Ranchi- नरोदा हत्याकांड मामले की जांच कर रहे स्पेशल कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया. कोर्ट ने सभी आरोपियों को निर्दोष करार दिया है. इस फैसले से भाजपा नेता माया कोडनानी, बाबू बजरंगी के साथ ही सभी 86 आरोपियों को बड़ी राहत मिली है.
नरोदा बंद के बाद भड़की थी हिंसा
ध्यान रहे कि वर्ष 2002 में गोधरा कांड के विरोध में भाजपा और दूसरे हिन्दूवादी संगठनों के द्वारा नरोदा गांव में बंद का आयोजन किया गया था, लेकिन बंद के दौरान हिंसा भड़क उठी, और एक-एक कर 11 लोगों की जिंदगी इस दंगे की भेंट चढ़ गयी, बाद में यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनने लगी, दंगा भड़काने के आरोप में भाजपा नेता माया कोडनानी, बाबू बजरंगी की घेराबंदी की जाने लगी, इन दोनों को इस दंगें का मुख्य किरदार बताया जाने लगा. विपक्ष और खासकर कांग्रेस के द्वारा इसे बड़ा मुद्दा बनाया गया था.लेकिन अब घटना के 21 साल स्पेशल कोर्ट के द्वारा सभी आरोपियों को बरी करारा दिया गया है.
क्या है गोधरा कांड, जिसके बाद साम्प्रदायिक आग की चपेट में आया था नरोदा गांव
यहां बता दें कि 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस में सवार होकर कारसेवकों का एक दल गुजरात पहुंचा था, गुजरात को गोधरा पहुंचते ही कार सेवकों के डिब्बों में आग लगा दी गयी थी, जिसमें कार सेवकों की मौत हुई थी.
बंद के बाद साम्प्रदायिक दंगें की शुरुआत
27 फरवरी को गोधऱा कांड के बाद 28 फरवरी को नरोदा गांव और नरोद पाटिया में भाजपा और दूसरे हिन्दूवादी संगठनों के द्वारा बंद का आह्वान किया गया था. दावा किया जाता है कि इसी बंद के दौरान भीड़ की ओर से हिंसा की शुरुआत हुई और एक एक कर 11 लोगों की जिंदगी चली गयी. दुकानों को आग के हवाले किया जाने लगा, लूट की घटनाएं होने लगी.
नरोदा गांव से पूरे गुजरात में फैली थी हिंसा
ध्यान रहे कि इसी नरोदा गांव और नरोद पाटिया से गुजरात में दंगों की शुरुआत हुई थी, जिसमें नरोदा गांव में 11, जबकि नरोद पाटिया में 97 लोगों की मौत हुई थी, इस घटना के मुख्य आरोपी माया कोडनानी तब मोदी सरकार में मंत्री थी. बाद में गुजरात दंगे की जांच का जिम्मा एसआईटी को सौंप दिया गया, और एसआईटी के द्वारा माया कोडनानी को मुख्य आरोपी बनाया गया था.
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