दुमका(DUMKA): कोल्हान टाइगर के रूप में जाने, जाने वाले पूर्व सीएम चंपाई सोरेन को लेकर विगत 15 दिनों से झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का जो माहौल था, वो फिलहाल शांत हो गया है. जय श्री राम के उद्घोष के साथ कोल्हान टाइगर कमल पर सवार होकर भाजपा का दामन थाम लिया है. रांची में आयोजित मिलन समारोह में अपने संबोधन के दौरान चंपाई सोरेन ना केवल झामुमो बल्कि कांग्रेस पर भी हमलावर नजर आए. अब चौक चौराहे पर इस बात की चर्चा हो रही है कि चंपाई के इस कदम से आगामी चुनाव में किसको फायदा होगा और किसको नुकसान.
आगामी विधानसभा चुनाव झामुमो और भाजपा दोनों के लिए है अहम
चंद महीने बाद झारखंड में विधान सभा का चुनाव होना है. चुनाव की तैयारी में हरेक राजनीतिक दल लगा हुआ है. अमूमन चुनाव पूर्व जोड़ तोड़ की राजनीति भी राजनीतिक दलों के लिए चुनाव तैयारी का अहम हिस्सा माना जाता है. आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा और झामुमो दोनों के लिए काफी अहम माना जाता है. एक तरफ जहां झामुमो दोबारा सत्ता में बने रहने के लिए नित नई घोषणा कर रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा 5 वर्ष बाद सत्ता पाने के लिए जमकर पसीना बहा रही है.
संताल परगना में झामुमो छोड़ने वालों का अनुभए नहीं रहा है सुखद
चंपाई सोरेन के भाजपा में आने से किस दल का फायदा होगा और किसको नुकसान यह तो चुनाव परिणाम बताएगा, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में दल छोड़ने वालों का अनुभव बेहतर नहीं रहा है. खासकर संताल परगना प्रमंडल में झामुमो छोड़ने वाले अधिकांश नेताओं को घर वापसी करनी पड़ी है. झामुमो सुप्रीमो शीबू सोरेन के साथ अलग झारखंड राज्य के लिए चलाए गए आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले सूरज मंडल का राजनीतिक सूरज अस्त हो चुका है. झामुमो छोड़ने वाले साइमन मरांडी और प्रो स्टीफन मरांडी का राजनीतिक बनवास तब समाप्त हुआ जब इन लोगों ने घरवापसी की. बर्षों तक भाजपा में भविष्य तलाशने के बाद आखिरकार हेमलाल मुर्मू घर वापसी करते हुए झामुमो का दामन थाम लिया. सोरेन परिवार की बड़ी पुत्रवधू होने के बाबजूद झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामने वाली सीता सोरेन को दुमका लोक सभा सीट से पराजय का सामना करना पड़ा.
संताल परगना से बाहर सीएम रहते शीबू सोरेन को करना पड़ा था पराजय का सामना
संताल परगना प्रमंडल झामुमो का गढ़ माना जाता है, जहां दिशोम गुरु शीबू सोरेन एक चेहरा है, तो तीर कमान निशान. जिसके दम पर झामुमो का परचम लहराता रहा है. समय-समय पर भाजपा यहां सेंधमारी करने में सफल होती है. लेकिन अगर संताल परगना प्रमंडल से बाहर निकल कर बात करें तो मुख्यमंत्री रहते शीबू सोरेन को तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था. इस स्थिति में सवाल उठता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन फैक्टर भाजपा के पक्ष में कितना कारगर होगें
टाइगर के भाजपा में आने से क्या कोल्हान में खिल पायेगा कमल!
कोल्हान टाइगर कहे जाने वाले चंपाई सोरेन 34 वर्षों तक झामुमो के साथ जुड़े रहे. 2005 में पहली बार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे. उन्होंने विधायक से लेकर मंत्री और सीएम तक का सफर तय करने के बाद झामुमो को बाय बाय बोल दिया. वहीं भाजपा में चंपाई सोरेन के शामिल होते ही पार्टी नेताओं ने कहा कि टाइगर अभी जिंदा है. टाइगर में कितना दम खम बचा है, यह आगामी विधान सभा चुनाव में पता चलेगा. कोल्हान में मदद एक सीट पर जीत हासिल करने के लिए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को तरसना पड़ा था. टाइगर के आने के बाद कोल्हान प्रमंडल में कितना कमल खिलेगा इसका इंतजार सभी को है.
रिपोर्ट: पंचम झा
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