Patna-एक तरफ गृहमंत्री अमित शाह मिथिलांचल में लालू नीतीश की जोड़ी को तेल पानी का संयोग बताकर बिहार की राजनीति को मंथने की कोशिश कर रहे थें, इस बात का दावा कर रहे थें कि भला तेल और पानी एक साथ कैसे जुट सकता है, हालांकि इसमें तेल कौन और पानी कौन इस पर अमित शाह चुप्पी साधे रहें. लेकिन इस सब से अलग ठीक इसी वक्त बड़ी ही बेफिक्री से मिथिलांचल से दूर पटना में बैठकर लालू यादव राजस्थानी थाली का स्वाद ले रहे थें. जैसे अमित शाह का आना जाना बिहार की राजनीति के लिए कोई अहम घटना नहीं है, और ना ही बिहार की सियासी फिजा में कोई बदलाव होना है. बिहार की धरती पर तो वही होगा जो लालू नीतीश की जोड़ी की तय करेगा.
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियायों की बाढ़
लेकिन जैसे ही तेजप्रताप यादव ने इस तस्वीर को शेयर किया, प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गयी, सबकी जुबां पर एक सलाह, अभी अभी तो किडनी का ट्रांसप्लांट हुआ है, अभी तो होटल का खाना से दूर रहने की सख्त जरुरत है, एक यूजर ने तो तेजप्रताप को भी सलाह दे दी, भला बीमार पिता को भी कोई होटल का खाना खिलाता है. वैसे इस तस्वीर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनकी बेटी रोहिणी आचार्या ने लिखा है- 'देश का हर नागरिक सतर्क हो जाए भाजपा लोकतंत्र को मिटना चाहती है।' भाजपा एड़ी-चोटी का लगा चुकी जोर फिर भी लालू जी के हौसले को ना सकी तोड़।' आगे लिखा-' लालू जी एक्टिव होते हैं तो तड़ीपार बेचैन होने लगते हैं.
कभी कुल्फी तो कभी आइसक्रीम का आनन्द, आज भी कायम है लालू का जलबा
ध्यान रहे कि यह पहला मौका नहीं है, जब लालू यादव पटना की सड़कों पर निकले हैं, अभी कुछ दिन पहले ही वह शिवानंद तिवारी को अपने साथ लेकर गंगा मेरिन ड्राइव का लुत्फ उठाने निकल पड़े थें. कभी कुल्फी तो कभी आइसक्रीम का आनन्द लेते लालू आज भी लोगों से संवाद करना चाहते हैं. भले ही बीमारी ने उनके शरीर को थका दिया हो, लेकिन वह राजनीतिक रुप से दूर दूर तक थके नहीं दिखते.
कभी लालू ने साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ लाठी में तेल पिलाने का आह्वान किया था
यहां याद रहे कि यह लालू यादव ही हैं, जिन्होंने आज से करीबन एक दशक पहले नफरती और साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ आम अवाम को अपनी लाठी में तेल पिलाने का आह्वान किया था. हालांकि पिछले कुछ एक वर्षों में देश की राजनीति में साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ता ही गया, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लालू यादव ने वक्त रहते साम्प्रदायिक राजनीति के दुष्परिणाम को पहचान लिया था और गांव-देहात के लोगों लाठी में तेल पिलाकर साम्प्रदायिक ताकतों को होश ठिकाना लगाने का हुंकार भरा था.
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