टीएनपी डेस्क(TNP DESK)- विपक्षी एकता की मुहिम के घोषित लक्ष्य के साथ पूरे देश का दौरा कर रहे नीतीश कुमार को भी कांग्रेस भाजपा की तरह कर्नाटक के फैसले का बेसब्री से इंतजार है. कर्नाटक की बाजी किसके हाथ लगती है, इससे ही यह तय होगा कि विपक्षी एकता की इस मुहिम को विस्तारित करने में नीतीश कुमार को कितनी छुट्ट मिलने वाली है और किस हद तक उन्हे फैसले लेने की आजादी होती है.
हिमाचल के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की फतह, सीएम नीतीश के लिए राजनीतिक सदमा
हिमाचल के बाद यदि कांग्रेस कर्नाटक में भी बाजी मार ले जाती है, तब निश्चित रुप से यह सीएम नीतीश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर एक करारा प्रहार होगा. और यह सीएम नीतीश के लिए एक राजनीतिक सदमे से कम नहीं होगा. जीत से उत्साहित और उर्जा से लबरेज कांग्रेस नीतीश कुमार के सपनों के सामने एक चुनौती बन कर खड़ी होगी. उन पर बंदिशों को दौर शुरु हो जायेगा और उनकी बारगेनिंग क्षमता बेहद सीमित हो जायेगी.
सीएम नीतीश की पसंद थकी हारी और बेजान कांग्रेस
साफ शब्दों से कहे तो एक थकी हारी और बेजान कांग्रेस ही नीतीश कुमार को राष्ट्रीय फलक पर अपनी महात्वाकाक्षां को विस्तारित करने का अवसर प्रदान कर सकती है. एक मजबूत कांग्रेस नीतीश कुमार की राजनीति का वह कांटा है, जिसकी टीस उन्हे सदियों से रही है.
नीतीश नवीन की मुलाकात के पहले कर्नाटक के फैसले का इंतजार क्यों?
शायद यही कारण है कि सीएम नीतीश ने ओडिशा का दौरा फिलहाल टाल दिया है, माना जा रहा है कि 13 मई के फैसले के बाद ही उनका ओडिशा दौरा सम्पन्न होगा, यदि कांग्रेस इस जीती हुई बाजी को भी अपने पाले में करने में नाकाम रहती है, तब यह मान लिया जायेगा कि कांग्रेस को सीएम नीतीश कुमार की तरह एक राजनीतिक कौशल से भरा और घाघ चुनावी रणनीतिकार की जरुरत है, जिसे जनता की नब्ज पर पकड़ और इस बात की समझ भी हो कि कब कौन से मुद्दे उठाने हैं और कब किन मुद्दों से दूरी बनानी है. क्योंकि यह अक्सर देखा गया है कि एन चुनाव के बीच कांग्रेस उन मुद्दों पर अपना हाथ डाल देती है, जिससे चुनाव रणनीति के हिसाब से दूरी बनाना ही बेहतर माना जाता है.
क्या घातक होने वाला है बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला
चुनाव की घोषणा के ठीक पहले और बीच चुनावी मैदान में भी सारे सर्वेक्षणों में कांग्रेस कर्नाटक में वापसी दिखलायी जा रही थी, लेकिन एन वक्त पर कांग्रेस ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कर भाजपा के हाथ एक संवेदनशील मुद्दा थमा दिया. इस फैसले को भी इसी श्रेणी में माना जा सकता है, राजनीति के जानकारों को मानना है कि यदि कर्नाटक चुनाव का प्रबंधन और रणनीति बनाने की जिम्मेवारी सीएम नीतीश के कंधों पर होती, तब शायद इन मुद्दों से दूरी बनायी जाती. इसके साथ ही कई दूसरे मुद्दों पर भी चुपी साध ली जाती.
कर्नाटक चुनाव के बाद राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर उठते सवालों का खात्मा
यहां यह भी जानना जरुरी है कि राहुल गांधी पर अब तक एक गंभीर आरोप यह लगता रहा है कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस किसी भी राज्य में चुनावी जीत हासिल करने में सफल नहीं हो पायी है. हिमाचल में भी राहुल गांधी का कोई दौरा नहीं हुआ था और बाजी कांग्रेस के हाथ लगी गयी थी, लेकिन कर्नाटक में चुनावी की पूरी बागडोर ही राहुल गांधी के हाथ में है, अब यदि कर्नाटक का चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आता है, तब कई मीडिया घरानों और भाजपा के द्वारा राहुल गांधी के बारे में गढ़ी गयी उस मिथक और छवि को धक्का पहुंचेगा और राहुल गांधी एक योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित छवि से बाहर निकलने में कामयाब होंगे. अब देखना होगा कि राहुल गांधी की इस कामयाबी को सीएम नीतीश कुमार कितना पचा पाते हैं? और यह हजम भी होता है नहीं? या देश की राजनीति को अभी एक और उलटबासी का सामना करना होगा.
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