टीएनपी डेस्क(TNP DESK): अधिकतर माता-पिता बेटे की ख्वाहिश रखते हैं. बेटों को मां-बाप की बुढ़ापे की लाठी माना जाता है. वहीं बेटियों को पराया धन कहा जाता है, क्योंकि शादी के बाद बेटी पराए घर की हो जाती हैं. मगर, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस बेटे की माता-पिता कामना करते हैं, उस बेटे की वजह से माता-पिता के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है, जबकि जिस घर में बेटियां होती हैं, उस घर में माता-पिता का स्वास्थ्य ठीक रहता है. ये सुनने में बड़ा ही अटपटा लग रहा होगा लेकिन यही सच है और ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ये अमेरिकी शोधकर्ताओं का कहना है. अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अपने एक study में पाया है कि जिन मां-बाप के एक या अधिक बेटे होते हैं, उन्हें डिमेंशिया नामक बीमारी का खतरा अधिक होता है, जबकि जिनकी बेटी होती है, उन्हें इसका खतरा कम होता है.
इस स्टडी में क्या बताया गया है
इस स्टडी में अमेरिका में 50 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के 13,000 से अधिक माता-पिता पर research किया गया. यह रिसर्च कोलंबिया यूनिवर्सिटी और प्राग के चार्ल्स यूनिवर्सिटी की टीम ने किया. इस रिसर्च में पाया गया कि जिन माता-पिता के कम-से-कम एक बेटे हैं, उनमें बिना बेटे वाले मां-बाप की तुलना में तेजी से डिमेंशिया होने का खतरा बढ़ जाता है, वहीं जिनके एक से ज्यादा बेटे हैं, उनमें बेटियां वाले मां-बाप की तुलना में संज्ञानात्मक क्षमता यानि कि cognitive power तेजी से खोती हुई नजर आई.
इस रिसर्च के अनुसार, बेटियां के माता-पिता की देखभाल होने और उनकी ईमोशनल सपोर्ट की अधिक संभावना हो सकती है, जिससे उन्हें उम्र बढ़ने के साथ स्वस्थ रखने में मदद मिलती है. वहीं, जिनके लड़के होते हैं, उनके स्वस्थ जीवनशैली जीने की संभावना कम होती है. इस रिसर्च से ये पता चलता है कि बेटियों के शराब पीने, ड्रग्स लेने और धूम्रपान करने की संभावना कम होती है, जबकि बेटों में यह सब आदतें पाई जा सकती है, जिसका असर उनके माता पिता के दिमाग पर गंभीर रूप से पड़ता है. इस शोध में ये भी बताया गया है कि जिनके घर बेटी जन्म लेती है, वैसे माता-पिता की उम्र बढ़ जाती है.
शोध में 13,222 माता-पिता से सवाल-जवाब किए गए, जिन्होंने कम से कम 14 वर्षों तक बच्चों का पालन पोषण किया था. ऐसे माता-पिता के मानसिक कौशल जैसे एकाग्रता, सोच और समझ का आकलन भी किया गया. 'जर्नल ऑफ साइकियाट्रिक रिसर्च' में प्रकाशित रिसर्च के रिजल्ट बताते हैं कि कम से कम एक बेटे वाले माता-पिता में उन लोगों की तुलना में डिमेंशिया होने की दर तेज थी, जिनके बेटे नहीं थे. वहीं मानसिक गिरावट की गति पिता और माता दोनों के लिए समान थी.
डिमेशिया क्या है?
दरअसल, डिमेंशिया किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं है, बल्कि एक बड़े से लक्षणों के समूह का नाम है, जिसे syndrome कहा जा सकता है. डिमेंशिया को कुछ लोग “भूलने की बीमारी” कहते हैं, मगर, डिमेंशिया सिर्फ भूलने का दूसरा नाम नहीं हैं, इसके कई अन्य लक्षण भी है, जैसे नयी बातें याद करने में दिक्कत, तर्क न समझ पाना, लोगों से मेल-जोल करने में झिझकना, सामान्य काम न कर पाना, अपनी भावनाओं को संभालने में मुश्किल, व्यक्तित्व में बदलाव, इत्यादि. यह सभी लक्षण मस्तिष्क की हानि के कारण होते हैं और ज़िंदगी के हर पहलू में दिक्कतें पैदा करते हैं. यह भी गौर करें कि यह ज़रूरी नहीं है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की याददाश्त खराब हो, कुछ प्रकार के डिमेंशिया में शुरू में चरित्र में बदलाव, चाल और संतुलन में मुश्किल, बोलने में दिक्कत, या अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, पर याददाश्त सही रह सकती है. डिमेंशिया के लक्षण अनेक रोगों की वजह से पैदा हो सकते हैं, जैसे कि अल्ज़ाइमर रोग, लुई बॉडीज वाला डिमेंशिया, वास्कुलर डिमेंशिया, फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया, पार्किन्सन, इत्यादि.
इस रिसर्च के आधार पर बात करें तो बेटों को अपने डेली रूटीन में बदलाव कर अपने माता-पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है, बेटों को अपनी आदतों में सुधार लाना चाहिए, नशे और धूम्रपान से दूरी बनानी चाहिए और माता-पिता से बात अकरें, बेटियों की तरह उन्हें ईमोशनल सपोर्ट दें, इससे आपके माता-पिता की स्वास्थ्य भी ठीक रहेगी और उनकी उम्र भी बढ़ेगी.
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