Ranchi-1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से तात्कालीन उम्मीदवार महावीर विश्वकर्मा को पैदल कर पहली बार हजारीबाग संसदीय सीट से यशवंत सिन्हा को मैदान में उतारा गया था. हालांकि तब भी पूरे देश में ओबीसी की राजनीति की बयार बह रही थी, लेकिन तब भाजपा के लिए ओबीसी चेहरों का वह वजूद नहीं था, नहीं तो आज की राजनीति में हजारीबाग की राजनीति का ओबीसी चेहरा माने जाने महावीर विश्वकर्मा को पैदल करना इतना आसान नहीं होता, खैर मंडल-कमंडल की उस आंधी में भाजपा ने महावीर विश्वकर्मा को पैदल कर यशवंत सिन्हा पर दांव लगाना बेहतर माना. उसके बाद चुनाव दर चुनाव हजारीबाग की राजनीति में यशवंत सिन्हा का जलबा चलता रहा. लेकिन जैसे ही यशवंत सिन्हा का पीएम मोदी के साथ रिश्ते में दरार दिखलाई देने लगी, विपक्षी दलों पर वंशवाद की राजनीति का तोहमत लगाने वाली भाजपा को जयंत सिन्हा पर दांव लगााने में कोई नैतिक संकट नहीं दिखा और 2014 हजारीबाग की बागडोर जयंत सिन्हा के हाथ में सौंप दी गयी.
भाजपा की जीत के सामने दीवार बन कर खड़ा हो सकते हैं यशवंत सिन्हा
लेकिन अब इसे राजनीति का कुचक्र कहें कि आज वहीं यशवंत परिवार हजारीबाग की राजनीति में भाजपा के सामने दीवार बन कर खड़ा है, हालांकि यशवंत सिन्हा पहले ही भाजपा को अलविदा कह चुके हैं, लेकिन जयंत सिन्हा आज भी भाजपा के सांसद हैं, यह बात दीगर है कि पार्टी कार्यक्रमों से उनकी दूरी बन चुकी है, और आज झारखंड की राजनीति में यह चर्चा आम है कि 2024 के महामुकाबले में भाजपा जयंत सिन्हा को उम्मीदवार नहीं बनाने जा रही है. इस प्रकार वर्ष 1998 से हजारीबाग की राजनीति पर सिन्हा परिवार का जो जलबा रहा है, 2024 में बिखरता नजर आने लगा है.
मनीष जायसवाल से लेकर जेपी पटेल पर चर्चा
2024 के जंगे मैदान में भाजपा की ओर से मुकाबले में कौन उतरेगा, इस पर कयासबाजियों का दौर जारी है. कई नाम एक साथ चर्चा में है. नगर विधायक मनीष जायसवाल से लेकर मांडु विधायक जेपी पटेल का नाम उछल रहा है.
चन्द्र प्रकाश चौधरी की भी हो सकती है इंट्री
लेकिन इसके साथ ही गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से आजसू सांसद चन्द्रप्रकाश चौधरी की दावेदारी भी सामने आ रही है. दावा किया जा रहा है कि इस बार भाजपा गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र को अपने पास रख कर आजसू को हजारीबाग का सीट सौंप सकती है. इस प्रकार जयंत सिन्हा की दावेदारी भी खत्म हो जायेगी और कायस्थ मतदाताओं की नाराजगी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.
हाल इंडिया गठबंधन का
लेकिन सबसे अधिक दिलचस्प कहानी इंडिया गठबंधन का हैं, यहां एक साथ कई चेहरे मैदान में उतरने को बेकरार हैं. बड़कागांव विधान सभा क्षेत्र से पूर्व विधायक और हजारीबाग जिले का लोकप्रिय ओबीसी चेहरा योगेन्द्र साव की दावेदारी भी सामने आ रही है, वहीं दूसरी तरफ उनकी बेटी और बड़कागांव की वर्तमान विधायक अम्बा प्रसाद की चर्चा भी जोरों हैं.
अम्बा से लेकर पिता योगेन्द्र साव को चेहरा बनाने की चर्चा तेज
दावा किया जाता है कि हालिया दिनों में जिस प्रकार अम्बा प्रसाद पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बनाती दिख रही है, उसकी मुख्य वजह हजारीबाग सीट पर उनकी दावेदारी है, जिसके लिए अब तक हरी झंडी कांग्रेस की ओर से दिखलायी नहीं जा रही है.
रामगढ़ स्टेट के सौरव नारायण सिंह भी ठोक रहे हैं ताल
लेकिन इसके साथ ही 2014 के चुनावी जंग में जयंत सिन्हा के हाथों पराजय का स्वाद चख चुके और रामगढ़ राज परिवार के सदस्य रहे सौरव नारायण सिंह भी एक बार फिर से ताल ठोकने की तैयारी में हैं. यहां ध्यान रहे कि सौरभ नारायण सिंह दादा कामाख्या नारायण सिंह के भाई बसंत नारायण सिंह हजारीबाग संसदीय सीट से चार-चार बार सांसद रहे हैं, खुद सौरव नारायण सिंह भी कांग्रेस के टिकट पर हजारीबाग से दो-दो बार विधायक रहे हैं.
हालांकि जानकार मानते हैं कि 2014 में जयंत सिन्हा के हाथों हार का स्वाद चखने के बाद यह हजारीबाग की राजनीति से दूर हो चुके थें, यहां तक की जब पार्टी ने 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद विधान सभा से उम्मीदवार बनाने का ऑफर दिया, तो सौरभ नारायण सिंह ने इंकार कर दिया. लेकिन दावा किया जाता है कि इस बार उनका मन एक बार फिर से अखाडे में उतरने के लिए मचल रहा है.
डॉ आरसी प्रसाद भी ताल ठोकने की तैयारी में
लेकिन इस बीच एक और नाम हजारीबाग की गली कुचियों और चौक-चौराहों पर उछल रहा है. वह नाम है नगर विधान सभा चुनाव में मनीष जायसवाल के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोकने वाले डॉ आरसी प्रसाद भी अपना चुनाव अभियान तेज कर चुके हैं.
कमांडर इन चीफ संजय मेहता की इंट्री
लेकिन हजारीबाग का यह जंग झारखंड की राजनीति में धुमकेतू बन कर उभरे टाईगर जयराम महतो की चर्चा के बगैर अधूर रहेगा. हालिया दिनों में टाईगर जयराम लगातार हजारीबाग में जन सभाओं को संबोधित कर रहे हैं. और जानकारों को दावा है कि उनकी सभाओं में उमड़ती भीड़ इस बात की तस्दीक कर रही है कि दिनों-दिन जयराम महतो वर्तमान स्थापित राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौती बन कर सामने आ रहे हैं, किसी भी राजनीतिक दल की तुलना में उनकी रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है, और जयराम महतो की यही लोकप्रियता राजनीतिक दलों की नींद हराम कर रही है.
बाहरी भीतरी की लड़ाई से जयंत से लेकर मनीष के सामने खड़ा हो सकता है संकट
चर्चा यह है कि जयराम महतो इस बार हजारीबाग संसदीस सीट से अपनी पार्टी जेवीकेएसएस की ओर से संजय मेहता को उम्मीदवार बना सकते हैं. और इसी कवायद में वह हजारीबाग रैलियों का आयोजन कर रहे हैं, बता दें कि संजय मेहता को जयराम का कमांडर इन चीफ माना जाता है, संजय छाये की तरह हमेशा जयराम के साथ खड़ा नजर आते हैं. जिस प्रकार जयराम बाहरी-भीतरी के हवा दे रहे हैं, उससे जयंत सिन्हा से लेकर मनीष जायसवाल की राजनीति सवालों के घेरे में खड़ी हो गयी है.
क्या कहता है सामाजिक समीकरण
ध्यान रहे कि हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम समुदाय का-3.70 लाख, कुशवाहा- 4.42 लाख, कुर्मी-2 लाख, ईशाई 70 हजार, वैश्य 2 लाख, जबकि आदिवासी और दूसरे जातियों की आबादी करीबन 1.5 लाख बतायी जाती है.
सामाजिक समीकरणों के हिसाब से इंडिया गठबंधन के लिए अभेद नहीं हजारीबाग संसदीय सीट
यदि इन आंकड़ों पर गौर करें तो इंडिया गठबंधन के लिए हजारीबाग की जंग कोई मुश्किल पहाड़ नहीं है, लेकिन सत्य यह भी है कि 1952 के पहली लोकसभा चुनाव से आज तक कांग्रेस ने महज दो बार इस सीट से विजय पताका फहराया है. जबकि अबतक भाजपा के खाते में यह सीट छह बार आ चुकी है.
प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सामने आयेगी सही तस्वीर
हालांकि जानकारों का कहना है कि यह सत्य है कि यह हजारीबाग संसदीय सीट कांग्रेस के लिए उंचा पहाड़ तो भाजपा के लिए उसका गढ़ रहा है, लेकिन इस बार की चुनावी तस्वीर सभी प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही होगी.
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