लातेहार (LATEHAR): जिले के बालूमाथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर गुरुवार की शाम करीब सात बजे इलाजरत एक आदिवासी व्यक्ति के मौत के बाद शव को घर तक छोड़ने के लिए ना एंबुलेंस ना ही कोई वाहन दिया गया. ऐसे में मजबूर लाचार परिवार वाले शव को ठेला में लाद कर घर ले गए. मंगलवार शाम की ये घटना है , इलाके के एक भाजपा नेता ने भी स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों से आग्रह किया की किसी तरह से गरीब और हताश परिवार को मदद करे लेकिन अस्पताल कर्मियों का दिल नहीं पसीजा , अंततः लाश को परिजन किसी तरह ठेले पर लाद कर घर ले गए ,
क्या है पूरा मामला
बालूमाथ थाना क्षेत्र के बसिया पंचायत के टेमराबार के आदिवासी परिवार के चंदरु लोहरा की तबीयत खराब हो गई थी. परिजनों द्वारा उसे बालूमाथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. मौत के बाद चंदरु लोहरा के भतीजा टूलू लोहरा ने अस्पताल प्रबंधन से एंबुलेंस की मांग की, लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा एंबुलेंस का व्यवस्था नहीं कराया गया. टूलु लोहरा ने कहा कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा यह कहा गया कि हम लोगों के पास जो व्यवस्था है हम लोग दे रहे हैं. आप इसे जो सुविधा है उसी के हिसाब से शव ले जाइए. हम लोग गरीब परिवार के होने के कारण हम लोगो के पास प्राइवेट वाहन करने के लिए पैसा नहीं था. इस कारण हम लोग ठेला से शव को अपने घर ले जा रहे हैै.इस दौरान मुरपा मोड़ के पास बालूमाथ भाजपा नेता पूर्व उप-प्रमुख संजीव सिन्हा ने मृतक के परिजनों से बात की. वहीं प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर पुरुषोत्तम कुमार को एंबुलेंस नहीं देने की बाबत जानकारी मांगी. उसके बावजूद भी प्रभारी द्वारा एंबुलेंस देने में कोई रुचि नहीं दिखलाया गया और यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि अभी मेरा ड्यूटी नहीं है. इसलिए जिनका ड्यूटी है वह समझेंगे.
अस्पताल में एंबुलेंस होने के बावजूद भी नहीं दी गई सुविधा
बहरहाल, मामला जो भी हो एक आदिवासी व्यक्ति की मौत के बाद सरकारी एंबुलेंस व्यवस्था नहीं होना स्वास्थ्य विभाग के कार्यशैली पर प्रश्न उठने लगा है. वहीं दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है. ज्ञात हो कि जिस वक्त चंदरु लोहरा की मौत हुई थी उस वक्त बालूमाथ अस्पताल परिसर में एंबुलेंस खड़ा था.
राज्य के व्यवस्था पर बड़ा सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस आदिवासियों के नाम पर राज्य में राजनीति होती है , जिनके नाम पर सरकारे बनती है , जिस राज्य का मुख्यमंत्री आदिवासी हो अगर उसी के शासन में गरीब लाचार आदिवासियों की स्थिति ना सुधरे तो फिर शासन पर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर गरीब आदिवासियों की स्थिति कब बेहतर होगी !
रिपोर्ट: लातेहार ब्यूरो
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