LS POLL 2024- कांग्रेस की दूसरी सूची में जैसे ही गोड्डा, धनबाद और चतरा से प्रत्याशियों का एलान सामने आया. विरोध और नाराजगी की खबरें सामने आने लगी. हालांकि मुखर विरोध की खबरें मुख्य रुप से अल्पसंख्यक समाज की ओर से ही आयी है, लेकिन अंदरखाने पिछड़ी जातियों के द्वारा भी इस पर सवाल ख़ड़ा किया जा रहा है. और इसके साथ ही इस बात पर बहस तेज होती नजर आ रही है कि जिस सामाजिक न्याय के नारे को उछाल-उछाल राहुल गांधी दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को कांग्रेस के साथ जोड़ने की मुहिम चलाते दिख रहे हैं. उस सामाजिक न्याय की झलक इस सूची में दूर-दूर तक दिखलायी ही नहीं पड़ती. पूछा जा रहा है कि राहुल गांधी की सोच और झारखंड प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर की सियासत अलग-अलग दिशाओं में क्यों बढ़ती नजर आ रही है. यदि सब कुछ इसी प्रकार आगे बढ़ता रहा तो लोकसभा चुनाव के साथ ही आने वाले विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. और इसके साथ ही सबकी नजर दिल्ली की ओर लगी है, ताकि इस जख्म पर आलाकमान की मरहम लग सके.
सामाजिक न्याय को सामने रख कर हो सकता है कोई फैसला
लेकिन इस सबसे अलग इस कोहराम के बाद सियासी गलियारों में यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि क्या कांग्रेस के अंदर रांची संसदीय सीट को लेकर एक बार फिर से मंथन का दौरा जारी होने वाला है. क्या जिस आक्रोश को अलग-अलग सामाजिक समूहों के द्वारा विभिन्न मंचों पर अभिव्यक्त किया जा रहा है, या फिर बेहद सादगी और चुप्पी के साथ आलाकमान को जमीन पर पसरते आक्रोश से अवगत करवाया जा रहा है, क्या उसके बाद कमसे कम रांची सीट पर सामाजिक न्याय को सामने रख कर कोई फैसला होने वाला है.
उलगुलान रैली तक प्रत्याशी के एलान में देरी क्यों?
वैसे सियासी जानकारों का दावा है कि रांची संसदीय सीट के लिए भी प्रत्याशी का एलान हो चुका है. लेकिन उलगुलान रैली तक इसकी घोषणा रोक दी गयी है, फिर सवाल खड़ा होता है कि इसकी वजह क्या है? क्या रांची के लिए भी एक ऐसा चेहरा सामने आने वाला है, जिसके बाद एक नये कोहराम की शुरुआत होने वाली है. सवाल यह भी है कि आखिर कांग्रेस इस तरह के फैसले क्यों ले रही है? जिसको सामने आने के बाद खूशी की लहर के बजाय असंतोष और बगावत की खबर सामने आ रही है.
कांग्रेस की साजिश का शिकार हो गया भाजपा का यह दिग्गज नेता
दरअसल दावा किया जाता है कि रांची संसदीय सीट के लिए सुबोधकांत सहाय की बेटी और बन्ना गुप्ता का नाम सबसे आगे हैं. जबकि रांची संसदीय सीट से पांच बार लोकसभा पहुंच चुके पूर्व भाजपा नेता रामटहल चौधरी को टिकट के आश्वासन के बाद ही पार्टी में शामिल करवाया गया था. लेकिन यह आश्वासन किसी काम का नहीं रहा और भाजपा का यह दिग्गज कुर्मी चेहरा कांग्रेस की अन्दरुनी सियासत का शिकार हो गया. लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस तरीके से दूसरी सूची के बाद पूरे झारखंड से विद्रोह और बगावत की खबर सामने आ रही है, क्या कांग्रेस अब रांची में भी वही प्रयोग दुहराते हुए कुर्मी मतदाताओं को अपने से दूर करने की तैयारी में हैं. या इसका अवसर प्रदान करने वाली है. हालांकि इस बीच कुछ सियासी हलकों से यह दावा सामने आ रहा है कि इस अंसतोष और आक्रोश के बाद कांग्रेस आलाकमान बेहद सतर्क है, और बहुत संभव है कि रांची पर एक बार फिर से मंथन की शुरुआत हो, ताकि कुर्मी मतदाताओं के बीच कोई गलत संदेश देकर पार्टी एक नयी फजीहत में फंसे
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