Ranchi-झारखंड-बिहार में दिन पर दिन जमीन खोते माओवादियों ने अपनी रणनीति में बड़े बदलाव के संकेत दिये है, कभी जमींदारों, शोषक समूहों और महाजनों के खिलाफ संघर्ष करते माओवादियों ने अब 1932 का खतियान, पेसा कानून, सीएनटी-एसपीटी एक्ट को कड़ाई से लागू करने की मांग और हिन्दू राष्ट्र की मांग के खिलाफ बिगुल फूंकने का संकेत दिया है.
एयरटेल का टॉवर उड़ाने के बाद माओवादियों ने छोड़ा पर्चा
चाईबासा के गोईलकेरा इलाके में एयरटेल का टॉवर उड़ाने के बाद माओवादियों के द्वारा कुछ पर्चे छोड़े गये हैं, उस पर्चे के मजमून से माओवादियों की इस बदली रणनीति को आसानी से समझा जा सकता है, अपने पर्चे में माओवादियों के द्वारा पेसा कानून को लागू किये जाने, सीएनटी-एसपीटी एक्ट को कड़ाई से लागू करने की मांग की गयी है, साथ ही भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग का विरोध करते हुए कहा गया है कि राज्य और केन्द्र दोनों ही स्थानों पर फासिस्टों की सरकार है. इन फासिस्ट शक्तियों के द्वारा जल जंगल और जमीन को कॉरपोरेट घरानों को सौंपा जा रहा है. माओवादियों के द्वारा पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों से पुलिस फोर्स को हटाने की मांग की गयी है. इसके साथ ही फर्जी तरीके ग्रामीणों को जेल भेजे जाने का आरोप भी लगाया गया है.
जंगली इलाका होने के कारण दो दिन के बाद पहुंची पुलिस
बताया जाता है कि माओवादियों ने 15 तारीख को टॉवर को आग लगाया था, जबकि 16 मई की देर रात को टॉवर में ब्लास्ट कर दिया, लेकिन जंगली इलाका होने के कारण पुलिस आज गोईलकेरा इलाके में पहुंच सकी, जिसके बाद पुलिस ने घटना स्थल से भारी मात्रा में पर्चा बरामद किया.
माओवादी के जनाधार में देखी जा रही है कमी
ध्यान रहे कि पिछले कुछ वर्षो में झारखंड बिहार की पुलिस के द्वारा माओवादियों के सफाये किये जाने के दावे किये जाते रहे हैं, माओवादी वारदात में कमी भी देखी गयी है, जानकारों का मानना है कि माओवादियों के जनाधार में कमी का मुख्य कारण कल्याणकारी गतिविधियों का ग्रासरूट पर पहुंचा था, विकास की गतिविधियों के संचालन से युवाओं का माओवादियों से मोह भंग हुआ है, जिस जमींदार, शोषक समूहों और महाजनों के खिलाफ वह लड़ाई लड़ने का दावा करते थें, विकास की गतिविधियों और ग्रामीण स्तर पर संसाधनों के निर्माण से जमीनी हालात में बदलाव आया है, यही कारण है कि उनके पुराने मुद्दे अब अप्रसांगिक हो गये हैं. लेकिन जिस प्रकार से माओवादियों के द्वारा अब पेसा कानून, सीएनटी, एसपीटी एक्ट, 1932 का खतियान और दूसरे मुद्दे को मुद्दा बनाया जा रहा है, वह सरकार के लिए एक खतरे की घंटी हो सकता है.
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