Ranchi-कांग्रेस ने अपने हिस्से की कुल सात सीटों में से छह से प्रत्याशियों का एलान कर दिया है. लेकिन रांची से कांग्रेस का चेहरा कौन होगा, सियासी गलियारों में यह अभी भी एक सवाल बन कर खड़ा है. सियासी सूत्रों के दावों पर भरोसा करें तो बन्ना गुप्ता और सुबोधकांत का नाम रेस में सबसे आगे है. दावा किया जा रहा है कि उलगुलान रैली के बाद रांची के इस असंमजस को दूर कर दिया जायेगा, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि आखिर उलगुलान रैली से इसका क्या संबंध है, और उलगुलान रैली तक इस घोषणा पर विराम क्यों लगायी जा रही है, क्या कांग्रेस आलाकमान को इसके बाद भी एक और असंतोष और विद्रोह की गंध आती दिख रही है, क्या कांग्रेसी रणनीतिकारों को इस बात की आंशका है कि अब तक जो बातें सूत्रों के हवाले से सियासी गलियारों में तैराई जा रही है, यदि उसकी पुष्टि हो गई तो रांची से भी बगावत और अंसतोष की खबर सामने आयेगी या फिर सूत्रों के हवाले से जिस कहानी को परोसा जा रहा है, अभी उन चेहरों की उम्मीदवारी पर पेंच फंसा है और कांग्रेसी रणनीतिकार तीन नाम को आगे कर हवा का रुख भांपने की कोशिश कर रहे थें, ताकि उस अंसतोष को रांची में दफन करने की कोशिश की जाय.
देरी से फिका पड़ सकता है उत्साह
दरअसल इस आकलन का कारण वह बयान है, जिसमें झारखंड में कुर्मी पॉलिटिक्स का एक मजबूत चेहरा माने जाने वाले रामटहल चौधरी ने अपने सीने में दफन दर्द और आशंका का इजहार करते हुए कहा कि इस देरी से अब रांची का सब्र टूट रहा है, कार्यकर्ताओं के साथ ही आम अवाम से भी यह सवाल खड़ा हो रहा है कि यदि टिकट को लेकर इतनी ही संशय की स्थिति थी, तो पार्टी में शामिल क्यों करवाया गया. कांग्रेस में अपनी इंट्री का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी पहल कांग्रेस की ओर से हुई थी. लालचंद महतो ने इसकी शुरुआत की थी, उसके बाद जलेश्वर महतो और बंधु तिर्की ने भी जोर लगाया था, काफी दबाव के बाद हमने कांग्रेस के साथ जाना स्वीकार किया था, और जैसे ही यह खबर लोगों तक पहुंची, रांची में एक उत्साह था, लेकिन पत्ता नहीं क्यों, कांग्रेस अब तक फैसला नहीं कर पा रही है, जबकि उनकी इंट्री के साथ ही पूरी तस्वीर बदलती नजर आने लगी थी, हालांकि अब इस देरी से वह उत्साह आक्रोश और नाराजगी में तब्दील होती भी नजर आ रही है.
रांची में जीत पक्की
कांग्रेस आलाकमान से अपनी बातचीत को सामने रखते हुए रामटहल चौधरी ने कहा कि उनकी मुलाकात महज एक घंटो की थी, उनका कहना था कि यदि आप रांची से कांग्रेस का चेहरा होता है, तो रांची में जीत पक्की है, वैसे भी टिकट के ले किसी के दरवाजे पर माथा टेकना मेरा राजनीतिक संस्कार नहीं रहा है, जब भाजपा में भी था, तब भी टिकट के लिए कभी दिल्ली दरबार में हाजिरी नहीं लगायी, सब कुछ सामान्य होता था, हालांकि रामटहल चौधऱी ने यह स्वीकार किया कि बड़े दलों में निर्णय की अपनी प्रक्रिया होती है, कई बार उसमें देरी भी होती है, अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, लेकिन यदि पार्टी जल्द से जल्द इसका फैसला लेती है, तो प्रचार-प्रसार का पर्याप्त समय मिलेगा. इतने बड़े लोकसभा क्षेत्र में काफी समय की जरुरत होती है. वैसे संभव है कि एक दो दिन में यह फैसला सामने आ जाय और रांचीवासियों को खूशखबरी मिले.
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