Ranchi-जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी तेज हो रही है. झारखंड की सियासत में बसंत सोरेन की भूमिका केन्द्र में आती दिख रही है. प्रत्याशी चयन का मामला हो या फिर दूसरी सांगठनिक गतिविधियां, उसकी एक-एक बारीकियों को बड़े भाई हेमंत तक पहुंचाने की जिम्मेवारी छोटे भाई बंसत सोरेन के कंधों पर आती दिख रही है. यानि राजपाट छोड़ भले ही बड़े भाई हेमंत आज काल कोठरी में कैद हो और इधर मंत्री पद का ताज छोटे भाई बसंत के कंधों पर आ पड़ी हो. लेकिन बसंत सोरेन को इस मंत्री पद से जुड़ी शानो-शौकत से ज्यादा, उस खड़ाऊँ की याद सता रही है, जिसके साथ बड़े भाई हेमंत की यादें जुड़ी है. होटवार जेल में तब कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला, जब बसंत सोरेन गिरिडीह प्रत्याशी मथुरा प्रसाद, राजमहल प्रत्याशी विजय हांसदा, पश्चिमी सिंहभूम प्रत्याशी जोबा मांझी के साथ पूर्व सीएम हेमंत से मिलने पहुंचें. दोनों भाईयों की खामोश आंखें, भरत मिलाप की याद दिला रही थी, यानि बसंत यह सवाल पूछ रहे हों कि एक तरफ टिकट की चाहत में अपनों की नाराजगी और दूसरी ओर से सत्ता की चाहत में घर से उठती बगावत की आग में, इस मंत्री पद का क्या करुं? कैसे संभालता था तूम यह सारा झंझट?
हेमंत को सामने देख बेहद भावुक हो गयें बसंत
दावा किया जाता है कि जैसे ही हेमंत की नजर छोटे भाई बसंत पर पड़ी, उनकी आंखें भर आयी, और इधर बंसत भी अपनी आंसुओं की धार को रोक नहीं पायें. मानो कह रहें हो, यह मंत्री पद तो कांटों का वह हार है, जो ना तो रात में नींद लेने देता है और ना ही दिन में शांति और सुकून. तेरे रहते को मेरी जिंदगी तो ऐसी नहीं थी, तब तो मैं पूरी नींद लेता था और सुकून की जिंदगी जीता था, और सत्ता की यह सारी दुश्वारियां तो तुम्हारे कंधों पर थी, एक बार फिर से तुम अपना यह ताज ले लो और हमें अपनी पुरानी जिंदगी लौटा दो, और नहीं तो कम से कम अपना खडाउं दे दो, ताकि तुम्हारी अनुपस्थिति में कम से कम उसको गले लगा, आंसु बहा अपने मन को शांत तो कर सकूं, तुम नहीं तो तुम्हारा यह खड़ाऊ ही हमें संघर्ष की ताकत देगी. खैर कुछ ही पलों के बाद दोनों भाईयों ने एक दूसरे को संभाला, एक दूसरे से गले मिलकर अपनी-अपनी संवेदानाओं का इजहार किया. और उसके बाद शुरु हो गयी सियासी दुरभिसंधियों का मकड़जाल की कहानियां, लोबिन से लेकर चमरा लिंडा की बगावत की खबरें. कोल्हान से जोबा के बदले किसी हो जनजाति से प्रत्याशी देने की उठती मांग और 21 अप्रैल को उलगुलान महारैली को लेकर तैयारियों की चर्चा. आखिरकार इन तमाम चर्चाओं का निष्कर्ष यह निकला कि, सियासत का सामान्य हिस्सा है यह सियासी दुरभिसंधिया. मानो छोटे भाई बसंत से कह रहे हों कि तुम थकने-हारने और मन खिन्न करने बजाय इससे जुझना सीखो, मुकाबला करने की आदत डालो, जरा की मुसीबत आयी नहीं की, सीधा होटवार आने के बजाय उसका समाधान की राह निकालो, और तुम अकले कहां हो, तुम्हारे साथ तो तुम्हारी पूरी फौज खड़ी है, इसी फौज से तो हमने हर सियासी संघर्ष का मुकाबला किया है, तुम भी इसकी आदत डाल लो.
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