टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश की सर्वोच्च अदालत ने राम जन्म भूमि को 'अयोध्या बुद्ध विहार' घोषित करने वाली याचिका को सुनने से इंकार कर दिया है. सीजीआई डी.वाई.चंद्रचूड़ की अदालत ने कहा है कि देश की शीर्ष सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2019 में ही इस मुद्दे को निपटा दिया था.
याचिकाकर्ता का दावा, रामजन्म भूमि के उत्खनन के दौरान मिली थी बौद्ध कलाकृतियां
याचिकाकर्ता विनीत मौर्य का तर्क है कि राम जन्म भूमि के उत्खनन के दौरान इस स्थल से बौद्ध कलाकृतियां और संरचनाएं मिली थी,16वीं शताब्दी में बाबरी मस्जिद निर्माण के पहले तक यह स्थल एक बौद्ध बिहार था. इसी बौद्ध बिहार को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था. याचिकाकर्ता का दावा है कि यह एक बौद्ध स्थल है.
बौद्ध समुदाय को अपना पक्ष रखने की नहीं मिली अनुमति
याचिकाकर्ता का दावा था कि इस स्थल पर बौद्ध कलाकृतियां और संरचना मिलने के तथ्य को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी वर्ष 2010 में बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद के अपने फैसले दर्ज किया था. साथ ही इतिहासकारों, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और बाबरी मस्जिद विवाद में गवाहों के अनुसार भी उस स्थल पर बौद्ध स्थापत्य के साथ स्तूपों और स्तंभों के प्रमाण थें. लेकिन बौद्ध समुदाय के दावों के संबंध में कोई और निष्कर्ष नहीं निकाला गया. बौद्ध समुदाय के दायर किये गये आवेदनों को स्वीकार ही नहीं किया गया. जिसके कारण बौद्ध समुदाय के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपना तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सका और इस प्रकार वर्ष 2019 में यह स्थल हिंदू पक्षकारों को सौंप कर मंदिर निर्माण की स्वीकृति दे दी गयी.
राष्ट्रीय महत्व के पुरातात्विक स्थल घोषित करने की मांग
याचिकाकर्ता के द्वारा इसी आधार पर रामजन्म भूमि को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत राष्ट्रीय महत्व के एक पुरातात्विक स्थल घोषित करने की मांग की गयी थी.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार