिए.किसी एक भिक्षु को कागजी नोट थमा कर उनसे सिक्का लेते हैं, और फिर वही सिक्का भिक्षुओं के बीच वितरित कर दिया जाता है. सहरसा से आकर बासुकीनाथ मंदिर के सामने भिक्षाटन करने वाली लुकडी माई बताती है कि जब ज्यादा सिक्का जमा हो जाता है, तो वे इन सिक्कों को अपने घर सहरसा भेज देती है. जहां यह प्रचलन में है.सवाल उठता है कि सरकार ने 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्के को बंद किया है.इसके बाबजूद 50 पैसे का सिक्का वर्षो से प्रचलन में नहीं है.अब एक और दो रुपये के सिक्के पर भी संकट के बादल है. इस स्थिति में जरूरत है प्रसासनिक सख्ती की ताकि बाजार में सिक्के की खनक बरकरार रहे और इसमें अहम भूमिका बैंकों की होगी.
रिपोर्ट-पंचम झा
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