Patna-बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने के साथ ही हरि सहनी ने सीएम नीतीश कुमार मोर्चा खोल दिया है. नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनाये जाने पर तंज कसते हुए कहा कि कहा कि वह अच्छा खासा बिहार के सीएम के रुप में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे थें, लेकिन अचानक से एक दिन पीएम बनने का ख्याल और इसके साथ ही बिहार की बर्बादी की शुरुआत हो गयी.
आज पूरा देश उन्हे पलटू राम कहता है,यह सुनकर अच्छा नहीं लगता, बिहार की हालत यह है कि कभी पत्रकार की हत्या होती है, तो कभी गवाह को रास्ते से उठा लिया जाता है, लेकिन इस सबसे बेहखर सीएम नीतीश कहते हैं कि उन्हे कुछ मालूम नहीं. भला ऐसे में बिहार कैसे चलेगा.
यहां बता दें कि आज भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने हरि सहनी को बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने की घोषणा की है. हरि सहनी मूल रुप से दरभंगा जिले के हैं, वह दरभंगा का भाजपा जिला अध्यक्ष भी रह चुके हैं, उनका राजनीतिक अनुभव बेहद कम है, वर्ष 2005 में उन्हे केवटी विधान सभा से टिकट देने की चर्चा भी हुई थी, लेकिन एन वक्त पर टिकट काट दिया गया था, बाद में वर्ष 2022 में उन्हे एमएलसी बनाया गया.
दरअसल भाजपा की कोशिश हरि सहनी को आगे लाकर सीएम नीतीश के अति पिछड़ा आधार मतों में सेंधमारी की है. इसके साथ ही वह मुकेश सहनी की राजनीति पर भी अंकुश लगाना चाहती है, क्योंकि जिस तेजी से बिहार की राजनीति में मुकेश सहनी का जनाधार में बढ़ा है , भाजपा के अन्दरखाने एक बेचैनी देखी जा रही है, हालांकि अभी भी उसकी कोशिश मुकेश सहनी को अपने साथ खड़ा करने की है, लेकिन मुकेश सहनी भाजपा की शर्तों पर साथ चलने को तैयार नहीं है, वह किसी भी कीमत पर चिराग पासवान से कम सीटों पर समझौते को तैयार नहीं है, मुकेश सहनी से बात नहीं बनता देख आखिरकार भाजपा ने हरि सहनी को आगे करने का फैसला कर लिया.
भाजपा के सवर्ण आधार में बेचैनी
यहां यह भी ध्यान रहे कि सम्राट चौधरी के बाद हरि सहनी को आगे करने से भाजपा के सवर्ण आधार में एक प्रकार की बेचैनी भी है. क्योंकि जिस तरह नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की राजनीति के काट में भाजपा एक के बाद एक पिछड़ा कार्ड खेलती जा रही, उसके परंपरागत सवर्ण मतदाताओं में नाराजगी बढ़ रही है, इस वर्ग का दावा है कि यदि जदयू और राजद की तरह ही भाजपा का भी पिछड़ाकरण हो जायेगा, तब उनकी राजनीति का क्या होगा. फिर तो हम सिर्फ मतदाता बन कर रह जायेंगे, जो स्थिति कुछ दिनों पहले तक पिछड़ों और दलितों की थी. फिर उनका राजद और जदयू के साथ ही रहने में क्या बुराई है.
लेकिन भाजपा आलाकमान की चिंता कुछ और है
लेकिन भाजपा आलाकमान की चिंता जुदा है, उसे इस जमीनी हकीकत का भान है कि वह 20 फीसदी सवर्ण मतों के साथ बिहार की सत्ता पर कभी काबिज नहीं हो सकती, और यदि उसे सत्ता के इर्द-गिर्द खड़ा भी होना है, तो उसे अति पिछड़ी जातियों को अपने साथ लाना होगा, क्योंकि यादव और अल्पसंख्यक मतों पर पहले से ही राजद का दबदबा है, जबकि कोयरी-कुर्मी और अति पिछड़ी जातियों पर नीतीश कुमार की पकड़ अच्छी है, साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भी नीतीश कुमार के चेहरे को सम्मान के साथ देखा जाता है, बावजूद इसके भाजपा के लिए यदि कुछ गुंजाइश बनती भी है तो वह अति पिछड़ी जातियों और दलित जातियों के बीच ही बनती है, आबादी के ख्याल से भी देखें तो बिहार में अति पिछड़ों की आबादी करीबन 33 फीसदी मानी जाती है, जबकि दलितों की आबादी करीबन 15 फीसदी है, इस प्रकार इनकी कुल आबादी लगभग 48 फीसदी की हो जाती है, भाजपा का मानना है कि यदि वह इसका 40 फीसदी हिस्सा भी तोड़ने में सफल हो जाता है तो बिहार में उसकी राजनीति चल सकती है.
जातीय जनगणना का आंकड़ा जारी होते ही बदल सकती है बिहार की राजनीति
इस बीच सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की घोषणा कर बिहार की जाति आधारित राजनीति में पहले ही तूफान खड़ा कर दिया है. माना जाता है कि इसका आंकड़ा जारी होने के बाद बिहार की राजनीति में अति पिछड़ों और दलितों का दबदबा और भी विस्तार लेगा, इसलिए बेहतरी इसी में हैं कि अभी से ही अति पिछड़ों और दलित जातियों को अपने साथ खड़ा किया जाय.
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