Patna- बिहार की राजनीति में कांग्रेस, भाजपा, राजद और जदूय के बाद अपने को सबसे बड़ा खिलाड़ी मान चुकी माले ने पांच सीटों पर सरेंडर करने का निर्णय लिया और औपचारिक रुप से लोकसभा की पांच सीटों पर पहलवान उतारने के लिए राजद सुप्रीमो लालू यादव को अपनी सूची सौंप दी है, इसके पहले तक वह लोक सभा की कूल 10 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर रहा था, लेकिन बाद में जमीनी हालत और समीकरणों का ताना बाना समझते हुए 5 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश करने का फैसला किया गया. माले की ओर से पांच सीटों की यह सूची लालू यादव को सौंप दी गयी है, जल्द ही लालू यादव और सीएम नीतीश के बीच इस पर चर्चा होगी और दोनों की औपचारिक सहमति के बाद सब कुछ साफ हो जायेगा.
60 फीसदी स्ट्राईक रेट के साथ बुलंद है माले का हौसला
याद रहे कि 2019 में माले ने आरा से राजू यादव, सीवान से अमरनाथ यादव, काराकाट से राजा राम और जहानाबाद से कुंती देवी को मैदान में उतारा था, लेकिन उसके हिस्से में कोई भी सीट नहीं आयी, लेकिन विधान सभा चुनाव के दौरान उसने 60 फीसदी स्ट्राईक रेट के साथ सफलता हासिल कर यह साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति में लाल सलाम की वापसी हो चुकी है, और राजद के समर्थन का सीधा लाभ माले और दूसरे वाम दलों को मिल रहा है, और इसके उलट राजद को वाम दलों की जमीनी सक्रियता से लाभ मिल रहा है.
यहां याद रहे कि कभी राजद सुप्रीमो लालू यादव के राजनीतिक अवतरण को बिहार की राजनीति से वाम दलों की विदाई की मुख्य वजह मानी जाती थी और इस बात का दावा किया जाता था कि लालू का पिछड़ा-दलित तेवर और जमीनी राजनीति के कदमताल से बिहार की राजनीति से लाल सलाम के परखच्चे उड़ गयें और बेहद चतुराई से लालू ने वाम दलों के मजबूत जनाधार को राजद की ओर मोड़ दिया. इस आरोप में कितना दम है, यह एक अलग बहस का विषय है, लेकिन आंक़ड़ें इस बात का गवाह हैं कि जैसे जैसे लालू की राजनीति परवान चढ़ता गया, वैसे वैसे बिहार की राजनीति से लाल सलाम का ग्राफ भी गिरता गया.
हालांकि जमीन पर उनका संघर्ष जरुर जारी रहा, लेकिन विधान सभा के अन्दर उनकी गुंज समाप्त हो गयी. लेकिन उसी राजनीति का दूसरा पक्ष यह भी है कि जब भाजपा-नीतीश की जोड़ी के सामने लालू अपने आप को बेहद कमजोर और असहाय महसूस करने लगें, तब जाकर लालू यादव को इस बात का एहसास हुआ कि यदि बिहार की जमीन पर धर्मनिरपेक्षता की पौध को जिंदा रखना है, जन सरोकार और जनमुद्दों की राजनीति को बचाये रखना है, उसूलों की राजनीति को शर्मसार नहीं होने देना है, और सबसे बड़ी बात भाजपा की इस विभाजनकारी नीतियों को उखाड़ फेंकने की राजनीति को उसके अंजाम तक पहुंचाना है तो लाल सलाम की सियासत वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करना होगा और लालू ने यही किया और उसका परिणाम भी सामने आया.
महज 19 सीटों पर मुकाबला कर माले ने 12 पर फहराया जीत का परचम
बिहार की जमीन पर माले की पकड़ को इससे समझा जा सकता है कि 2019 के विधान सभा चुनाव में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ते हुए इसके हिस्से में महज 19 सीट दिया गया, लेकिन इसने पचास फीसदी से ज्यादा स्ट्राईक रेट विजय का परचम फहराते हुए 19 में से 12 सीटों पर विजय का पताका फहरा दिया, जबकि अपने को राष्ट्रीय पार्टी का दम भरने वाली कांग्रेस 70 सीटों पर मुकाबला कर महज 19 पर सिमट गयी. दावा किया जाता है कि यदि उस वक्त राजद ने कांग्रेस की सीटों में कटौती कर माले के खाते में दे दिया होता तो आज बिहार में राजद की अपने सहयोगियों के साथ सरकार होती और आज तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार की डिप्टी नहीं बनना पड़ता.
लोकसभा में गूंजेगी लाल सलाम की गूंज
खैर जो हो, आज फिर से राजनीति एक करवट ले रही है, और माले ने 2024 के दंगल में बिहार से पांच पहलवानों को उतारने का एलान कर यह साफ कर दिया है कि अब विधान सभा के साथ ही लोक सभा के अन्दर भी लाल सलाम की गूंज सुनाई देने वाली है, खबर यह है कि माले की ओर से इन सीटों की सूची राजद सुप्रीमों को सौंप दी गयी है, और अपने स्ट्राइक रेट के साथ माले इस बात को लेकर काफी आशान्वित है कि यह पांच सीटें उसके हिस्से में आयेगी. अब देखना होगा कि इस मामले में राजद सुप्रीमों लालू और नीतीश क्या फैसला लेते हैं.
4+