Ranchi- बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक किये जाने के बाद पड़ोसी राज्य झारखंड में भी राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है. हालांकि आजसू, राजद और झामुमो के द्वारा पहले से ही इसकी मांग की जा रही थी. लेकिन कांग्रेस-भाजपा के द्वारा अब तक इस पर प्रतिक्रिया देने से बचा जा रहा था. लेकिन जैसे ही राहुल गांधी ने जातीय जनगणना का समर्थन कर कांग्रेस के परंपरागत रुख में बदलाव का संकेत दिया. झारखंड कांग्रेस के नेताओं के सूर अचानक से बदलते नजर आने लगे, उनकी चुप्पी टूटने लगी और आज के दिन झारखंड कांग्रेस पूरे दम खम के साथ जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ा दिखलाने की कोशिश कर रहा है. जातीय जनगणना के समर्थन में हर दिन किसी ना किसी कांग्रेसी नेता का बयान सामने आता है.
बिहार की तरह झारखंड में भी भाजपा की असमंजस बरकरार
राहुल गांधी के बदले स्टैंड के बाद कांग्रेस की दुविधा तो दूर गयी, लेकिन झारखंड भाजपा की यह दुविधा और भी गहराती नजर आने लगी है. झारखंड भाजपा का कोई भी नेता इस मुद्दे पर अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं है. हालांकि उनके द्वारा इसका विरोध नहीं किया जा रहा, लेकिन इस सवाल को टालने की कोशिश जरुर की जा रही है. वहीं भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा के द्वारा इस मुद्दे पर विचार मंथन की बात कही जा रही है, इस बात का दावा किया जा है कि अभी इस मुद्दे पर पार्टी में बहस जारी है, और जल्द ही इस भाजपा का स्टैंड साफ कर दिया जायेगा.
बिहार में भी असमंजस की शिकार थी भाजपा
ध्यान रहे कि बिहार में भी भाजपा की यही स्थिति थी, एक तरफ वह पीएम मोदी से मिलने जाने वाले सर्वदलीय समिति का हिस्सा भी थी, दूसरी तरफ वह इसका विरोध भी करती थी. दरअसल जातीय जनगणना के मुद्दे पर बिहार भाजपा दो फाड़ में बंटा नजर आने लगा था, एक तरफ पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और उनकी टीम थी, जो नीतीश कुमार पर हमलावर होने के बावजूद जातीय जनगणना का समर्थन कर रही थी, वहीं गिरिराज सिंह जैसे नेताओं का बयान भी था जो इसे बिहार में जातीयता का जहर फैलाने की कवायद बता रहे थें.
यहां बता दें कि दरअसल उस सर्वदलीय समिति को पीएम मोदी ने साफ लफ्जों में बता दिया था कि केन्द्र की भाजपा सरकार जातीय जनगणना का पक्षधर नहीं है. हां यदि राज्य सरकारें करवाना चाहें तो अपने संसाधनों पर इसको करवा सकते हैं.
केन्द्र का रुख सामने आते ही भाजपा नेताओं ने शुरु किया था विरोध
लेकिन केन्द्र की पोल तब खुल गयी जब यह मामला कोर्ट सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, केन्द्र की तरफ से पहले एक एफिडेविट पेश कर यह कहा गया कि राज्यों को जातीय जनगणना या इसके जैसा कुछ भी करवाने का अधिकार नहीं है, लेकिन महज 48 घंटों के अंदर-अंदर उस एफिडेविट को बदल दिया गया, और यह लिखा गया कि जातीय जनगणना का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को है, लेकिन राज्य सरकार जाति आधारित गणना जैसे काम करवा सकती है. इस नये एफिडेविट से राज्यों के लिए जाति आधारित जनगणना का रास्ता साफ हो गया.
इससे साफ हो गया कि केन्द्र सरकार साफ मन से जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं है. केन्द्रीय भाजपा का यह रुख सामने आते ही बिहार में भाजपा नेताओं के द्वारा जातीय जनगणना का विरोध किया जाने लगा, हालांति तब भी सुशील मोदी और उनकी टीम जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ी रही.
जातीय जनगणना के सवाल से बचना चाहती है भाजपा
साफ है कि जातीय जनगणना के सवाल पर बिहार भाजपा में असमंजस की स्थिति थी, और ठीक वही असमंजस झारखंड भाजपा नेताओं के सामने भी है. और यही कारण है कि जब सारे दलों ने अपने तुरुप के पते खोल दिये हैं, लेकिन भाजपा इस मुद्दे पर अभी विचार मंथन की बात कर रही है. कई नेता जो इसका समर्थन भी करते नजर आते हैं, वह अपना नाम मीडिया में सार्वजनिक नहीं करना चाहते, वह पार्टी की राय सामने आने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश भाजपा नेतृत्व है की वह इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं ले पा रही है.
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