रांची(RANCHI): नियोजन नीति को लेकर उठा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा एक ओर भाजपा ने इस मुद्दे पर जहां सरकार की घेराबंदी कर रखी है, वहीं हेमंत सोरेन आश्वासन पर आश्वासन दे रहे हैं कि इसी नियोजन नीति को वो लागू कर युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराएंगे. बता दें हेमंत सोरेन द्वारा लाए गए नियोजन नीति को झारखंड हाई कोर्ट रद्द कर चुका है. ऐसे में सीएम कौन सी जादू की छड़ी घुमा कर लोगों को इसी नियोजन नीति पर रोजगार उपलब्ध कराएंगे इसका तो पता नहीं लेकिन बड़ी बात ये है कि झारखंड के समकालीन ही बने छत्तीसगढ़ मे बेरोजगारी दर सबसे कम पाई गई है. जी हां छत्तीसगढ़ की बेरोजगारी दर लगातार कम होती जा रही है. बात दें पिछले कई महीनों से पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ लगातार देश में सबसे कम बेरोजगारी दर वाले राज्य की उपलब्धि हासिल करता आया है. जुलाई माह में भी राज्य की बेरोजगारी दर मात्र 0.8 प्रतिशत रही, जबकि देश की औसत बेरोजगारी दर 6.9 प्रतिशत दर्ज की गई थी. वहां स्थानीयता और नियोजन नीति के अनुसार जिला स्तर पर निकली जानेवाली तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में छतीसगढ़ के स्थानीय निवासी ही आवेदन कर सकते है. व्यावसायिक परीक्षा मण्डल परीक्षा आयोजित करता है. राज्य स्तर पर आयोजित होनेवाली नियुक्ति मे 58 परसेंट आरक्षण का प्रावधान है इसमें 32 परसेंट एस टी 12 प्रतिशत एस सी और 14 प्रतिशत ओबीसी के लिए आरक्षित है. बता दें . छत्तीसगढ़ की स्थानीयता नीति के अनुसार राज्य में पैदा लेने वाले, 15 साल से राज्य में रहने वाले और तीन वर्ष तक लगातार शिक्षा ग्रहण करने वाले स्थानीयता के दायरे में आएंगे. अर्थात वो लोग छत्तीसगढ़ के स्थानीय माने जाएंगे. पड़ोसी राज्य बिहार की बात करें तो वहां पर अंतिम सर्वे सेटलमेंट को आधार मानकर स्थानीयता की नीति तय की गई है जिसका आधार 1932 है वहां की नियोजन नीति को देखे तो पाएंगे इसमे महिलाओं को 50 परसेंट का आरक्षण प्राप्त है. वर्तमान समय में बिहार में आरक्षण की जो स्थिति है, उसके अनुसार अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 1 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत का आरक्षण दिया जा रहा है. इन दोनों पड़ोसी राज्यों में रोजगार का सृजन हो रहा है लेकिन झारखंड मे रोजगार के नाम पर युवाओं को मिल रहा है केवल विवाद. हेमंत सोरेन के द्वारा लाई गई हर नीति कानूनी दांव पेंच में फंस कर अपना दम तोड़ देती है. अब नियोजन नीति के रद्द होने के बाद सीएम ने शीतकालीन सत्र में कहा कि हम इसी नियोजन नीति के तहत रोजगार उपलब्ध कराएंगे. हेमंत ने कहा की पहले स्थानीयता की नीति लागू कराएंगे उसके बाद युवाओं को मिलेगा रोजगार पांच लाख युवाओं को रोजगार देने के मामले को लेकर बेजेपी ने सीएम पर जुबानी हमला किया हुआ है वहीं स्थानीयता का मुद्दा भी अभी फंसा है. स्थानीयता को लेकर भी असमंजस की स्थिति है कि 1932 को आधार बनाना आसान नहीं है उसपर इस बिल को नौवीं सूची में स्थान दिलाना एक लंबी लड़ाई को आमंत्रित करता है इसका अर्थ तो यही हुआ की झारखंड में रोजगार “बीरबल की खिचड़ी” बनती जा रही .
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