रांची(RANCHI)- 1932 का खतियान को लेकर पूरे राज्य में जनाक्रोश को देखते हुए भाजपा भी अब इसके पक्ष में बैटिंग करती नजर आने लगी है. जब से प्रदेश अध्यक्ष के रुप में बाबूलाल की ताजपोशी हुई है, भाजपा में यह बदलाव देखा जाने लगा है. नहीं तो इसके पहले भाजपा 1932 के सवाल पर कन्नी काटती नजर आती थी. इसकी एक झलक आज विधान सभा के अन्दर और बाहर भी देखने को मिली. भाजपा विधायकों ने 60/40 नाय चलतो की तख्तियां हाथ में लेकर विधान सभा के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. जबकि विधान सभा के अन्दर 60/40 नाय चलतो के नारे लगाये गयें.
मॉनसून सत्र का तीसरा दिन
ध्यान रहे कि आज मॉनसून सत्र का तीसरा दिन है, सरकार की मंशा इसी सत्र में पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, मॉब लिंचिंग और खतियान आधारित स्थानीय नीति को सदन के पटल पर रखने की है. साफ है कि हेमंत सरकार अपने समर्थकों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह 1932 से पीछे हटने वाली नहीं है, और यदि इसमें कोई बाधा है, तो वह भाजपा है, जिसके इशारे पर राजभवन के द्वारा इसे वापस किया जा रहा है, पहले ही हेमंत सरकार भाजपा पर 1932 का विरोध करने का आरोप लगाती रही है, और भाजपा भी इसके पहले तक इस मुद्दे पर खुल कर बयान नहीं दे रही थी.
बाबूलाल की वापसी से बदल रही भाजपा
लेकिन जबसे बाबूलाल की भाजपा में वापसी हुई है, भाजपा की रणनीति में बदलाव आता दिख रहा है, वह अब हेमंत सोरेन की सरकार को उसी के अखाड़े में पटकनी देना चाहती है, यही कारण है कि उसके द्वारा अब 1932 को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं, हेमंत सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया जा रहा है, और यह दिखलाने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा 1932 के साथ है. और वह 60/40 की नियोजन नीति का विरोध में छात्रों के साथ खड़ा है.
60/40 की यह नीति अस्थाई है
लेकिन यहां यह भी ध्यान रहे कि खुद हेमंत सोरेन ने कई अवसरों पर इस बात को दुहराया है कि 60/40 की यह नीति अस्थाई है, क्योंकि वह नियोजन की प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहती. उसका अंतिम लक्ष्य खतियान आधारित नियोजन नीति को लाने की है. लेकिन राजनीतिक विवशता और रणनीति के तहत फिलहाल दो कदम पिछे हटाया गया है, जैसे ही केन्द्र में गैर भाजपा की सरकार बनती है, वह सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति को अमलीजामा पहनाने की कोशिश करेगी
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