धनबाद(DHANBAD): झारखंड में पहले चरण का चुनाव 13 मई को हुआ था. अब अंतिम चरण का चुनाव पहली जून को होगा. संथाल परगना के तीन सीटों पर यह चुनाव होगा. आज इन सीटों के लिए शाम 5 बजे चुनाव का शोर थम जाएगा.
पहली जून को ही तय हो जायेगा इन सभी का भाग्य
2024 में संथाल परगना का चुनाव परिणाम यह बताएगा कि झारखंड में आदिवासी नेता भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी है या हेमंत सोरेन को जेल जाने के बाद राजनीतिक तौर पर मजबूती से सामने आई उनकी पत्नी कल्पना सोरेन आदिवासियों की नेता बनेंगी. संथाल परगना का चुनाव इन दोनों नेताओं के भविष्य से भी जुड़ेगा .शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन की भी किस्मत तय करेगा तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद विजय हांसदा का भी भाग्य तय करेगा. फिर झारखंड के चर्चित सांसद निशिकांत दुबे का भी भाग्य पहली जून को ही तय हो जाएगा.
संथाल में भाजपा और इंडिया ब्लॉक दोनों झोंक रहे ताकत
संथाल में इस बार लड़ाई कड़ी है. भाजपा ने ताकत झोंक रखी है तो इंडिया ब्लॉक भी पीछे नहीं है. ताबड़तोड़ जनसभाएं हो रही है .हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन कह रही है कि आपके वोट में ही जेल के ताले की चाबी है. आप अगर समर्थन देंगे तो हेमंत सोरेन जेल से बाहर निकल सकते हैं. राजमहल लोकसभा सीट के भीतर आने वाले बरहेट विधानसभा से हेमंत सोरेन विधायक भी हैं. वैसे भी संथाल झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ माना जाता है. 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने संथाल परगना में पूरी ताकत झोंकी बावजूद उसे आशातीत सफलता नहीं मिली. कहा जाता है कि संथाल परगना में जो उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, उनमें से कई दूसरे दलों से आकर चुनावी राजनीति में शामिल हुए हैं. गोड्डा से भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे और दुमका से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी नलिन सोरेन को अगर छोड़ दिया जाए, तो दुमका संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन का मामला भी दल बदल से जुड़ा हुआ है. सीता सोरेन जामा विधानसभा क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा की टिकट पर तीन बार विधायक बनी. पूरा परिवार झारखंड मुक्ति मोर्चा में रहा. लेकिन लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का साथ छोड़ दिया. भाजपा में शामिल हो गई और दुमका संसदीय क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रही है. उनका मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा के नलिन सोरेन से है.
राजमहल लोकसभा सीट पर भी कांटे की टक्कर
राजमहल लोकसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी विजय हांसदा कांग्रेसी थे. उनके पिता थॉमस हांसदा राजमहल संसदीय क्षेत्र से दो बार सांसद चुने गए थे. पिता के निधन के बाद विजय हांसदा कांग्रेस से जुड़े रहे. लेकिन बाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा में आ गए. झारखंड मुक्ति मोर्चा की टिकट पर 2014 और 2019 में राजमहल से चुनाव जीते. यहां उनका मुकाबला भाजपा के ताला मरांडी से है, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के ही बागी विधायक लो बिन हेंब्रम भी यहां मैदान में डटे हुए हैं. देखना होगा कि लोबिन हेंब्रम को लोग कितना समर्थन देते हैं.
संथाल का चुनाव साबित करेगा झारखंड में कौन है आदिवासी नेता
इसी तरह गोड्डा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव की राजनीति भी दल बदल से जुड़ी हुई है. झारखंड गठन के समय प्रदीप यादव भाजपा के विधायक थे. 2002 में उपचुनाव हुआ तो वह भाजपा के टिकट पर गोड्डा से सांसद बने. इसके बाद प्रदीप यादव भाजपा को छोड़कर बाबूलाल मरांडी की पार्टी में शामिल हो गए. कुछ सालों बाद बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन प्रदीप यादव ने अलग राह पकड़ ली. और कांग्रेस में शामिल हो गए. जो भी हो लेकिन संथाल का चुनाव यह साबित करेगा की झारखंड में आदिवासी नेता कौन है या किसे लोग पसंद कर रहे हैं. यह बात भी सच है कि 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद झारखंड की राजनीति की दशा और दिशा भी बदल सकती है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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