Ranchi- हेमंत सरकार के एक फरमान को लेकर मीडियाकर्मियों में कई तरह की चर्चायें तेज है. सरकार के इस आदेश को अलग-अलग नजरिये से देखने की कोशिश की जा रही है. पक्ष-विपक्ष में अपने-अपने तर्क होने के बावजूद इस पर प्रतिक्रिया देने से बचने की कोशिश की जा रही है. हालांकि कई लोगों का तर्क तथ्यों पर आधारित नजर नहीं आ रहा.
खबरों की मॉनिटरिंग के पोर्टल का निर्माण
दरअसल झारखंड सरकार ने खबरों की मॉनिटरिंग के लिए एक पोर्टल का निर्माण किया है. जिसके माध्यम से अखबारों में प्रकाशित हो रही खबरों की सामग्री पर नजर रखी जा रही है. राज्य की प्रधान सचिव वंदना दाडेल ने राज्य के सभी अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, सचिव और उपायुक्तों को इस पोर्टल पर आ रही सूचनाओं पर नजर रखने का निर्देश दिया गया है. अधिकारियों को इस बात का साफ निर्देश है कि यदि किसी भी अखबार में कोई भी भ्रामक और गलत खबर प्रकाशित होती है, तो उसकी सूचना तुरंत उस संबंधित अखबार को दी जाये, ताकि खबरों का खंडन प्रकाशित करवाया जा सके.
भ्रामक और तथ्यहीन खबरों के प्रकाशन पर रोक लगाने की पहल
साफ है कि सरकार की कोशिश भ्रामक और तथ्यहीन खबरों के प्रकाशन पर रोक लगाने की है. सरकार का दावा है कि हालिया दिनों में कई अखबारों में भ्रामक खबरों का प्रकाशन हुआ है, कई ऐसी खबरों का भी प्रकाशन किया गया है, जिनका कोई आधार नहीं था, सरकार का मानना है कि इस तरह के भ्रामक और तथ्यहीन खबरों के प्रकाशन से सरकार की छवि प्रभावित होती है, लोगों में सरकार के काम-काज के प्रति गलत संदेश जाता है.
वेब पोर्टल और यू ट्यूब चैनलों से मांगी गयी है कई जानकारियां
ध्यान रहे कि इसके पहले भी सरकार ने झारखंड में कार्यरत तमाम वेब पोर्टल और यू ट्यूब चैनलों के लिए एक दिशा निर्देश जारी किया था, जिसमें किसी भी खबर में राज्य के मुखिया का अनावश्यक उल्लेख करने से बचने की सलाह दी गयी थी, साथ ही झारखंड में कार्यरत सभी वेब पोर्टल और यू ट्यूब चैनलों को सूचना जनसम्पर्क विभाग से पंजीकरण करवाने का निर्देश दिया गया था. जिसके लिए उनसे उनके दफ्तर का पता, और कार्यरत मानव संसाधनों का बयौरे की मांग की गयी थी.
अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर भी नहीं है कोई निगरानी प्रणाली
हालांकि अभी राष्ट्रीय स्तर पर भी वेबसाइट्स और यू ट्यूब चैनल के रजिस्ट्रेशन की कोई प्रणाली नहीं है, भारत सरकार इस दिशा में पहल करती जरुर नजर आ रही है, वेब पोर्टल और यू ट्यूब की खबरों की मानिटरिंग के लिए सेल्फ रेगुलेटरी बाडी का निर्माण किये जाने की दिशा में कार्रवाई की जा रही है.
भ्रामक और तथ्यहीन खबरों से पाठकों को बचाना मीडिया संस्थानों की प्राथमिक जिम्मेवारी
लेकिन यदि हम झारखंड सरकार के द्वारा जारी आदेश की विवेचना करें तो यह आदेश कहीं से भी मीडिया संस्थानों की स्वायत्तता में दखलअंदाजी की कोशिश नजर नहीं आती. सरकार की चिंता तो भ्रामक और तथ्यहीन खबरों के प्रकाशन को लेकर है. इससे इंकार कैसे किया जा सकता है कि यह मीडिया संस्थानों की प्राथमिक जिम्मेवारी है कि वह अपने पाठकों तक पुष्ट और तथ्यपूर्ण खबरों को पहुंचाएं और इसके साथ ही भ्रामक खबरों से अपने पाठकों को सचेत करें. इसमें कोई विवाद की स्थिति तो नजर नहीं आती. दरअसल यह सब कुछ लिखने की जरुरत भी इसीलिए पड़ी की एक नामचीन मीडिया संस्थान ने इस आदेश की तुलना इमरजेंसी जैसे हालत से की है, और सरकार के फैसले पर सवाल खड़ें किये हैं. जबकि हमें भ्रामक और तथ्यहीन खबरों के खिलाफ इस लड़ाई में सरकार का साथ देना चाहिए था.
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