दुमका (DUMKA): देश में लोक सभा चुनाव सम्पन्न हो गया है. 10 वर्षो तक केंद्र में सत्ता सुख भोगने वाली भाजपा को भी स्पष्ट जनादेश नहीं मिला. 400 पार के नारे हवा हवाई साबित हुआ. वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए कह सकते हैं कि एनडीए गठबंधन की सरकार बनने जा रही है.
आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासी ने नकारा भाजपा को
झारखंड के चुनाव परिणाम देखें तो कुल 14 में से एनडीए गठबंधन को 9 सीट पर संतोष करना पड़ा, जिसमें एक सीट आजसू और 8 सीट पर कमल खिला. शेष 5 सीट इंडी गठबंधन के खाते में गया. जबकि वर्ष 2014 और 2019 क चुनाव में एनडीए गठबंधन को 12 सीट मिला था. इस बार के चुनाव परिणाम का सबसे चौकाने वाला परिणाम यह है कि सभी एसटी के लिए सुरक्षित सभी 5 सीटों पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा.
सवाल उठता है कि आदिवासी बाहुल्य झारखंड राज्य में आदिवासियों ने भाजपा को क्यों नकार दिया? केंद्र में लगातार 10 वर्षो तक और राज्य में 2014 से 2019 तक सत्ता में रहने के बाबजूद आदिवासी के दिल में जगह बनाने में भाजपा नाकाम साबित हुई.
चुनाव से पूर्व भाजपा ने किए कई प्रयोग
लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने कई प्रयोग किए. कांग्रेस से गीता तो झामुमो से सीता को गुटबाजी को समाप्त करने के उद्देश्य से पूर्व सीएम रघुवर दास को राज्य की राजनीति से दूर करते हुए राज्यपाल बनाकर ओडिसा भेज दिया. दीपक प्रकाश की जगह घर वापसी करने वाले चर्चित आदिवासी चेहरा बाबूलाल मरांडी को प्रदेश भाजपा की कमान सौपा. उम्मीद थी कि बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बेहतर चुनाव परिणाम आएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
आदिवासी समाज बाबूलाल मरांडी को अपना नेता मानने के लिए नहीं है तैयार!
बाबूलाल मरांडी झारखंड भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्र में मंत्री बनने वाले बाबूलाल मरांडी को अलग झारखंड राज्य बनने के बाद पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन बाबूलाल अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. अर्जुन मुंडा की ताजपोशी हुई. भाजपा का अंतर्कलह सतह पर आ गया. बाबूलाल ने भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी बनाया. एक दशक से ज्यादा समय तक झाविमो सुप्रीमो बने रहे. 2009 और 2014 क विधान सभा चुनाव में अपेक्षित सफलता भी मिली, लेकिन आखिरकार 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद झाविमो का भाजपा में विलय कर लिया. घर वापसी के बाद भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी, लेकिन 2024 के लोक सभा चुनाव में बाबूलाल का जादू नहीं चला. राज्य के एसटी के लिए सुरक्षित सभी 5 सीटों पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा.
अपनी कर्मभूमी में भी पार्टी प्रत्याशी की जीत सुनश्चित नहीं करवा पाए बाबूलाल मरांडी
दुमका भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की कर्मभूमी रही है. 1998 और 1999 का लोक सभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने दुमका सीट से जीत दर्ज की थी. दिसोम गुरु शीबू सोरेन को पराजित कर सांसद बने बाबूलाल मरांडी को आदिवासी समाज का बड़ा चेहरा माना जाने लगा. घर वापसी के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने पर बाबूलाल मरांडी संथाल परगना प्रमंडल के दुमका औऱ राजमहल का लगातार दौरा करते रहे. यह प्रयास किया गया कि झामुमो के अभेद्य किला राजमहल सीट पर सेंधमारी करते हुए दुमका सीट पर दबदबा कायम रखा जाए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राजमहल तो दूर अपनी कर्मभूमी दुमका सीट पर भी बाबूलाल मरांडी पार्टी प्रत्याशी को जीत नहीं दिलवा पाए.
लोकसभा चुनाव बाबूलाल मरांडी के लिए थी अग्निपरीक्षा
वर्ष 2024 का लोक सभा चुनाव भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. लेकिन इस परीक्षा में बाबूलाल मरांडी कहीं से सफल नजर आते नहीं दिख रहे. राज्य के सभी एसटी सुरक्षित सीट पर भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा. निश्चित रूप से इस हार का मंथन पार्टी भी करेगी क्योंकि चंद महीने बाद ही झारखंड में विधान सभा का चुनाव होना है.
रिपोर्ट. पंचम झा
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