पटना-आदर्श केन्द्रीय कारागार, बेउर बिहार की सबसे सुरक्षित जेल मानी जाती है. दावा किया जाता है कि इस जेल की सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ पाना नामुमिकन है. लेकिन एक कैदी ने इस दावे की हवा निकाल दी. सुरक्षा व्यवस्था के तमाम दावों को खिल्ली उड़ाता वह कैदी जेलकर्मियों के आंखों के सामने से फरार हो गया और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी.
गिनती के वक्त एक कैदी कम पाये जाने पर हुआ बवाल
बड़ी बात यह है कि घंटों तक इसकी खबर जेल प्रशासन को नहीं लगी, बाद में जब कैदियों की गिनती होने लगी तब जेल में एक कैदी कम पाया गया, इसके बाद तो जेल कर्मियों को पसीने छुट्ने लगे. लेकिन बावजूद इसके जेलकर्मियों ने कोई जोखिम लेना उचित नहीं समझा, यही कारण है कि इसकी शिकायत स्थानीय थाने में करने के बजाय जेलकर्मियों ने खुद ही उस अदम्य साहसी कैदी को खोज निकालने जोखिमपूर्ण निर्णय लिया.
फिर शुरु हुई साहस और चतुराई के धनी उस कैदी की खोज
उसके बाद शुरु हुई साहस और चतुराई के धनी उस कैदी की खोज. हर कर्मी अपने-अपने तरीके से उसकी खोज में जुट गया. अगल बगल के स्थानों की लुक छुपा कर जांच होने लगी, स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक जेल कर्मियों की ओर से नजर रखी जाने लगी. साथ ही इस बात की सख्त हिदायत रही कि इसकी भनक भी स्थानीय प्रशासन को नहीं लगे.
बीएसएपी क्वार्टर के समीप झाड़ियों छुपा मिला कैदी
अब इसे जेल कर्मियों की खुशकिस्मती कहें या उस कैदी का दुर्भाग्य कि करीब तीन घंटे बाद उसे बीएसएपी क्वार्टर के समीप झाड़ियों से खोज निकाला गया, इस प्रकार कैदी खोजने की इस महिम का समापन हो गया.
कचरे के ढेर में छिप जेल से बाहर निकला कैदी
शराब तस्करी के मामले में जेल में बंद महेंद्र यादव ने खुलासा किया कि उसने कोई सुरंग का निर्माण नहीं किया था. उसका आइडिया थोड़ा इनोवेटिव था. इसके लिए उसने प्रति दिन जेल में आने वाले कचरा की गाड़ी को चुना, रोज की तरह जैसे ही कचरा की गाड़ी जेल में आया, वह लोगों की नजर बचाकर उस कचरे के अंदर छुप गया.
सूत्रों का दावा है कि महेन्द्र यादव ने छुपने के लिए एक ऐसे स्थान को चुना था, जहां सामान्य आदमी अपनी नाक पर रुमाल रख कर भी नहीं रह पाता, लेकिन वह उस स्थान पर करीबन तीन घंटों तक दुबका रहा. हालांकि उसकी कोशिश वहां से बाहर निकलने की थी, लेकिन उसे इस बात का अंदेशा था कि उसकी खोज शुरु हो गयी होगी, इसीलिए उसने बाहर निकलने का जोखिम लेने के बजाय उस बदबुदार स्थान में दुबके रहना उचित समझा, हालांकि उसकी यह समझदारी काम नहीं आयी और उसके महज तीन घंटों के अन्दर खोज निकाला गया.
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