पटना(PATNA)- राजनीति का जादूगर वही होता है, जो वक्त की नजाकत को भांप कर अपना अंतिम पासा फेंकता है, एक बार आपने अपना पासा गलत चला की नहीं, आपको हाशिये का सिपाही बनते देर नहीं लगती. शायद लोजपा सुप्रीमो चिराग को राजनीति की इस कड़वी सच्चाई का ज्ञान है.
जब पिता रामविलास पासवान को यूपीए में जाने से रोक कर एनडीए पर सवार हुए थें चिराग
याद रहे कि वर्ष 2014 में जब तब के मौसम वैज्ञानिक माने जाने वाले रामविलास करीबन करीबन यूपीए खेमे में जान की अपनी अंतिम तैयारी कर चुके थें, लेकिन फिल्मी दुनिया की रंगीन सवारी कर बाहर निकले बिहार के इस नये मौसम वैज्ञानिक ने देश की राजनीतिक फिजा को पढ़ने में देरी नहीं की और मोदी की चलने वाली आंधी को अपने पिता रामविलास पासवान से पहले ही भांप लिया और अंतिम समय में लोजपा एनडीए का हिस्सा बन गया. ध्यान रहे कि वह दौर था जब रामविलास पासवान का यूपीए में जाना तय माना जा रहा था. लेकिन दिल्ली में राजनाथ सिंह की एक मुलाकात के बाद सब कुछ बदल गया था.
राजनीति के दुमुहाने पर खड़ा चिराग
आज राजनीति के उसी दुमुहाने पर खड़े हैं चिराग, वह अंतिम समय तक एनडीए खेमा और महागठबंधन की ताकत को समझने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी नजर सिर्फ बिहार की सियासत पर ही नहीं टिकी है, दिल्ली की सियासत को भी टटोल रही है. मीडिया के दावे चाहे जो हो, पटना में बैठकर चिराग चाहे अपने चाचा नीतीश के खिलाफ जीतना भी विषवमन करें, लेकिन एनडीए के साथ ही यूपीए खेमा के साथ उनके सम्पर्क टूटे नहीं है. वह तोड़ना भी नहीं चाहते, भाजपा के सामने वह अपने को विकल्पहीन योद्धा के रुप में कदापी प्रस्तूत नहीं करना चाहते.
बिहार में महागठबंधन की वापसी से आश्वस्त हैं चिराग, लेकिन दिल्ली को लेकर है दुविधा बरकरार
लेकिन जैसा की कहा गया कि उनकी एक नजर 2024 में होनी वाली संभावित उथल पथल पर भी लगी हुई है. वह इस बात तो भली भांति समझ रहें कि यूपीए खेमा की बिहार में वापसी कोई मुश्किल काम नहीं है. लेकिन सवाल यह है कि महागठबंधन की इस जीत से उन्हें मिलेगा क्या? सीएम की ताजपोशी तो तेजस्वी के कंधों पर होगी, हद से हद उन्हे किसी मंत्री पद की जिम्मेवारी दी जायेगी.ट
कितनी बाकी है मोदी की आंधी परखने में लगे हैं चिराग
तब सवाल यह उठता है कि चिराग किस बात का आकलन कर रहे हैं. दरअसल चिराग 2024 की लड़ाई को समझने की कोशिश कर रहे हैं, वह आश्वस्त होना चाह रहे हैं कि मोदी की आंधी अभी कितनी बाकी है, यही कारण है कि उनकी नजर अपने चाचा नीतीश की एक-एक राजनीति पासे पर लगी हुई है. दुविधा इस बात को लेकर है कि यदि वह एनडीए खेमा की सवारी कर गयें और इधर चाचा नीतीश का पासा चल निकला तो पूरे पांच वर्ष राजनीतिक वनवास में काटने की बाध्यता होगी और तब शायद ही उनके दूसरे चाचा राजद सुप्रीमो लालू यादव और मुंहबोली बहन मीसा भारती उनकी मदद कर सकें.
लालू के कॉल को सम्मान
इसी राजनीतिक दुविधा के शिकार होकर चिराग चाचा लालू के कॉल को उतना ही सम्मान दे रहे हैं और जब उनके दरवाजे पर दौड़ते-हांफते नित्यानंद की हाजरी लग रही है तो वह उसे भी नकार नहीं रहे हैं, लेकिन शर्त कुछ ऐसी रखी जा रही है कि वह भाजपा को स्वीकार नहीं हो.
जीतन राम मांझी की तरह किसी जल्दबाजी में नहीं है चिराग
विश्लेषकों का मानना है कि चिराग अपना राजनीतिक पासा अभी चलने की जल्दबाजी में नहीं है. उनकी नजर विपक्ष की तैयारियों पर टिकी हुई है, इसके साथ ही वह राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की ताकत को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे ही वह इस बात को लेकर आश्वस्त हो जाते है कि तमाम उतार के बावजूद भी पीएम मोदी का चेहरा अभी एनडीए को जीत दिलाने में सक्षम है, वह अपनी शर्तों में ढील देंगे, एनडीए की सवारी करेंगे, लेकिन जैसी ही राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वापसी होती, वह अपने कथित राम का हनुमान बनने के बजाय राहुल के साथ गलबहिंया डालने में देरी नहीं करेंगे.
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