रांची(RANCHI)-बाबूलाल के चेहरे को आगे कर संताल और कोल्हान के किले को धवस्त करने की भाजपा की तैयारियों पर चुस्की लेते हुए प्रदीप यादव ने कहा कि भाजपा तो 2024 की मैदान से कब ही बाहर निकल चुकी है. अब वह चाहे जितना प्रयोग कर ले रिंग में उसकी वापसी नहीं होने वाली है. जिस बाबूलाल के आसरे भाजपा 2024 के मैदान में वापसी करने की कोशिश करती दिख रही है, वह बाबूलाल तो ना आदिवासियों के नेता हैं और ना ही गैर आदिवासियों के. ठीक 2024 के पहले बाबूलाल की ताजपोशी भाजपा का एक आत्मघाती प्रयोग है.
ना आदिवासी और ना गैर आदिवासी बाबूलाल किसी के नेता नहीं
प्रदीप यादव ने कहा कि आज की राजनीति में बाबूलाल की पहचान सिर्फ एक भाजपाई नेता की है, जिसका काम भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाना है. आदिवासी मुद्दे और सरोकार से उनका अब कोई जुड़ाव नहीं रहा, यही कारण है कि वह उस संताल में मिनी एनआरसी का राग अलाप रहे हैं, जहां पिछले चुनाव में भाजपा को 18 में से 14 सीटों पर भयानक हार का सामना करना पड़ा था, और कोल्हान में तो उसकी बोहनी भी नहीं हुई थी. मिनी एनआरसी की मांग करने वाले बाबूलाल से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या वह अपनी डोमिसाइल की मांग से पीछे हट चुके हैं, यदि वह डोमिसाइल की मांग से पीछे हट रहे हैं तो साफ है कि उनकी राजनीति अब बदल चुकी है और इसी बदली राजनीति का हिस्सा है मिनी एनआरसी की सियासत.
संताल और कोल्हान तय करेगा झारखंड की भावी राजनीति
यहां बता दें कि पिछले बार पिछले विधान सभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस ने संताल परगना की 18 में से 14 सीटों पर विजय पताका फहराया था, जबकि कोल्हान प्रमंडल में तो भाजपा का खाता तक नहीं खुला था. एनआरसी जैसे मुद्दे तब भी भाजपा की ओर से उछाले गये थें, तब भी बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर हवा बनाने की कोशिश की गयी थी, लेकिन बावजूद इसके भाजपा के हाथ कुछ नहीं आया था.
प्रदीप यादव का इशारा इसी ओर था, उनका दावा है कि आदिवासी होने मात्र से कोई आदिवासियों का नेता नहीं हो जाता, उसकी राजनीति भी तो आदिवासी मुददों के इर्द गिर्द होनी चाहिए, बाबूलाल इसमें कहां खड़े हैं? कोल्हान हो या संताल आज हर जगह 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति, सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार के मुद्दे गर्म हैं, भाजपा को इन मुद्दों पर बात करनी चाहिए और इन मुद्दों के समाधान में उसकी क्या भूमिका रही सामने लाने चाहिए.
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