Patna- पूर्व चुनावी रणनीतिकार और हालियों दिनों में बिहार की गलियों की धूल फांक रहे प्रशांत किशोर के एक बयान पर पूर्व सीएम लालू यादव की बेटी और तेजस्वी यादव की बहन रोहिणी आचार्या ने बेहद तीखा तंज कसा है, बल्कि यों कहें तो प्रशांत को उनकी ही भाषा में आईना दिखलाने की कोशिश की है. दरअसल प्रशांत किशोर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को लेकर बेहद निजी टिप्पणियां करते रहते हैं, कभी तेजस्वी को नौवीं फेल बताया जाता है तो कभी इस बात तंज कसा जाता है कि तेजस्वी के पास आज जो कुछ भी है, लालू यादव के बेटा होने के कारण, नहीं तो वह भारतीय क्रिकेट टीम में पानी ढोने का काम किया करता था, इस बार उन्होंने लिखा था कि 'ऐसा कौन सा पराक्रम किया? बाबू जी की पार्टी है तो कोई भी नेता बन जाएगा।'
अब “बाबू जी की पार्टी है तो कोई भी नेता बन जाएगा।“ वाले इसी बयान पर रोहणी आचार्या ने पलटवार करते हुए अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लिखा है कि ‘ये है कौन, इसको तो कोई पहचानता भी है, ये भी किसी को अपना बाबू जी बना ले, ताकि किसी का राजनीतिक वारिश बन सके, यह तो खुद अपनी दुकानदारी और फायदे के हिसाब से अपना बाप बदलता रहता है, कभी मोदी - शाह इसके बाबू जी, कभी पवन वर्मा- नीतीश कुमार इसके बाबू जी, आखिर बाबूजी की यह खोज कब पूरी होगी.
रोहणी आगे लिखती है कि कभी राहुल गाँधी इसके बाबूजी , कभी अभिषेक बनर्जी इसके बाबूजी , कभी जगन रेड्डी इसके बाबूजी तो कभी स्टालिन इसके बाबूजी .. अभी फिर से इसने सबसे पहले वालों को अपना बाप बना रखा है सिर्फ नाम नहीं उजागर कर पा रहा है.. भाजपा की दलाली करता है इसलिए मीडिया की कृपा दृष्टि इस पर बना रहता है वरना गली का कुत्ता भी इसको भाव ना दे और चला है तेजस्वी पर कीचड़ उछालने.
कभी प्रशांत को सीएम नीतीश का बेहद करीबी माना जाता था
ध्यान रहे कि प्रशांत किशोर कभी चुनावी रणनीतिकार के रुप में अब तक लगभग सभी सियासी दलों के लिए काम कर चुके हैं, कभी उन्हे सीएम नीतीश का बेहद करीबी भी माना जाता था, यहां तक कि उन्हे सीएम नीतीश के बाद उनका बारिश माने जाने लगा था, लेकिन प्रशांत जदयू में भी अस्थायी रुप से नहीं रह सकें, और बाद में उन्होंने खुद की अपनी सियासी पार्टी खड़ा करने का मन बना लिया और इसी आशय के साथ वह इन दिनों अपनी जनसुराज यात्रा के जरिये बिहार की गलियों की खाक छान रहे हैं, माना जाता है कि वह लोकसभा चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकते हैं, लेकिन इन दिनों बिहार की सियासत जिस राह पर चलता हुआ दिख रहा है, साथ ही जातीय जनगणना और पिछड़ों के आरक्षण विस्तार के बाद जो आंधी बहती दिख रही है, उस आंधी में कभी चुनावी रणनीतिकार के रुप में बेहद सफल माने जाते रहे प्रशांत का पैर बिहार की सियासत में जमना मुमकिन दिख नहीं रहा है.
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