रांची(RANCHI)-डुमरी के महाअखाड़े में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और सूबे के मुखिया हेमंत सोरेन के साथ ही अब और एक बड़ी इंट्री होने जा रही है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन की ओर से असदुद्दीन ओवैसी अब अपने प्रत्याशी के पक्ष में मोर्चा संभालने जा रहे हैं और इसके साथ ही डुमरी का यह महामुकाबला त्रिकोणीय होने का दावा किया जाने लगा है.
पिछले विधान सभा चुनाव में 24 हजार मत काट चुका है एआईएमआईएम
ध्यान रहे कि 2019 के विधान सभा चुनाव में डुमरी में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की ओर से चुनाव लड़ रहे अब्बदूल मोबिन रिजवी करीबन 24 हजार मत मिले थें, यह झारखंड के किसी भी विधान सभा में एआईएमआईएम को मिला सर्वोच्च मत था. इस बार भी एआईएमआईएम की ओर से अब्बदूल मोबिन रिजवी ने ही मोर्चा संभाला है. लेकिन तब और अब में बड़ा अंतर यह है कि 2019 के विधान सभा चुनाव में डुमरी में ओबैसी की इंट्री नहीं हुई थी, अब्बदूल मोबीन रिजवी ने सिर्फ एआईएमआईएम के झंडे का इस्तेमाल कर 24 हजार मत हासिल कर लिया था, लेकिन इस बार खुद असदुद्दीन ओवैसी मोर्चा संभालने जा रहे हैं, और यहीं से अब तक के बने बनाये सभी समीकरणों का ध्वस्त होने का खतरा पैदा होता नजर आने लगा है.
असदुद्दीन ओवैसी की गर्जना से बदल सकता वोट का समीकरण
दावा किया जा रहा है जैसे ही डुमरी के मैदान में असदुद्दीन ओवैसी की गर्जना होगी, और यह दावा किया जायेगा कि हेमंत सोरेन और दूसरी पार्टियों को सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए. लेकिन उन्हें मुसलमानों को प्रतिनिधित्व देना पसंद नहीं है. उनके लिए मुसलमानों का काम सिर्फ सिर्फ वोट देना है, जैसा की वह आम तौर पर बोलते रहते हैं. जिसके बाद अल्पसंख्यक मतदाताओं में धुर्वीकरण की प्रक्रिया तेज होगी और इसका सीधा लाभ एनडीए गठबंधन को होगा.
यहां याद रहें कि 2019 के विधान सभा चुनाव में आजसू भाजपा की राहें अलग अलग थी, दोनों अपने अपने दम पर ताल ठोक रहे थें और दोनों ही पार्टियों को करीबन 36-36 हजार वोट मिले थें, जबकि जगरनाथ महतो के हिस्से में 74 हजार मत आया था, अब सवाल यह है कि यदि आजसू भाजपा का वोट इस बार एक साथ खड़ा हो जाता है और असदुद्दीन ओवैसी की इंट्री से एआईएमआईएम का आकंड़ा 40 पार कर जाता है, तो इसका सीधा लाभ किसे मिलेगा?
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