देवघर(DEOGHAR): सावन का पवित्र माह शुरु होते ही सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से कांवर में जल भर कर बाबाधाम पहुंचने वाले कांवरियों का सिलसिला शुरु हो जाता है. कांधे पर कांवर और मुंह पर बोलबम और हर हर महादेव का बीज मंत्र के सहारे कांवरिया चल पड़ते है बाबाधाम की ओर. कहते है कांवर में जल भर बाबा धाम पहुंचने की यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है.
सावन को क्यों माना जाता है पवित्र और सर्वोतम मास
ऐसी मान्यता है कि सर्व प्रथम स्वयं रावण ने महारानी मंदोदरी के साथ भगवान भोले नाथ को प्रसन्न करने के लिए कांवर में जल भर कर पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया था. बाद में भगवान राम भी लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए कांवर में जल भर कर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करने यहां आये थे. देवघर के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित पंडित दुर्लभ मिश्र बताते है कि गंगा जब स्वर्ग से धरती पर उतरी थी तो ऋषिकेश में पहला कदम गंगा ने धरती पर श्रावण मास में ही रखा था. पवित्र लिंग पर श्रावण मास में गंगा जल से जलाभिषेक का यह भी एक खास महत्व है. श्रावण मास के इसी महत्व के कारण श्रद्धालु बड़ी संख्या मे बाबा का जलाभिषेक करने देवघर पहुंचते है. प्रकृति के दृष्टिकोण से भी श्रावण मास को जीवनदायिनी और लक्ष्मीस्वरुपा माना जाता है क्योंकि ग्रीष्म काल की तपिश झेल कर पृथ्वी इस माह में हरी-भरी हो जाती है और जीवन स्वरुपा अन्न का बीजारोपण भी इसी माह में होता है.
श्रावण में पवित्र ज्योतिर्लिग के जलाभिषेक का खास महत्व
जानकारों का मानना हैं कि श्रावण मास के इसी बहुआयामी स्वरुप के कारण इस माह को पवित्र और सर्वोतम मास माना जाता है. यही कारण है कि श्रावण में पवित्र ज्योतिर्लिग के जलाभिषेक का खास महत्व है और भक्तों को भी इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती. इस दौरान सुल्तानगंज स्थित उत्तर वाहिनी गंगा से गंगाजल लेकर कांवरिया का हुजूम देवघर की ओर आ जाता है. कहा जा सकता है कि गंगा मइया सुल्तानगंज से देवघर की ओर इन कांवरियों द्वारा लाए जल के माध्यम से चली आती है.
सभी पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से सर्वश्रेष्ठ कामना लिंग बैद्यनाथ धाम का नाम ऐसे परा
बाबा बैद्यनाथ धाम की गिनती देश के पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में की जाती है शास्त्रों में भी बैद्यनाथ धाम की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है. जानकारों के अनुसार इस चराचर जगत के स्वामी जो पञ्च तत्व के भी स्वामी होते है वही बैद्यनाथ कहलाते है. जानकारों के अनुसार हिंदी माह का पांचवा माह सावन माह होता है. इस ब्रहमांड का निर्माण भी पंच तत्व से हुआ है और भगवान शिव को इन पांच तत्वों का स्वामी माना जाता है. यही कारण है कि सावन में शिव अराधना का विशेष महत्व है.
बैद्यनाथ धाम स्थित पवित्र ज्योतिर्लिंग को मूल लिंग माना जाता है
देश के सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बैद्यनाथ धाम स्थित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के रुप में भी जाना जाता है. शास्त्रो के अनुसार आत्मलिंग से जिन बारह ज्योतिर्लिंग का प्रादुभाव हुआ उनमे बैद्यनाथ धाम स्थित पवित्र ज्योतिर्लिंग को मूल लिंग माना जाता है. जानकारों की माने तो देवघर में शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है. ऐसी मान्यता है कि सती का अंग जहां-जहां गिरा वहां उस अंग की रक्षा के लिए एक-एक भैरव की स्थापना हुयी और वही शक्तिपीठ कहलाया. देवघर में माता सती का अंग गिरा था और उसकी रक्षा के लिए स्थापित भैरव ही बैद्यनाथ है.
भैरव के नाम पर रखा गया "बैद्यनाथ" नाम
देवघर में शक्ति नवदुर्गा के रुप में और भैरव साक्षात शिव के रुप में विराजमान है. शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है. खास बात है कि माता सती का हृदय जिस जगह गिरा था वहीं पर पवित्र कामना लिंग स्थापित है. शिव पुराण के शक्ति खंड में इस बात का उल्लेख है कि माता सती के शरीर के 52 खंडों की रक्षा के लिए खुद भगवान शिव ने सभी जगहों पर भैरव को बैठाया था. देवघर में माता का हृदय गिरा था,इसलिए इसे हृदय पीठ या शक्ति पीठ की भी मान्यता है. इस हृदय पीठ की रक्षा के लिए भगवान शिव द्वारा जिस भैरव को बैठाया गया था,वही बैद्यनाथ हैं. जानकारों के अनुसार इसीलिए रावण जब शिवलिंग लेकर यहाँ पहुँचा तो ब्रह्मा और बिष्णु द्वारा भैरव के नाम पर इनका नाम बैद्यनाथ रखा गया.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा
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