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गुमला(GUMLA) : कौन कहता है आकाश में सूराख नहीं हो सकता/एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ! दुष्यंत की यह पंक्तियां साकार कर दिखाई है झारखंड के सुदूर आदिवासी इलाके की एक ऐसी महिला ने जिसके पास न तो बड़ी बड़ी डिग्री थी और न अधिक संसाधन. पर आज वे न केवल खुद आत्मनिर्भर हैं, बल्कि आसपास की कई अन्य महिलाओं को उन्होंने रोजगार दिया है. पलायन और मानव तस्करी के लिए बदनाम गुमला में ऐसी सार्थक पहल की तारीफ भी जिला प्रशासन से राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने भी कई दफे की. बात हो रही है गुमला जैसे आदिवासी बहुल इलाके के बिशुनपुर ब्लॉक की रहने वाली अनिता देवी की. अनिता देवी बीए की पढ़ाई के बाद निजी स्थानों पर काम करना शुरू किया. लेकिन वहां मिलने वाले वेतन और माहौल से बहुत संतुष्थाट नहीं थीं. इसके बाद उन्होंने स्वरोजगार की सोची. आसपास गौर किया तो देखा कि ग्रामीण क्षेत्रो में जामुन और आंवला सहित अन्य सामान काफी मात्रा में मौजूद हैं, लेकिन लोग उसका समुचित उपयोग नहीं करते हैं. इसके बाद उसने कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेने के बाद अचार और जामुन का सिरका और जामुन का चूर्ण बनाना शुरू किया. ये काम शुरू होते ही उनके साथ कई महिलाएं जुड़ने लगीं. इससे सबकी अच्छी कमाई शुरू हो गयी. आज वे गुमला से लेकर दिल्ली तक स्टॉल लगाकर सामान बेचती हैं.
अनिता के पति भी दे रहे हैं उनका साथ
अनीता के इस काम मे उसके पति अरुण गिरी भी पूरा सहयोग करते हैं. बकौल अनिता, पहले पति ने स्वरोजगार का विरोध किया, पर जब काम एक बार शुरू हो गया तो उन्हें भी खुद के साथ आस-पास के लोगों का हो रहा आर्थिक विकास रास आने लगा. इसके बाद वे गांव और जंगल से कच्चा माल लाकर अपनी पत्नी को देते हैं और उनकी पत्नी उससे सामान बनाकर बेचती हैं. इससे उनकी अच्छी कमाई हो रही है. वहीं गांव की कई महिलाओं ने कहा कि उन्हें भी अनिता ने काम दिया है जिसके बाद उन्हें अब काम के लिए बाहर नही जाना पड़ता है. अनिता की मेहनत ने साबित कर दिया कि सही लगन से मेहनत की जाए तो कोई काम नामुमकिन नहीं होता है. आज अनिता दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
रिपोर्ट: सुशील कुमार सिंह, गुमला
Thenewspost - Jharkhand
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