Ranchi- यदि आप के जेहन में झारखंड की सबसे पुरानी पार्टी के रुप में झारखंड मुक्ति मोर्चा की याद बसी है, तो आप यहां गलती पर हैं. क्योंकि झारखंड की सबसे पुरानी पार्टी “झारखंड पार्टी” का इतिहास झारखंड की राजनीति का पुरौंधा रहे जयपाल सिंह मुंडा से जुड़ा है. हॉकी के प्रति अपनी दीवानगी ने कारण जयपाल सिंह मुंडा ने भारतीय सिविल सेवा जैसे देश की सर्वोच्च सेवा से किनारा कर लिया था.
हॉकी के लिए भारतीय सिविल सेवा को नकारा
दरअसल जयपाल सिंह मुंडा का चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) के लिए हो गया था, उनका प्रशिक्षण भी चल रहा था, लेकिन इसी बीच नीदरलैंड में ओलंपिक हॉकी आयोजित किये जाने की घोषणा हो गयी, जयपाल सिंह मुंडा हॉकी के प्रति अपनी दीवानगी को दबा नहीं सकें और नीदरलैंड निकल पड़ें. देश ने स्वर्ण पदक जीता, चारों ओर जयपाल सिंह मुंडा का डंका बजने लगा, युवाओं में उनका क्रेज बढ़ताही चला गया. इसी क्रेज के बीच वह भारत लौटें, लेकिन आईसीएस की सेवा को ज्वाइन करने के लिए उनसे एक वर्ष और प्रशिक्षण प्राप्त करने को कहा गया, और मुंडा इससे साफ इंकार कर गयें.
आदिवासी मूलवासियों के जीवन और संघर्ष को समझने की शुरुआत
इसके बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का मन बनाया, इस बाबत उन्होंने तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को एक पत्र भी लिखा, लेकिन उनकी ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला, जिसके बाद जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी इलाकों शुरु कर दिया, आदिवासी मूलवासियों के जीवन और संघर्ष को समझने की शुरुआत कर दी. राजनीति सामाजिक जीवन में हाशिये पर खड़े इस समुदाय की व्यथा और अलगाव को देखकर उनका मन डोल गया और उन्होंने इस विशाल समुदाय को राजनीति और सामाजिक जीवन के मुख्यधारा में लाने के लिए राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया और झारखंड पार्टी का गठन किया गया. यह जयपाल सिंह मुंडा ही थें, जिन्होंने पहली बार भारतीय संसद में आदिवासियों को मूलवासी करार दिया था. वह भारत के संविधान निर्मात्री सभा के एकलौते आदिवासी सदस्य थें. उनके प्रयासों के कारण ही भारतीय संविधान में जनजातीय समाज के लिए कई प्रावधानों का निर्माण किया गया.
झारखंड गठन के बाद बिखरती गयी झारखंड पार्टी
भारतीय आजादी के बाद यह पार्टी संयुक्त बिहार की एक मजबूत पार्टी के रुप में उभर कर सामने आयी. लगातार 15 वर्षों तक यह बिहार विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी रही. हालांकि झारखंड गठन के बाद इस पार्टी को गहरा धक्का लगा, इसके अधिकर समर्थक दूसरे दलों में समाहित हो गयें. मधु कोड़ा की सरकार तक इस पार्टी का सरकार में प्रतिनिधित्व रहा, लेकिन एनोस एक्का को सजा मिलते ही यह पार्टी अपनी प्रासंगकिता खोती चली गयी.
पारा टीचर हत्याकांड में एनोस एक्का को उम्र कैद की सजा हो गयी, सजा काट कर एनोस एक्का एक बार फिर से बाहर निकले हैं, हालांकि उन पर अभी भी मनिलांड्रिंग का मामला चल रहा है, आज उन्हे के आवास को ईडी अपने दफ्तर के रुप में प्रयोग कर रही है.
फिर से तेज हो रही है एनोस एक्का की राजनीतिक गतिविधियां
एनोस एक्का एक बार फिर से अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज करते हुए दिख रहे हैं. उनका दावा है कि आने वाले विधान सभा चुनाव में वह सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, 1932 का खतियान को लागू करना उनकी प्रमुख मांग होगी, उनकी कोशिश झारखंड के आदिवासी मूलवासियों की आवाज को उठाने की होगी. उनके समस्याओं के समाधान की होगी.
1963 में किया था कांग्रेस के साथ विलय
हालांकि यह भी याद रखना होगा कि जयपाल सिंह मुंडा ने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस के साथ कर दिया था. बाद में निरल एनेम होरो और बागुन सुमराय के द्वारा इसका पुनर्गठन किया गया था. एनोस एक्का उसी झारखंड पार्टी का प्रतिनिधित्व करते थें, अब देखना होगा कि एनोस एक्का इस मृत प्राय: पार्टी को एक बार फिर से कैसे खड़ा करते हैं, और सियासी दंगल में उन्हे किस हद तक कामयाबी मिलती है.
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