दुमका(DUMKA): विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में सुमार मेसोपोटामिया की सभ्यता हो या सिंधु घाटी की सभ्यता, इतिहास गवाह है कि मानव सभ्यता का विकास नदी घाटी के किनारे हुआ है. झारखंड की उपराजधानी दुमका के जरमुंडी प्रखंड के बरमसिया गांव में भी प्राचीन मानव का निवास स्थल था, यह दावा है जाने माने पुरातात्विक खोजकर्ता पंडित अनूप कुमार बाजपेयी का.
जीवाश्म के रूप में हिरण के खुर के चिन्ह
बरमसिया गांव से होकर प्रवाहित होती थी घाघाजोर नदी जो वर्तमान समय में घाघाजोर जोरिया (छोटी नदी) के नाम से बहती है. नदी से सटा है महाबला पहाड़. महाबला पहाड़ पर आदिमानव के 9 पद चिन्ह के साथ गिलहरी, मछली, हिरण के खुर के छाप तथा पक्षी सदृश्य प्राणी जीवाश्म रूप में विद्यमान है. लगभग एक दशक पूर्व पुरातत्वविद पंडित अनूप कुमार बाजपेई ने इस जीवाश्म चट्टान की खोज की थी. समय के साथ साथ सरकार का ध्यान भी इस ओर गया. पथ निर्माण विभाग द्वारा खोजकर्ता अनूप कुमार बाजपेई के नाम के साथ सड़क किनारे साइन बोर्ड लगाया गया है और अब पुरातत्व व पर्यटन विभाग इस क्षेत्र को विकसित करने की पहल शुरू कर दी है. इसी कड़ी में जरमुंडी के प्रखंड विकास पदाधिकारी फुलेश्वर मुर्मू पुरातत्वविद पंडित अनूप कुमार बाजपेई के साथ बरमसिया के महाबला पहाड़ पर पहुंचे और जीवाश्म को नजदीक से देखा.
आदिमानव के पदचिन्ह
पंडित अनूप कुमार बाजपेई का दावा है कि महाबला पहाड़ की घाटी में यह जीवाश्म तब के हैं जब धरती के स्थल खंड छोटी थी जिसे पैंजिया कहा गया है. उसने बताया कि राजमहल पहाड़ी क्षेत्र का यह भाग जहां आदिमानव विभिन्न प्रकार के जीव जंतु के साथ रहते थे. इनका दावा है कि यह जीवाश्म करोड़ों वर्ष प्राचीन है जो मानव सृष्टि से संबंधित अवधारणा को नई रोशनी देते प्रतीत होते हैं.
आदिमानव द्वारा समान रखने के लिए बनाया गया गुफानुमा आकृति
पंडित अनूप कुमार बाजपेई कहते हैं कि इस महाबला पहाड़ की चट्टान में आदि मानव के 9 पद चिन्ह के साथ गिलहरी, मछली, हिरण के खुर के छाप तथा पक्षी सदृश्य एक प्राणी के जीवाश्म है. पहाड़ की चट्टान को काटकर एक गुफा नुमा आकृति भी है. पुरातत्ववेत्ता पंडित अनूप कुमार बाजपेई का मानना है कि इसका उपयोग मानव अपने सामानों को सुरक्षित रखने के लिए करते थे.
जीवाश्म की तलाश करते पुरातत्वविद पंडित अनूप कुमार बाजपेयी
ग्राम प्रधान फनी भूषण राय, ग्रामीण कामदेव राय आदि ने बताया कि पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग द्वारा इस क्षेत्र में ध्यान देने से क्षेत्र का समुचित विकास हो पाएगा. भविष्य में देश विदेश के शोधकर्ताओं के आने की उम्मीद बढ़ेगी. दूरदराज से लोग इस चट्टान को देखने आते हैं. ग्रामीणों में जागृति आई है जो चट्टान को सुरक्षित व संरक्षित करने को लेकर यहां के ग्रामीण सतत प्रयास कर रहे हैं. ग्रामीणों ने यह भी बताया कि बीडीओ के आने से यह आस जगी है कि इस चट्टान के संरक्षण की दिशा में सरकार कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाएगी.
सचमुच राजमहल की पहाड़ी अपने आप में कई पुरातात्विक धरोहरों को समेटे हुए हैं . जरूरत है ऐसे स्थलों को संरक्षित करने के साथ साथ पर्यटन के मानचित्र पर लाने की ताकि ना केबल इस क्षेत्र का समुचित विकास होगा बल्कि कई ऐसी जानकारी लोगों को मिलेगी जिससे वे आज तक अंजान है.
रिपोर्ट: पंचम झा
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