पटना(PATNA): आज का दिन बिहार की राजनीति में बेहद अहम होने वाला है, आज का दिन ही यह तय करने वाला है कि उपेन्द्र कुशवाहा का राजनीतिक भविष्य क्या होने वाला है, बिहार की राजनीति में और खास कर पिछड़ों की राजनीति में उनकी हैसियत कितनी बची है, आज का दिन ही यह तय करेगा कि वह किस रुप में और किस सीमा तक सीएम नीतीश को घेर पाते हैं. यदि आज वे नकार दिये गयें तो यह साफ हो जायेगा कि उनका भी वही हाल होने वाला है, जो कभी आरसीपी सिंह का हुआ था.
क्या उपेन्द्र कुशवाहा की परिणति भी आरसीपी सिंह की ही होगी
यहां बता दें कि जब आरसीपी सिंह ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था, तब उनके द्वारा भी बड़े-बड़े दावे किये गये थें, दावा यह भी था कि उनके एक इशारे पर जदयू दो फाड़ हो जायेगा, और तब भी माना जाता था कि आरसीपी सिंह के पीछे भाजपा की ताकत लगी हुई है, लेकिन कुछ दिनों की बयानबाजी और पैंतरों के बाद धीरे-धीरे आरसीपी सिंह राजनीतिक वनवास में चले गयें और जदयू संगठन पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा, अब यही मोर्चा उपेन्द्र कुशवाहा के द्वारा खोला गया है, और यहां भी उनके पीछे भाजपा की ताकत बतायी जा रही है.
सिन्हा लाईब्रेरी में जदयू पदाधिकारियों के साथ उपेन्द्र कुशवाहा की बैठक
यहां बता दें कि आज पटना के सिन्हा लाईब्रेरी में कथित रुप से जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और जदयू नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने पार्टी के असली सिपाहियों की एक अहम बैठक बुलायी है. पार्टी के नेताओं को आमंत्रण भेजा गया है. हालांकि जदयू की ओर से इस बैठक को अमान्य घोषित कर दिया गया है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक वशिष्ठ नारायण सिंह के द्वारा साफ कर दिया गया है कि इस बैठक से जदयू का कोई लेना-देना नहीं है.
पिछले कुछ दिनों से बगावत का झंडा बुलंद किये हुए है उपेन्द्र कुशवाहा
यहां यह भी याद रखने की बात है कि पिछले कुछ दिनों से उपेन्द्र कुशवाहा बगावत का झंडा बुलंद किये हुए है, उनका आरोप है कि महागठबंधन की सरकार में जदयू दिन प्रति दिन कमजोर पड़ती जा रही है, पार्टी का सांगठनिक ढांचा ध्वस्त होता जा रहा है और जदयू की इस स्थिति के लिए जिम्मेवार नीतीश कुमार की नीतियां है.
तेजस्वी को भावी सीएम घोषित करते ही बदल गये उपेन्द्र कुशवाहा के स्वर
दरअसल, यह सारा खेल तब शुरु जब नीतीश कुमार ने कई मंचों से यह स्पष्ट कर दिया कि आने वाले दिनों में बिहार की बागडोर तेजस्वी यादव के हाथों में जाने वाली है, बात यहां तक हो रही है कि कुछ दिनों के बाद जदयू और राजद का विलय हो सकता है और यही उपेन्द्र कुशवाहा की बेचैनी का कारण है, उपेन्द्र कुशवाहा तेजस्वी यादव को किसी भी सीएम पद पर बिठाने के खिलाफ है, जानकारों का यह भी मानना है कि उपेन्द्र कुशवाहा की चाहत यह थी कि महागठबंधन की सरकार में उन्हे उप मुख्यमंत्री बनाया जायेगा, लेकिन नीतीश कुमार उपमुख्यमंत्री तो दूर की बात उन्हे मंत्री बनाने को भी तैयार नहीं हुए, जिसके बाद उपेन्द्र कुशवाहा के द्वारा नीतीश कुमार की नीतियों का विरोध किया जाने लगा और वे भाजपा के साथ सुर में सुर मिलाकर बिहार में जंगलराज की वापसी की बात करने लगें. अब देखना होगा कि आज वे अपनी शक्ति का कितना प्रर्दशन कर पाते हैं, इसके बाद ही बिहार की राजनीति में उनके सियासी कद का फैसला होगा.
रिपोर्ट: देवेंद्र कुमार
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