राजमहल के सियासी अखाड़े में ‘गुरुजी दांव,’ लोबिन का दावा गुरु जी हमारे थें, हमारे हैं
Ranchi-आखिरकार लोबिन हेम्ब्रम ने राजमहल संसदीय सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया और इसके साथ ही अपने सियासी गुरु दिशोम गुरु पर अपना दांवा भी ठोक दिया. नामांकन दाखिल करते ही अपने चिर-परिचित अंदाज में लोबिन ने कहा कि किसी की हैसियत नहीं है कि वह गुरुजी से हमको अलग कर सके. हमारी पूरी लड़ाई ही गुरुजी के आदर्शों को स्थापित करने की है, जिस जल जंगल और जमीन की लड़ाई का दिशोम गुरु ने सिंहनाद किया था, आदिवासी-मूलवासी अस्मिता की जो हुंकार लगायी थी, हमारी पूरी लड़ाई दिशोम गुरु के उस सपनों को स्थापित करने की है, हम कल भी झामुमो के साथ थें, आज भी झामुमो के साथ ही है, हमारी जीत झामुमो की जीत है. राजमहल के इस किले को फतह कर गुरुजी के चरणों में भेंट करना है, जिस प्रकार पूरी पार्टी पर आज पिंटू और पंकज मिश्रा जैसे लोगों ने कब्जा जमा लिया है, पार्टी को उससे मुक्ति प्रदान करने की है. झामुमो को एक बार फिर से गुरुजी से आर्दशों पर आगे बढ़ाने की है. यह कौन सा झामुमो है, जहां सत्ता की पूरी चाभी गैर झारखंडियों के हाथ में है, झामुमो के पुराने कार्यकर्ता, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गुरुजी के साथ संघर्ष की राह में गुजारा, आज कोई उनका दुख दर्द सुनने वाला नहीं है, वे अपनी ही पार्टी में साईडलाइन किये जा चुके हैं, ना तो उनकी सलाह सुनी जा रही है और ना ही झामुमो की जमीन को बचाने की कोशिश की जा रही है, झामुमो के इस अधपतन के कारण आदिवासी मूलवासियों में बेचैनी है. उनका धैर्य टूट रहा है, हमारी कोशिश आदिवासी मूलवासियों के उस टूटते धैर्य पर मरहम लगाने की है.
क्या है इस दांव के मायने
दरअसल सियासी जानकारों का दावा है कि राजमहल के किले में लोबिन ने दावा तो जरुर ठोक दिया है, लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं है. संताल की सियासत पर नजर रखने वाला हर शख्स यह जानता है कि आदिवासी-मूलवासी समाज में दिशोम गुरु की क्या छवि है. गुरुजी उनके लिए कोई सियासी नेता भर नहीं है, बल्कि उनकी पहचान है, और सवाल जब पहचान पर खड़ा होता है, तब सारे दूसरे मुद्दे दरकिनार हो जाते हैं. गुरुजी के इस छवि का फसल झामुमो आज तक काटता रहा है, भले ही बदले हालात में अभिषेक प्रसाद पिंटू, पंकज झा और दूसरे गैर आदिवासी-मूलवासी चेहरों की इंट्री हुई हो, लेकिन इससे आदिवासी मूलवासी समाज में गुरुजी प्रतिष्ठा में क्षरण नहीं हुआ. आज भी उनका नाम संताल में एक हद तक जीत की गांरटी है, और लोबिन हेम्ब्रम इस तल्ख हकीकत से पूरी तरह वाकिफ हैं. और यही कारण है कि लोबिन अपने को गुरुजी का सच्चा वारिश बता कर आदिवासी-मूलवासी समाज में अपनी स्वीकार्यता को बचाये रखना चाहते हैं, लोबिन को पता है कि यदि इस संघर्ष को त्रिकोणीय बनाना है, तो इसके लिए गुरुजी की कृपा दृष्टि भले ही नहीं मिले, लेकिन कम से कम विरोधी या गद्दार का टैग भी नहीं लगे.
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