TNP DESK-आखिरकार नव वर्ष के ठीक पहले जदयू ने अपने पुराने राष्ट्रीय अध्यक्ष को अलविदा कह सीएम नीतीश के माथे राष्ट्रीय अध्यक्ष का ताज रखने का फैसला कर लिया. और इसके साथ ही ललन सिंह को लेकर पिछले कुछ दिनों से मीडिया में चल रही तमाम आशंकाओं का समापन हो गया. लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया कि जब ललन सिंह को पार्टी अध्यक्ष के रुप में अपना इस्तीफा सौंपना ही था तो वह इस सवाल पर बार बार मीडिया पर उखड़ते नजर क्यों आ रहे थें? यह तोहमत क्यों लगा रहे थें कि आप सबों को भाजपा हेड क्वार्टर से जैसा निर्देश मिलता है, उसके अनुरुप ही सुर्खियां बना कर अपने आका की सेवा करने में जुट जाते हैं.
क्या आरसीपी सिंह के रास्ते चलने वाले हैं ललन सिंह
सवाल यह भी उमड़ने-घुमड़ने लगा है कि क्या ललन सिंह भी आरसीपी सिंह के रास्ते चलने वाले हैं. क्या ललन सिंह को इस्तीफे के मजबूर किया गया है या ललन सिंह का यह इस्तीफा उनकी चाहत पर लिया गया है. क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में अपनी विदाई के बाद ललन सिंह का सीएम नीतीश के प्रति जो एकनिष्ठा है, उसमें कोई बदलाव आने वाला है, और क्या ललन सिंह को किसी और जिम्मेदारी सौंपी जाने वाली है? और क्या इस ताजपोशी का इंडिया गठबंधन से भी कुछ रिस्ता है? क्या सीएम नीतीश के सिर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताजपोशी कर जदयू कोई बड़ा खेल करने वाला है? क्या जदयू 2024 के महासंग्राम के पहले पहले अपने पुराने सिपहसलारों जो किसी ना किसी कारण पार्टी को छोड़ गये हैं, उनकी वापसी करवाने की रणनीति पर काम कर रहा है? या फिर नीतीश कुमार के सिर पर यह तोजपाशी महज इसलिए की गयी है कि ताकि उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर आरसीपी सिंह का एक बार फिर से पुनर्वापसी का रास्ता साफ किया जाय.
उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर आरसीपी सिंह के लिए रास्ता साफ करने की कवायद
दरअसल ललन सिंह की विदाई के साथ ही पिछले कुछ दिनों से उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर आरसीपी सिंह की वापसी की चर्चा भी सियासी गलियारों में गरम है, दावा किया जा रहा है कि उपेन्द्र कुशवाहा राष्ट्रीय अध्यक्ष से कम किसी भी पद पर वापस लौटने को तैयार नहीं हैं, लेकिन जैसे ही सीएम नीतीश ने यह ताज अपने माथे ग्रहण कर लिया है, उनका यह दावा समाप्त हो गया है, दरअसल खबर यह भी है कि उपेन्द्र कुशवाहा की ललन सिंह से 36 का रिस्ता है, दोनों के बराबर टकराव की स्थिति रहती है, वर्चस्व का खेल चलता है, लेकिन सीएम नीतीश अपने राजनीतिक उत्कर्ष के लिए दोनों में से किसी को भी अपने से दूर रखना नहीं चाहतें, और यही कारण है कि जिस राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर यह विवाद की स्थिति थी, सीएम नीतीश ने उसे अपने पास ही रखने का फैसला कर लिया, ताकि आरसीपी सिंह से लेकर उपेन्द्र कुशवाहा की वापसी का मार्ग परस्त हो सके.
2024 के पहले पार्टी की पूरी कमान अपने पास रखना चाहते हैं सीएम नीतीश
लेकिन एक दूसरा दावा यह भी है कि नीतीश कुमार जल्द ही इंडिया गठबंधन में एक बड़ी भूमिका में आने वाले हैं, और इसके लिए बेहद जरुरी है कि पार्टी की पूरी कमान उनके हाथ में हो. दावा यह भी है कि ललन सिंह की यह विदाई उनकी पेशकश पर ही हुआ है, अंतिम समय तक सीएम नीतीश ने ललन सिंह को मनाने की कोशिश की, राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर बने रहने का अनुरोध किया, लेकिन ललन सिंह अपना पूरा फोकस अपने संसदीय सीट के साथ ही नीतीश कुमार के संसदीय सीट के लिए करना चाहते थें, खबर यह है कि नीतीश कुमार यूपी के फूलपुर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है, और उस किले को ध्वस्त करने के लिए उन्हे ललन सिंह जैसे सिपहसलाह की जरुरत होगी, और खुद ललन सिंह भी इस दायित्व का निर्वहन बढ़ चढ़ कर करना चाहते हैं और यही कारण है कि उनके द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त करने का दवाब बनाया गया, जिसे आखिरकार सीएम नीतीश ने स्वीकार कर लिया.
इंडिया गठबंधन में किसी बड़ी भूमिका की संभावना
यहां ध्यान रहे कि बिहार वह पहला राज्य है, जहां इंडिया गठबंधन में सीटों की सहमति बन चुकी है, यहां राजद जदयू अपने अपने हिस्से में17-17 सीट रखने पर सहमति बना ली है, जबकि कांग्रेस और वाम दलों के लिए 6 सीट छोड़ी गयी है. यह खबर तब है जबकि तमाम मीडिया चैनलों में सीएम नीतीश का इंडिया गठबंधन को बॉय बॉय करने की खबर चलायी जा रही थी. इस हालत में यदि अचानक से यह खबर मिले की सीएम नीतीश को इंडिया गठबंधन में किसी भूमिका सौंपी जाती है तो आश्यर्च नहीं होना चाहिए. तमाम दावों प्रतिदावों के बीच अभी नीतीश की सियासत खत्म नहीं हुई है, अभी उनके हिस्से की राजनीतिक उलटबांसियां बाकी है.
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