TNPDESK- पिछले तीन दशकों की भारतीय राजनीति में तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद लालू का सियासी जलबा आज भी कायम है, पूरे देश में उनके लाखों फ्लोअर है. जब जब लालू परिवार के राजनीतिक कैरियर खत्म होने के दावे किये जाते रहें, लालू और लालू परिवार ने ना सिर्फ पलटवार किया, बल्कि एक बार फिर से उठ खड़ा होने का जज्बा भी दिखलाया. उनकी हाजिर जवाबी और भाषाई कौशल का लोहा आज उनके विरोधी भी मानते हैं. दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के प्रति बेहद रहमदिल लालू यादव को जानने वाले बेहद जिंदादिल इंसान मानते हैं, लालू का खिंलदड़ अंदाज और देशी भाव-वाक्य विन्यास के सभी कायल है. उनकी मशखरी का भी एक अपना अंदाज और दूरगामी राजनीतिक प्रभाव होता है.
दोस्त तो दोस्त लालू ने अपने राजनीतिक दुश्मनों को कभी निराश नहीं किया
यही कारण है कि जिन लोगों की साजिश के कारण उनका राजनीतिक कैरियर खत्म हुआ, आज वह सभी बड़े चेहरों का ठिकाना वही लालू परिवार और राजद की राजनीति है. यह कतार शिवानंद तिवारी से आगे बहुत दूर तक जाती है. लेकिन अपने शरण में लौट कर आने वालों को लालू ने कभी निराश नहीं किया और ना ही उनके प्रति किसी प्रकार के परायापन का भाव दिखलाया, इसके विपरीत बड़े यत्न से एक बार फिर से उसे गले लगाया, राजनीतिक वनवास से मुक्ति दिलवायी.
राहुल ने सामने लाया लालू का छुपारुस्तम अंदाज
लेकिन यह किसे पत्ता था कि वह लालू जो राजनीति के इतने बड़े खिलाड़ी है, किचेन की दस्तकारी के भी उतने ही बड़े उस्ताद है. लेकिन उनका यह छुपारुस्तम स्वरुप को सामने लाने का श्रेय जाता है राहुल गांधी को, दावा किया जाता है कि जब बेंगलुरु बैठक के बाद अचानक से राहुल मीसा भारती के आवास पर लालू से मिलने पहुंचे तो लालू यादव उन्हे अपने किचन तक ले गयें और मटन बनाने में जुट गयें, यह ही वह क्षण था, जब राहुल को लालू के अन्दर की इस प्रतिभा का भान हुआ.
लालू की तारीफ में राहुल ने बांधा प्रशंसा के पुल
अपने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी को साक्षा करते हुए राहुल लिखते हैं कि ‘लालू जी एक लोकप्रिय राजनेता हैं, ये सभी जानते हैं। मगर उनकी छुपी हुई एक और कला है - खाना बनाना. उनके थोड़े स्वस्थ होने के बाद उनसे मिलने का मौका मिला तो सोचा क्यों न उनकी सीक्रेट रेसिपी भी सीख लूं. अपने घर पर उन्होंने और उनके परिवार ने मेरा बहुत आह्लाद से स्वागत किया. प्यार से सिखाते हुए, बहुत स्वादिष्ट भोजन करवाया. हमारा गठबंधन, INDIA, भाजपा की विभाजनकारी नीतियों और नफ़रत की राजनीति के विरुद्ध खड़ा है. INDIA, ग़रीबों, कमज़ोरों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ के लिए खड़ा है. सत्य के रास्ते पर चल कर मोहब्बत की दुकानें खोलना - ये हम सभी का कर्तव्य है, और लक्ष्य भी. आज, हमारा देश महंगाई और बेरोज़गारी से जूझ रहा है. हम रोज़मर्रा की चीज़ों के दाम कम करने, और रोज़गार के नए अवसर पैदा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं.
जब सदन में राहुल ने फाड़ी थी बिल की प्रति, बदले में लालू को हुई थी जेल
हालांकि भारतीय राजनीति की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि जब लालू यादव का चारा घोटाले में नाम आया था और माना जा रहा था कि निचली अदालत के द्वारा इनके खिलाफ सजा का एलान किया जा सकता है, तब मनमोहन सिंह के सरकार के द्वारा भारतीय जनप्रतिनिधित्व की धारा (1955) में एक संशोधन के लिए प्रस्ताव लाने की तैयारी की जा रही थी, जिससे कि किसी निचली अदालत के द्वारा सजा का एलान होते ही किसी जनप्रतिनिधि की सदस्यता नहीं जाय, यदि वह उपरी अदालत में फैसले के खिलाफ अपील दायर करता है तो मामले में शीर्ष अदालत का फैसला आने तक वह एक निर्वाचित प्रतिनिधि के रुप में अपने दायित्वों का निर्वहन करता रहें. जब यह बिल सदन में लाया गया था तब उसकी प्रति को फाड़ने वाले कोई और नहीं खुद राहुल गांधी थे. उस समय राहुल के अन्दर अपने को युवा तुर्क घोषित करने का राजनीतिक उतावलापन सवार था. राहुल गांधी के द्वारा भरी सदन में बिल की प्रति फाड़ने के साथ ही यह बिल वापस ले लिया गया, लेकिन इतिहास का एक सच यह भी है खुद राहुल गांधी भी उसी जनप्रतिनिधित्व की धारा का शिकार हो गयें और मोदी सरनेम मामले में गुजरात की एक निचली अदालत के द्वारा फैसला आते ही उनकी सदस्यता चली गई, और आज भी वह उसकी लड़ाई लड़ रहे हैं. बहुत संभव है कि यदि तब राहुल गांधी ने उस बिल की प्रति नहीं फाड़ी होती तो लालू का आज राजनीतिक वनवास इस रुप में सामने नहीं होता.
राहुल को लालू के मटन रेसीपी से भी ज्यादा राजनीतिक रेसीपी पर काम करने की जरुरत
लेकिन जैसा की लालू का स्वाभाव है, वह दोस्तों के अजीज दोस्त और अपने दुश्मनों के प्रति बेहद नरमदिल हैं. यही उनकी ताकत भी है और यही कमजोरी भी. खैर आज का दिन राहुल गांधी के लिए मटन का स्वाद चखने का है, लालू की रेसीपी का आनन्द लेने का है, लेकिन इसके साथ ही वह लालू का राजनीतिक रेसीपी को भी अपना लें तो उनका राजनीतिक अंदाज में एक और बड़ा बदलाव आ सकता है.
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