रांची(RANCHI): झारखंड में तीसरी बार हेमंत सोरेन ने राज्य की बागडोर अपने हाथों में संभाल ली है. शपथ ग्रहण के साथ ही हेमंत ने अपने सभी वादों को पूरा करने का संकल्प लिया है. लेकिन एक बड़ी चुनौती सीएम के सामने है. सरकार का कार्यकाल काफी कम दिनों का बचा हुआ है. ऐसे में 2019 में किए वादों को पूरा कैसे करेंगे एक बड़ा सवाल है. चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का सामने रहेगा. विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर हमलावर दिखने वाली है.अब देखना होगा की हेमंत इस चुनौती को कैसे पार कर पाते है. इसके अलावा मंत्रिमंडल विस्तार में भी सभी को खुश रखना हेमंत के लिए किसी टेंशन से कम नहीं है.
दरअसल 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व को इंडी गठबंधन को बहुमत मिला. इस दौरान चुनाव में कई बड़े वादे गठबंधन की ओर से किया गया था. जिसमें रोजगार का मुद्दा सुर्खियों में था. हर साल पाँच लाख युवाओं को रोजगार देने का दावा किया गया था साथ ही रोजगार न देने पर एक हजार रुपये हर माह देने का वादा हेमंत सोरेन का था. लेकिन अब सरकार के कार्यकाल में महज 3 माह ही बच सका है. बावजूद अबतक इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी. एक ओर युवा सड़क पर दिख रहे है तो दूसरी ओर इस मुद्दे को विपक्ष भी जोर शोर से उठा रही है.
इसके अलावा स्थानीय नीति विधेयक,ओबीसी आरक्षण,मॉब लिन्चिंग और कई अन्य वादे भी अधर में लटके हुए है. 1932 आधारित स्थानीय नीति झारखंड के भावना से जुड़ा मुद्दा है. इस मुद्दे को हेमंत सोरेन ने 2019 के चुनाव में ही एक हथियार बनाया था. लेकिन यह विधेयक भी अब तक अधर में लटका हुआ है. विधानसभा से पास कर राजभवन भेजा गया. लेकिन अब तक विधानसभा और राजभवन के बीच ही घूम रहा है. हालांकि 1932 के विधेयक को अधर में लटकाने का आरोप विपक्ष पर लगते आ रहा है. कई बार इंडी गठबंधन के नेता खुल कर 1932 आधारित खतियान को फंसाने के लिए विपक्ष को दोषी माना है. 1932 के अलावा ओबीसी आरक्षण की बात करें यह भी फिलहाल लटका हुआ है.
झारखंड में मॉब लिन्चिंग का विधेयक भी सदन से पास किया गया है. लेकिन अब तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. अपने वादे के मुताबिक हेमंत सरकार ने सदन में मॉब लिन्चिंग का विधेयक लाया. जिसे बहुमत के आंकडे के साथ पास कर दिया गया. बाद में इसे कानूनी रूप देने के लिए राजभवन को भेज दिया गया. लेकिन अब तक विधेयक राजभवन में ही लटका हुआ है. ऐसे में सवाल सरकार से ही जनता पूछेगी की आखिर कैसे आपका वादा अधूरा रह गया है.
अब हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल की बात करें तो इसमें भी हेमंत के पसीने छूटने वाले है. जिस तरह से चंपाई सरकार के गठन के बाद देखा गया था कि कई विधायक नाराज हो कर झारखंड से बाहर चले गए थे. सभी मंत्रिमंडल में शामिल करने की मांग कर रहे थे. हालाकि बाद में आलाकमान के समझाने के बाद सभी वापस झारखंड लौटे थे. अब फिर से हेमंत सोरेन की सरकार बनी है. इस सरकार में भी कई विधायक बड़े सपने लेकर बैठे है. कई तो मंत्री बनने का भी दावा कर रहे है. अब देखना होगी कि हेमंत सोरेन कैसे सभी को खुश रखेंगे. यह भी किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है.
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