झारखंड के सारंडा जंगल पर क्यों मचा है बवाल ! सुप्रीम कोर्ट का निर्देश सरकार इसे बनाए पशु - पक्षियों का अभ्यारण


टीएनपी डेस्क(TNP DESK):सारंडा के जंगल इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है जिसकी वजह से झारखंड की राजनीति भी काफी ज्यादा गरमाई हुई है दअरसल झारखंड के प्रसिद्ध सारंडा वन क्षेत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी (Wildlife Sanctuary) घोषित किया जाए. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 13 नवंबर को यह आदेश जारी किया. न्यायालय ने राज्य सरकार के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने 31,468.25 हेक्टेयर के स्थान पर केवल 24,941 हेक्टेयर क्षेत्र को सैंक्चुअरी घोषित करने की अनुमति मांगी थी.
लगातार खनन से वन्य जीवों का निवास क्षेत्र प्रभावित
आपको बताये कि हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब झारखंड की राजनीति भी गरमा चुकी है.क्योंकि सारंडा का जंगल लंबे समय से खनन, अवैध कटाई और पर्यावरणीय क्षति का केंद्र रहा है. कई पर्यावरण संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि इस जंगल को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, क्योंकि लगातार खनन से वन्य जीवों का निवास क्षेत्र प्रभावित हो रहा है.
सारंडा का जंगल एक इको सेंसिटिव जोन है
दरसअल सारंडा का जंगल एक इको सेंसिटिव जोन है जहां दुर्लभ पक्षी हाथी और ना जाने कई दुर्लभ जानवर की प्रजाती निवास करती है.लेकिन खनन की वजह से यहां के पशु पक्षियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है इसको देखते हुए झारखंड सरकार ने आदेश दिया है कि इसे वन्यजीव सेंचुरी घोषित की जाए.
झारखंड सरकार को कई योजना तैयार करनी होगी
कोर्ट के आदेश के बाद अब झारखंड सरकार को कई योजना तैयार करनी होगी जिसमे वैज्ञानिक सर्वे और सीमांकन वन्यजीव संरक्षण का प्लान,खनन क्षेत्रों की समीक्षा,प्रभावित गांवों के लिए पुनर्वास नीति अभ्यारण्य अधिसूचना जारी करना होगा.
लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था
सारंडा वन क्षेत्र को लेकर मामला लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में लंबित था. 27 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब अदालत ने अपना निर्णय सुनाते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह पूरे 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को ही वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी घोषित करे, ताकि वहां की समृद्ध जैव विविधता और पारिस्थितिकी को संरक्षित किया जा सके. यह फैसला न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश में वन संरक्षण और पर्यावरण नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल माना जा रहा है.
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