Ranchi-पांचवें चरण के मतदान के बाद अब सबकी निगाहें छठे चरण की ओर है, इसी छठे चरण में रांची, धनबाद, जमशेदपुर और गिरिडीह में उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होना है. ध्यान रहे कि रांची, धनबाद और जमशेदपुर में शहरी मतदाताओं की आबादी अधिक है, जबकि गिरिडीह में ग्रामीण मतदाताओं की बहुलता है. आम रुप से शहरी मतदाताओं के बीच भाजपा और ग्रामीण क्षेत्रों में इंडिया गठबंधन की पकड़ मजबूत मानी जाती है. रांची लोकसभा में भी शहरी मतदाताओं की बहुलता है. लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों की भी है. जहां इचागढ़, सिल्ली और खिजरी ग्रामीण इलाका है, वहीं रांची हटिया और कांके शहरी इलाका है. इस हिसाब से रांची, हटिया और कांके विधान सभा में मतदाताओं की प्राथमिकता इचागढ़, सिल्ली और खिजरी के मतदाताओं से अलग होना स्वाभाविक है. उनके मुद्दे अलग हैं, उनकी प्राथमिकता जूदा है. इसके साथ ही यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि शहरी मतदाताओं की सामाजिक संरचना भी ग्रामीण क्षेत्र से अलग है. जहां शहरी आबादी में प्रवासी मतदाताओं की बहुलता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में आदिवासी-मूलवासियों की बहुलता है. इस हालात में सिर्फ शहरी मतदाताओं के भरोसे रांची लोकसभा के सियासी मिजाज को समझने की कोशिश भूल होगी.
इचागढ़, सिल्ली और खिजरी का सियासी मिजाज
इस हालत में भले ही रांची के मतदाताओं के बीच टाईगर जयराम की पार्टी से सियासी मैदान में उतरे देवेन्द्रनाथ महतो की गिरफ्तारी कोई बड़ा सियासी मुद्दा नजर नहीं आता हो, और इसके साथ ही देवेन्द्र नाथ महतो की इंट्री से कुछ बदलता नजर नहीं आता हो, लेकिन यही बात इचागढ़, सिल्ली और खिजरी के मतदाताओं के बारे में नहीं कहा जा सकता. इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि देवेन्द्र महतो की इस सियासी इंट्री का रांची लोकसभा के चुनावी परिणाम पर क्या असर पड़ने वाला है. क्या देवेन्द्र नाथ की गिरफ्तारी से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ का नुकसान होने वाला है या फिर कांग्रेसी उम्मीदवार यशस्विनी सहाय का रास्ता साफ होने वाला है.
जेल जाने के बावजूद भी तेज है देवेन्द्र नाथ का जन सम्पर्क अभियान
यहां ध्यान रहे कि भले ही आज देवेन्द्र महतो जेल में बंद हो, लेकिन जयराम की एक छोटी सी टुकड़ी आज भी इचागढ़ और दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में जन सम्पर्क अभियान को तेज किये हुए है. खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में कुर्मी मतदाताओं के बीच देवेन्द्र महतो की चर्चा तेजी से हो रही है. हालांकि अंतिम दौर में कुर्मी मतदाताओं का रुख क्या होगा? अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यदि एक और जयराम के समर्थक कुर्मी मतदाताओ के बीच अपना जोर लगाते दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आजसू प्रमुख सुदेश महतो की कोशिश इन कुर्मी मतदाताओं को भाजपा के पाले में लाने की है. बावजूद इसके यदि कुर्मी मतदाताओं का एक हिस्सा देवेन्द्र नाथ के साथ ख़ड़ा होता है, और देवेन्द्र महतो की गैर मौजूदगी में भी उसके पक्ष में अपना मतदान करता है, तो इसका नुकसान किसको होगा?
स्थानीय मुद्दे और जातीय आकांक्षा जोर
यदि हम 2019 के चुनाव परिणाम पर गौर करें तो रामटहल चौधरी के बगावत के बावजूद भी कुर्मी मतदाताओं ने भाजपा का साथ दिया था, लेकिन यह 2019 नहीं है. 2024 के इस मुकाबले में भाजपा को कई मोर्चे पर संकट में देखा जा रहा है, जिस राष्ट्रीय मुद्दों और साम्प्रादायिक टच के आसरे वह सामाजिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहा है, कामयाब होता नहीं दिख रहा है, एक बार फिर से स्थानीय मुद्दे और जातीय आकांक्षा जोर मारता दिख रहा है, सामाजिक-सियासी भागीदारी का सवाल भी उठने लगा है. जहां धनबाद में भाजपा के सामने अगड़ी जातियों की नाराजगी को दूर करने की चुनौती है, वहीं रांची में कुर्मी मतदाताओं को साधने का संकट और इसी सियासी-सामाजिक भागीदारी का सवाल के कारण रामटहल चौधरी को भी कुर्मी मतदाताओं को समझाने में नाकामयाबी हाथ लग रही है, कुर्मी मतदाता यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि इन दोनों ही सियासी पार्टियों ने कुर्मी मतदाताओं का क्या दिया? किसी सियासी दल ने 17 फीसदी कुर्मी आबादी को सियासी नुमाइंदगी देने की कोशिश की. यह वही मतदाता है जो आज देवेन्द्रनाथ महतो को साथ खड़ा दिख रहा है. लेकिन फिर से वही सवाल, कि कुर्मी मतदाताओं की इस नाराजगी का असर क्या होगा? क्या कुर्मी मतदाताओं का बहुसंख्यक हिस्सा देवेन्द्र नाथ महतो के साथ खड़ा होगा? और यदि उसका एक छोटा सा हिस्सा भी देवेन्द्र नाथ के साथ खड़ा रहता है तो यह किसको नुकसान पहुंचायेगा. यह एक आकलन का विषय है, लेकिन पिछले चुनाव की बात को यह नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है. यहां सवाल यह भी खड़ा किया जा सकता है यदि 2019 में कुर्मी मतदाताओं ने राम टहल चौधरी का साथ छोड़ दिया तो इस बार वह देवेन्द्रनाथ महतो का साथ खड़ा क्यों होगी? इस सवाल का कोई अंतिम निष्कर्ष निकालने के पहले यह भी ध्यान रखना होगा कि रामटहल चौधरी के उलट देवेन्द्रनाथ महतो के साथ युवाओं की एक टोली है, छात्रों की एक फौज है, और इन युवाओं को कमतर आंकना एक भूल हो सकती है.
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