टीएनपी डेस्क(TNP DESK): 25 अगस्त 2022. ये एक ऐसा दिन था, जब अचानक से झारखंड की राजनीति में उबाल आ गया. झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता की आंधी की ऐसी खबर चली कि लगा कि जैसे झारखंड में सरकार गिरने वाली है. तरह-तरह की अटकलें लगनी शुरू हो गई. दिन भर पत्रकारों की भीड़ राजभवन और सीएम आवास पर लगी रही और लोगों की नजर न्यूज चैनलों पर टिकी रही. मामला था सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े खनन लीज मामले के फैसला आने का.
दरअसल, 25 अगस्त 2022 को खनन लीज मामले में चुनाव आयोग ने अपना मन्तव्य राज्यपाल को सौंपा था. जिसके बाद आशंका जताई जा रही थी कि फैसला मुख्यमंत्री के खिलाफ आ सकता है और मुख्यमंत्री की सदस्यता रद्द हो सकती है.
तीन महीने के बाद भी राज्यपाल ने नहीं सुनाया फैसला
अब तीन महीने से ज्यादा बीत चुके हैं, मगर, राजभवन ने अपना फैसला अभी तक नहीं सुनाया है. ऐसे में लगातार सवाल उठते रहें कि आखिर राज्यपाल फैसला सुनाने में देरी क्यों कर रहे हैं. कहीं इसके पीछे कोई राजनीतिक मकसद तो नहीं, क्योंकि राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद होता है, और इसलिए राज्यपाल का फैसला किसी भी राजनीति से प्रेरित नहीं होता. मगर, फैसले में लगातार हो रही देरी के बाद राज्यपाल पर झामुमो सवाल उठाती रही. बीच-बीच में राज्यपाल द्वारा दिए गए बयान पर भी सवाल उठे. एक बार राज्यपाल ने बयान दिया कि “लिफाफा चिपक गया है, खुल ही नहीं रहा है” तो एक बार उन्होंने कह दिया कि “एटम बम फूटने वाला है.”
ऐसे में सवाल उठा रहा है कि तीन महीने के बाद भी राज्यपाल चुनाव आयोग का फैसला सार्वजनिक क्यों नहीं कर रहे हैं, क्या फैसला सुनाने के लिए राजभवन किसी मुहूर्त के इंतजार में है या फिर चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत सोरेन को क्लीन चीट दे दिया है. क्योंकि फैसले में हो रही देरी के के दोनों ही जवाब हो सकते हैं.
18 अगस्त को दलील हो चुकी थी पूरी
बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़े खनन लीज मामले में चुनाव आयोग में 18 अगस्त को दलील पूरी हो चुकी थी. इस मामले को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उठाया था. उन्होंने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर हेमंत सोरेन को विधायक पद से अयोग्य ठहराने की मांग की थी. बाद में इस मामले को राजभवन ने चुनाव आयोग को रेफर कर दिया था. उसी आधार पर सबसे पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से वेरिफाइड डॉक्टूमेंट्स की मांग की थी. इसके बाद आयोग में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की गई थी. दलील सुनने के बाद आयोग ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. पूरे बहस की कॉपी लिखित रूप में निर्वाचन आयोग को सौंप दिया गया था. इसके बाद आयोग ने 25 अगस्त को अपना फैसला राज्यपाल को भेज दिया था.
क्या है मामला?
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपने नाम पर खनन पट्टा लीज पर लिया है. उन पर यह आरोप भाजपा नेताओं ने लगाया था. भाजपा नेताओं ने इस मामले पर राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन भी सौंपा था और मुख्यमंत्री को अयोग्य ठहराने की मांग की थी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने अपने नाम पर रांची के अनगड़ा मौजा थाना नंबर 26, खाता नंबर 187 प्लॉट नंबर 482 में पत्थर खनन पट्टा की स्वीकृति ली है. हालांकि मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि उनके नाम पर कोई खनन पट्टा नहीं है.
कई बार राज्यपाल से फैसला सुनाने की झामुमो और सीएम ने की मांग
राज्यपाल द्वारा फैसले में देरी के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद इस बारे में कई बार बयान दे चुके हैं कि राज्यपाल जल्द से जल्द फैसला सार्वजनिक करें. राज्यपाल द्वारा फैसला देने में देरी करने के बाद हेमंत सोरेन दिल्ली गए थे. वहां उन्होंने चुनाव आयोग से फैसले की एक कॉपी मांगी थी. मगर, चुनाव आयोग ने सीएम की मांग का जवाब देते हुए कहा कि उन्हें फैसले की कॉपी नहीं दी जा सकती, क्योंकि ये दो संवैधानिक पदों के बीच का मामला है. इससे पहले सीएम हेमंत सोरेन ने खुद राज्यपाल से मुलाकात की थी. उस मुलाकात में भी सीएम हेमंत सोरेन ने फैसला जल्द सुनाने की मांग की थी. इससे पहले यूपीए का भी एक प्रतिनिधिमण्डल राज्यपाल से मिला था. मगर, राज्यपाल ने अभी तक फैसला नहीं सुनाया है.
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