Patna-सनातन धर्म में शुद्रों और महिलाओं की निम्नतर स्थिति, छुआछूत, जाति विभेद और कथित दोयम दर्जे की जिंदगी के खिलाफ उदयनिधि स्टालिन के बयान के बाद अब बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर ने रामचरित मानस के खिलाफ एक बार फिर से मोर्चा खोल दिया है. चन्द्रशेखर ने कहा है कि रामचरित मानस में पोटेशियम साइनाइड भरा पड़ा है, और जब तक इसका पोटेशियम साइनाइड खत्म नहीं कर दिया जाता, वह इसके खिलाफ अपना विरोध जारी रखेंगे.
चन्द्रेशखर का सवाल चरित्रहीन ब्राह्मणों की पूजा और पढ़े लिखे चरित्रवान पिछड़ों की उपेक्षा क्यों
बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चन्द्रशेखर ने रामचरित मानस के सुंदर कांड के एक दोहे का जिक्र करते हुए पूछा कि हमारी जीभ काटने की कीमत 10 करोड़ तय की गयी है, लेकिन सवाल है कि मेरी गर्दन की कीमत क्या होगा, भाजपा और उससे जुड़े संगठनों को इसका जवाब देना चाहिए कि मानस में पिछड़ों दलितों के प्रति इतनी नफरत क्यों भरी पड़ी है. क्या भाजपा दलित पिछड़ों के खिलाफ उस नफरत के साथ खड़ी है? क्या हम शुद्र है, क्या शुद्रों को संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है. पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा का अभिप्राय क्या है? क्या हमारी जीभ काटने से इसका समाधान हो जायेगा? आज नहीं तो कल हमें इन प्रश्नों से टकराना ही होगा, आखिर वेद पढ़ लिख कर भी शुद्र पूजा के योग्य क्यों नहीं है? और गुण हीन, चरित्रहीन ब्राह्मणों की पूजा क्यों होगी?
दक्षिण के सामाजिक विमर्श को उत्तर भारत की राजनीति में खड़ा करने की कोशिश
हालांकि चन्द्रशेखर ने उदयनिधि स्टालिन का नाम नहीं लिया, लेकिन उनके बयान से साफ है कि वह उदयनिधि के द्वारा खड़े किये गये सामाजिक विमर्श को उतर भारत की राजनीति में भी बढ़ाना चाहते हैं, ताकि रामासामी पेरियार, सीएन अन्नादुरई के सामाजिक-राजनीतिक संघर्षों से दलित पिछड़ों को आतप्रोत किया जा सके.
पूर्वज चिम्पैंजी तो जातियों का आविष्कार किसने किया
ध्यान रहे कि चन्द्रशेखर के लिए यह पहला मौका नहीं है, इसके पहले भी वह रामचरित मानस को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं, और मानस को दलित पिछड़ों के खिलाफ एक षडयंत्र बताते रहे हैं. चन्द्रशेखर ने पूछा है कि जब विज्ञान कहता है कि हमारे सबके पूर्वज चिम्पैंजी थें, तब यह जातियां कहां से आयी. किस सामाजिक वर्ग की हिफाजत के लिए जातियों का आविष्कार किया गया.
दक्षिण की तरह उतर में भी सामाजिक विमर्श के मुद्दे बदलने की कोशिश
साफ है कि एक तरफ भाजपा सनातन का सवाल खड़ा कर अपने कोर वोटरों को लामबंद करने में लगी हुई है तो उसकी काट में दलित-पिछड़ों की किलेबंदी भी तेज होती नजर आ रही है. देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव आते आते यह राजनीति कौन सा मोड़ लेती है. लेकिन इतना साफ है कि रामासामी पेरियार, सीएन अन्नादुरई का सामाजिक संघर्ष उतर भारत की राजनीति में भी अपनी पकड़ बनाती नजर आ रही है और यही कारण है कि दलित पिछड़ों के द्वारा सामाजिक विमर्श के मुद्दे बदले जा रहे हैं या उसकी कोशिश की जा रही है.
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