Ranchi- सिमरिया, चतरा (चतरा जिला), मनीका, लातेहार (लातेहार) और पांकी (पलामू जिला) की पांच विधान सभाओं को अपने आप में समेटे चतरा लोकसभा का एक मात्र अनारक्षित विधान सभा पलामू जिले का पांकी विधान सभा है. इन पांच विधान सभाओं पर आज के दिन सिमरिया विधान सभा में भाजपा के किशुन कुमार दास, चतरा विधान सभा से राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता, मनीका विधान सभा सीट से कांग्रेस के रामचन्द्र सिंह, लातेहार विधान सभा से झामुमो के वैधनाथ राम, जबकि पांकी विधान सभा से भाजपा के शशिभूषण कुशवाहा विधायक हैं.
यदि विधान सभा की मौजूदा ताकत के हिसाब से देखें तो पांच में से दो विधान सभाओं पर भाजपा, एक-एक पर राजद, झाममो और कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन चतरा लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 से भाजपा का कब्जा है. वर्ष 2014 में सुनील कुमार सिंह ने झारखंड विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष इंदरसिंह नामधारी से इस लोकसभा की जो कमान संभाली है, आज तक वह उसे बरकरार रखे हुए हैं. इस बीच उनके खिलाफ वर्ष 2009 में कांग्रेस के मनोज कुमार यादव तो वर्ष 2014 में कांग्रेस के ही धीरज कुमार साहू ने मोर्चा संभाला, लेकिन दोनों ही बार जीत का सेहरा सुनील कुमार सिंह के माथे बंधी. हालांकि जहां 2019 में जीत की मार्जिन करीबन चार लाख की थी, धीरज साहू के सामने आते ही वह फासला सिमट कर करीबन डेढ़ लाख रह गया.
बदली बदली नजर आ रही है चतरा की फिजा
लेकिन इस बार चतरा की फिजा कुछ बदली बदली सी नजर आने लगी है. हवा का रुख विपरीत दिशा में जाता दिख रहा है. यदि मुखर नहीं भी कहें तो भी, दबी जुबान से विरोध के स्वर तेज होते नजर आ रहे हैं. हर किसी की अपनी शिकायत है, कुछ शिकायतों का संबंध सियासत से है तो कुछ का सीधा संबंध चतरा लोकसभा की पुरातन और अनन्त समस्याओं को लेकर है. किसी का दावा है कि सारे वादे हवा हवाई साबित हुए, तो कुछ लोग इस बात की शिकायत करते नजर आ रहे हैं कि साहेब तो कभी दर्शन ही नहीं होते, जीतने के बाद उनका दर्शन भी दुर्लभ हो चुका है. वादों और उन वादों का जमीनी शक्ल लेना तो दूर की बात है. हालांकि अभी से यह कहना मुश्किल है कि यह नाराजगी आगे जाकर और भी घनिभूत होती है या अंतिम समय में मान-मनौव्वल के बाद इसकी भरपाई कर ली जायेगी, भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ही कार्यकर्ताओं को साथ लाने की होगी.
चतरा के अखाड़े में पूर्व सीएम रघुवर दास के उतरने की चर्चा तेज
लेकिन इस बीच सियासी गलियारों में चतरा के अखाड़े में पूर्व सीएम रघुवर दास के उतरने की चर्चा भी तेज हो रही है. दावा किया जा रहा है कि झारखंड भाजपा अपने दो महारथियों बाबूलाल और रघुवर दास को दिल्ली भेज कर ‘झारखंड भाजपा का सीएम चेहरा कौन” के सवाल पर विराम लगाना चाहती है. ताकि झारखंड की राजनीति में नये चेहरों को अवसर प्राप्त हो सके. माना जाता कि अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी सौंपना इसी सियासी रणनीति का हिस्सा है, भाजपा अमर बाउरी के रुप में भविष्य का नेतृत्व तैयार करने की कोशिश कर रही है.
रघुवर की चर्चा तेज होती ही विरोधी कस रहे हैं तंज
वैसे रघुवर दास को मोर्चे पर उतारने पर भी सवाल खड़े किये जाने लगे हैं, विरोधियों का तंज है कि जब सीएम रहते हुए भी रघुवर अपना किला नहीं बचा पायें तो वह चतरा में जीत कैसे दिलवा पायेंगे, और खास कर उस हालत में जब पूरे देश में पीएम मोदी का जलबा अपना उतार पर दिख रहा है. हालांकि इसका फैसला तो चुनावी समर में होगा कि रघुवर दास सुनील कुमार सिंह से कितना बेहतर योद्धा साबित होंगे
सियासी बंबडर देख खुद अपने लिए भी नया शामियाना तलाश सकते हैं सुनील सिंह
वैसे इसका काउंटर दावा यह भी है कि इन सियासी हलचलों से खुद सुनील कुमार सिंह भी अनजान नहीं है, वग इस सियासी बबंडर की काट के लिए खुद भी किसी नये शामियाने की तलाश में है, हालांकि अभी से यह सब कुछ महज सियासी अफवाह भी नजर आता है, जब तक अंतिम समय नहीं आ जाता और इस बात की पक्की पुष्टि नहीं हो जाती कि भाजपा का प्लान क्या है, आज के दिन कोई भी सियासतदान अपना पत्ता खोलने को तैयार नहीं है.
पांकी विधायक शशिभूषण सिंह भी साबित हो सकते हैं तुरुप का पत्ता
वैसे एक दावा यह भी है कि चतरा लोकसभा पर सीट पर पांकी विधायक शशि भूषण कुशवाहा की नजर भी लगी हुई है. यदि भाजपा नेतृत्व ने मौका दिया तो शशिभूषण कुशवाहा अपना पैर पीछे नहीं खींचेगे.
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