टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- छत्तीसगढ़ में पहले तो भाजपा को विधानसभा चुनाव जीतने पर ही संशय के बादल मंडरा रहे थे. धुआंधार प्रचार और जोशीले तकरीरों के बावजूद किसी को बीजेपी की इतनी आसानी से जीत पर शायद ही एतबार था. बाते तो यहां तक हो रही थी कि भुपेश बघेल की मजबूत मौजूदगी से इस किला को ढहना भगवा पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. एग्जिट पोल से लेकर तमाम राजनीति के जानकार कांग्रेस को ही ज्यादा भाव और भरोसा जता रहे थे. जनतंत्र में जनता ही फैसला सुनाती है. 3 दिसबर को जब मतगणना हुई , तो भाजपा भारी पड़ी और तमाम अटकलों और कयासों के बाजार को थाम दिया. भाजपा ने प्रदेश में 54 सीट जीती, जबकि, कांग्रेस ने 34 सीट पर ही सिमट कर रह गई
भारतीय जनता पार्टी बहुमत लाने के बाद जश्न तो मना रही थी. इसके साथ ही सवाल खड़ा हो रहा था कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बनेगा. इसे लेकर एक हफ्ते का वक्त गुजर गया. मंथन और चितंन का लंबा दौरा चला . कयासों के बाजार में मुख्यमंत्री की रेस में रमन सिंह का भी नाम सबसे ऊपर था. साथ ही तीन बार प्रदेश के सीएम रहने से उनका दांवा भी मजबूत था. लेकिन, एक चिज भी साफ थी कि भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए ऐसे मुख्यमंत्री चुनना चाहती थी. जो आगे भी केन्द्र की सत्ता हासिल कराने में मदद कर सके. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की अच्छी-खासी आबादी को देखते हुए, विष्णुदेव साह को मौका दिया. जो छत्तीसगढ़ की राजनीति में लंबा तजुर्बा रखने के साथ-साथ सियासत की तमाम दांव-पेंच जानते हैं. जानकार और राजनीति के विश्लेषक इस बात को लेकर उतने हैरान नहीं थे. क्योंकि तकरीबन सभी को मालूम हो गया था कि कोई नया चेहरे को सूबे की कमान दी जाएगी. आखिरकार तप-तपाये विष्णुदेव सहाय इसमे खरे उतरे .
सरपंच से बनें मुख्यमंत्री
किसान परिवार में 21 फरवरी 1964 में जन्मे विष्णुदेव साय आदिवासी समुदाय से आते हैं. जो जशपुर जिले के बगिया गांव से आते हैं. इसी बगिया गांव से उनका सरपंच के तौर पर राजनीतिक सफर शुरु हुआ, जहां उन्हें एकतरफा और निर्विरोध सरपंच चुन लिए गये. इस आदिवासी नेता ने सरपंच बनने के बाद सियासत की पिच पर कभी बैकफुट पर बैटिंग नहीं की. लगातार अपनी पकड़ जनता के साथ-साथ संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं से बनाते रहे . साय 1990 में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा औऱ जीत हासिल की. इसके बाद 1998 तक विधायक बनें रहें. विधानसभा में अपनी दमदार आवाज रखने के बाद सोय को बीजेपी ने 1999 में पहला लोकसभा चुनाव लड़वाया, वहां भी उन्होंने जीत दर्ज की. इसके बाद उनके जीत का सिलसिला थमा नहीं, साल 2004 ,2009 और 2014 में शानदार जीत दर्ज कर दिल्ली पहुंचे . मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें इस्पात और खनन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई.
प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं सोय
विष्णुदेव साय राजनीतिक की धूंप-छाव को करीब से देखा. इस खूबी अच्छी तरह जानते है और वक्त के साथ रहकर अपनी बात औऱ कदम बढ़ाते हैं. इसी का नतीजा है कि आदिवासी समुदाय में बड़े नेता के तौर पर शुमार किए जाते है. उनका संगठन में काम करने का भी अच्छा-खासा अनुभव है. संघ परिवार के भी साय चेहते हैं. इसी का नतीजा है कि एक स्वाभाविक पसंद मुख्यमंत्री के तौर पर बनकर विष्णुदेव उभरे औऱ उनके नाम की मुहर लगायी गई. छत्तीसगढ़ में भाजपा शुरु से मजबूत रही है. कांग्रेस और बीजेपी में ही टक्कर राज्य के निर्माण के साथ रहा है . विष्णुदेव साय भारतीय जनता पार्टी के लिए तुरुप का इक्का साबित होते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के वजूद में आने के छह साल बाद ही साय भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया . 2011 में एकबार फिर उन्हें चुना गया.
एक अनुभवी राजनीतिज्ञ विष्णुदेव सोय आज उस मुकाम पर पहुंचने के लिए सियासत के मैदान में काफी लंबी दौड़ लगायी. खूब मेहनत औऱ पसीना बहाया. तब जाकर यहां तक पहुंचे, उनके नाम पर शायद ही किसी को कोई एतराज हो. सोय के सीएम के तौर पर चयन के बाद भारतीय जनता पार्टी राजनीति की तस्वीर भी बदल रही है. उनकी मंशा औऱ दुरगामी सोच यही है कि यहां कोई भी कुछ बन सकता है. विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यही साबित कर दिया.