Ranchi-झारखंड की सियासत में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत का ट्रैक रिकार्ड बेहद खराब रहा है, झारखंड गठन के बाद अब तक महज दो ही निर्दलीय के हिस्से जीत की वरमाला आयी है. यह कारनामा भी एक ही वर्ष 2009 में ही अंजाम दिया गया गया है. और इस चुनौती को अंजाम देने वालों में से एक नाम है पूर्व विधान सभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी और दूसरा नाम है पूर्व सीएम मधु कोड़ा का. 2009 में इंदर सिंह नामधारी ने चतरा के निर्दलीय ताल ठोकते हुए अप्रत्याशित रुप से कांग्रेस के धीरज साहू और राजद के नागमणि कुशवाहा को धूल चटाने में सफलता प्राप्त की थी, वहीं चाईबासा के अखाड़े से निर्दलीय ताल ठोंकते हुए पूर्व सीएम मधु कोड़ा ने भाजपा के बड़कुंवर गगराई को करीबन एक लाख मतों से शिकस्त देने में कामयाबी हासिल की थी.
झारखंड की जमीन निर्दलीयों के लिए माकूल नहीं
यदि बात 2024 की करें तो इस बार पलामू-09, लोरहदगा-15, खूंटी-07 सिंहभूम- 14, निर्दलीय उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं. यदि हम 2019 के आंकडों को समझने की कोशिश करें तो कुल 229 निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थें, और इसमें से 201 की जमानत जब्त हो गयी थी. सवाल यह है कि यदि झारखंड की सियासी जमीन निर्दलीयों के लिए माकूल नहीं है, तो फिर लोहरदगा से चमरा लिंडा, कोडरमा से जयप्रकाश वर्मा और राजमहल के लोबिन हेम्ब्रम के साथ क्या होने वाला है, झारखंड की वही परंपरा निभाई जाने वाली है या फिर मधु कोड़ा और इंदर सिंह नामधारी का कमाल होने वाला है. इसका जवाब तो चार जून को ही सामने आयेगा, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि ये तीनों भले ही जीत की वरमाला पहनने में नाकामयाब रहें, लेकिन अपनी इंट्री के साथ ही यह खेल बिगाड़ने की कुब्बत जरुर रखते हैं. इंडिया गठबंधन की मुख्य चिंता यही है.
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