रांची(Ranchi)- झारखंड की कमान संभालते ही बाबूलाल भाजपा के पुराने सहयागियों के साथ ही कांग्रेस के वैसे चेहरों को साथ लाने की कवायद में जुटे हुए हैं, जिन्हे लगता है कि कांग्रेस में उन्हे उनकी सियासी हैसियत के अनुसार सम्मान नहीं मिल रहा है. पार्टी और सरकार में उनके कद के अनुरुप भूमिका की तलाश नहीं की जा रही. दावा किया जा रहा है कि इन चेहरों में वर्तमान विधायकों से लेकर मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे राजनेता भी शामिल हैं.
झारखंड की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले पत्रकारों का दावा है कि रघुवर दास की विदाई के साथ ही केन्द्रीय आलाकमान के द्वारा बाबूलाल को ऑपरेशन झारखंड की खुली छुट्ट दे दी गयी है. और वह बेहद खामोशी से इस ऑपरेशन को कामयाब बनाने में लगे हुए हैं. और आज नहीं तो कल ये तमाम चेहरे भाजपा में अपने भविष्य की तलाश करते नजर आयेंगे.
गीता कोड़ा के कारण फंस सकती है मधु कोड़ा की इंट्री
दावा किया जा रहा है कि बाबूलाल की पहली प्राथमिकता कोल्हान और संताल के उस किले को ध्वस्त करना है, जो तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी झामुमो का मजबूत किला रहा है और इसी रणनीति के तहत झामुमो के पूर्व कद्दावर नेता और ओबीसी सियासत का एक बड़ा चेहरा माने जाने वाले शैलेन्द्र महतो के साथ ही पूर्व सीएम मधु कोड़ा को भाजपा में लाने की कोशिश की जा रही है, हालांकि अपनी पत्नी गीता कोड़ा के कारण मधु कोड़ा की इंट्री अभी फंसती नजर आ रही है, क्योंकि गीता कोड़ा अभी कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी सिंहभूम के सांसद है, लेकिन शैलेन्द्र महतो की भाजपा में इंट्री इसी महीने हो सकती है, भाजपा अध्यक्ष की मौजूदगी में पार्टी में उन्हे कमल छाप का पट्टा पहनाया जा सकता है.
कोल्हान को भेदे बगैर भाजपा के लिए सत्ता तक पहुंचना संभव नहीं
शैलेन्द्र महतो और मधु कोड़ा को भाजपा में शामिल करवाकर बाबूलाल झामुमो का अभेद किला माने जाने वाले कोल्हान को ध्वस्त करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. बाबूलाल का आकलन है कि यदि शैलेन्द्र महतो के साथ मधु कोड़ा को खड़ा कर दिया जाय तो भाजपा इस किले को ध्वस्त भले ही नहीं कर पाये, लेकिन उसमें दरार जरुर पैदा कर सकता है
चक्रधरपुर से शुरु हुआ था शैलेन्द्र महतो का संघर्ष
यहां बता दें कि शैलेन्द्र महतो मूलत: चक्रधरपुर के रहने वाले हैं, और यहीं से उन्होंने उस बीड़ी आन्दोलन की शुरुआत की थी, जिसके कारण वह बाद के दिनों में झारखंड की सियासत का एक बड़ा चेहरा बन कर सामने आयें. हालांकि बाद में उनका रिश्ता चक्रधरपुर से उस तरह का नहीं रहा, और वह जमशेदपुर की सियासत में ज्यादा मशगुल हो गयें, जहां से वह और उनकी पत्नी आभा महतो दो दो बार संसद की चौखट तक भी पहुंचने में कामयाब रहें, बताया जाता है कि कोल्हान की सियासी नब्ज पर उनकी पकड़ आज भी मजबूत है. शैलेन्द्र महतो को आगे कर कोल्हान के महतो-कुड़मी समाज को भी साधा जा सकता है. दूसरी तरफ बाबूलाल के निशाने पर पूर्व सांसद मधु कोड़ा हैं.
कोल्हान की सभी छह विधान सभाओं पर कांग्रेस झामुमो का कब्जा
लेकिन यहां सवाल यह खड़ा होता है कि क्या वाकई यह इतना आसान है, क्या वाकई इन दोनों को आगे कर झामुमो के इस किले को ध्वस्त किया जा सकता है, यहां याद रहे कि पश्चिमी सिंहभूम में कुछ छह विधान सभा आता है. 1-सरायकेला 2 चाईबासा 3 मझगांव, 4 जगन्नाथपुर 5 मनोहरपुर और चक्रधरपुर. और यह सभी विधान सभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. और आज के दिन इन पांच विधानसभाओं पर झामुमो का कब्जा है, जबकि जगन्नाथपुर सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. सरायकेला से चंपई सोरन, चाईबास से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और जगन्नाथपुर से कांग्रेस के सोना राम सिंकु विधायक हैं.
पिछले 23 वर्षों से जगन्नाथपुर विधान सभा पर कायम रहा है मधु कोड़ा का जलबा
इसमें से सिर्फ एक सीट जगन्नाथपुर को मधु कोड़ा का मजबूत आधार माना जा सकता है, वर्ष 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था, और उसके बाद यह सीट मधुकोड़ा परिवार के हाथ में ही रही, दो दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधान सभा से विधान सभा तक पहुंचने में कामयाब रही, जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया तो कांग्रेस ने इस सीट से सोना राम सिंकु पर अपना दांव लगाया और वह जीतने में कामयाब रहें, माना जा है कि सोना राम सिंकू की इस जीत के पीछे भी मधु कोड़ा की ताकत ही रही थी. कुल मिलाकर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है. और बाबूलाल का मधुकोड़ा पर दांव लगाने की वजह भी यही है. लेकिन इससे साथ यह भी याद रखना चाहिए कि इसके अतिरिक्त पांच सीटों पर झामुमो का मजबूत आधार रहा है, और बगैर झामुमो के सहयोग से गीता कोड़ा के लिए संसद की राह देखना इतना आसान नहीं रहने वाला है, लेकिन बाबूलाल की रणनीति मधु कोड़ा के साथ ही शैलेन्द्र महतो की जोड़ी खड़ी कर इस किले को ध्वस्त करने की है.
मधु कोड़ा पर झारखंड को लूटने का आरोप लगाती रही है भाजपा
लेकिन यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मधु कोड़ा पर यही भाजपा झारखंड को लूटने का आरोप लगाती रही है, खुद बाबूलाल के पुराने बयानों की तलाश करें तो इसकी तस्दीक की जा सकती है. लेकिन राजनीति मे पुराने बयानों का कोई मतलब नहीं होता, बदले हुए सियासी हालात में हर राजनीतिक दल अपने लिए नये प्यादों की खोज करता है, लेकिन देखना होगा कि इन बूझे प्यादों की बदलौत भाजपा इस किले को ध्वस्त करने में कितना कामयाब होती है. क्योंकि जगन्नाथपुर विधान सभा से बाहर मधु कोड़ा को कितना जलबा चलेगा और पिछले एक दशक से राजनीति के बियावान में भटक रहे शैलेन्द्र महतो कौन सा करिश्मा दिखालयेंगे, इस पर सियासी जानकारों को संदेह है.
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