टीएनपी डेस्क(TNP DESK): राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल आए दिन चर्चाओं में रहता है. कभी अपनी कुव्यवस्था हो तो कभी बदहाल सिस्टम को लेकर. रिम्स में अलग-अलग जिले से लोग अपना इलाज करवाने पहुंचते हैं लेकिन जब मरीज को यहां भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उन्हें उचित व्यवस्था नहीं मिल पाती सीटी स्कैन, एम आर आई, अल्ट्रासाउंड जैसी जांच के लिए मरीजों को जब संघर्ष करना पड़ता है तब भी यहां की व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा होता है. जब सवाल उठाते हैं तो जांच की बात होती है लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो पता.
रिम्स प्रबंधन ने फंड का नहीं कर पाया इस्तेमाल
आपको जानकर हैरानी होगी की रिम्स के खाते में 700 करोड़ का फंड है जिससे अस्पताल की व्यवस्था सुधारी जा सके. अस्पताल का मेंटेनेंस किया जा सके. जरूरी उपकरण और मशीन खरीदे जा सके, लेकिन जहां के प्रबंधक इन पैसों का भी यूटिलाइजेशन नहीं कर पा रहे हैं. जब सरकार ने आवंटित राशि के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट की मांग की तो रिम्स प्रबंधन ने बकाया राशि राजकीय कोष में वापस कर दी.
यहां खर्च किए जा सकते थे फंड के पैसे
अब आप सोच सकते हैं कि रिम्स के खाते में पैसे तो है लेकिन पैसे होने के बावजूद भी इसका इस्तेमाल सही चीजों के लिए नहीं किया जा रहा. जिस पैसे से वार्डों की मरम्मत की जा सकती थी, मरीजों के लिए बेड बनवाया जा सकते थे, आधुनिक उपकरण खरीदे जा सकते थे, जो मशीन खराब हो चुकी है उनका उनकी मरम्मत करवाई जा सकती थी या फिर नई मशीन ख़रीदी जा सालती थी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. पैसे अकाउंट में धरे के धरे रह गए. यह फंड मरीज की सुविधाओं में सुधार लाने पर भी खर्च किए जा सकते थे लेकिन हुआ कुछ नहीं.
रिम्स के निदेशक ने मामले में क्या कहा
जब यह मुद्दा उठा तो रिम्स के निदेशक ने काफी आसानी से इस मामले पर सफाई भी दे दी. रिम्स के निदेशक डॉक्टर राजकुमार ने इस मामले में कहा कि दो फाइनेंशियल ईयर तक पैसे का यूटिलाइजेशन किया जा सकता था लेकिन मेरे आने से पहले कुछ भी खरीदारी नहीं की गई. इस फाइनेंशियल ईयर में मैं करीब 51 करोड़ की खरीदारी की है और करीब 161 करोड़ की ख़रीद की प्रक्रिया चल रही है. कहा कि आवंटित फंड में पैसे बच जाते थे इसलिए इस बार सरकार से संतुलित बजट की मांग की गई है.
रिम्स प्रबंधक इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यवस्था को सुधारने में नहीं दिखा रहे दिलचस्पी
साल 2024 में रिम्स की इंफ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम की गड़बड़ियों पर हाई कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की थी और साथ ही यह भी टिप्पणी की थी कि अगर राज्य सरकार का स्वास्थ्य विभाग रिम्स की व्यवस्था को दुरुस्त करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है तो इसे बंद कर देना चाहिए. साथ ही रिम्स के निदेशक से जवाब भी मांगा गया था. कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई थी कि सामान्य मरीजों को बेड तक नहीं मिल पाता और जमीन पर उनका इलाज होता है. यहां इलाज के उपकरणों का मेंटेनेंस नहीं हो पाता और लंबे समय तक वह खराब रहती हैं. कोर्ट ने इस पर जवाब भी मांगा था. मामले में जब सुनवाई हुई तो रिम्स के डायरेक्टर ने बताया था कि पहल की जा रही है और उन्होंने रिम्स की व्यवस्था दुरुस्त करने की भी बात कही थी. लेकिन साल बीत जाने के बाद भी आज भी रिम्स की वही स्थिति है जो पहले थी. अब तो यह बात सच होती दिखाई दे रही है कि फंड होते हुए भी यहाँ का प्रबंधक इंफ्रास्ट्रक्चर और रिम्स की व्यवस्था को सुधारने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.