TNP DESK: बिहार का काराकाट सीट. यह लोकसभा सीट भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण खासी चर्चे में है. इस इलाके को चावल का कटोरा भी कहा जाता है. यहां चावल अधिक होता है. इस इलाके के चावल की कुछ विशेषताएं भी होती है. यह लोकसभा सीट बिहार की राजधानी पटना से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर और दिल्ली से लगभग 1000 किलोमीटर की दूरी पर है. 2009 में अस्तित्व में आए इस लोकसभा क्षेत्र को चावल के लिए ही जाना जाता है. इस इलाके में लगभग 400 से अधिक राइस मील है. इसके पहले इस इलाके को बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र से जाना जाता था. जो भी हो, लेकिन यह सीट पूरी तरह से सुर्खियों में है.
पवन सिंह कहते -लोगो का सपोर्ट ही उनकी थाती
भोजपुरी पवन स्टार पवन सिंह कहते हैं कि माता, बहनों, बुजुर्गों और युवाओं का समर्थन और साथ ही उनकी पूंजी है. इसके अलावे उनके पास कुछ भी नहीं है. यह अलग बात है कि पवन सिंह के चुनाव में खड़ा होने से उपेंद्र कुशवाहा की उलझने बढ़ गई है. पवन सिंह को चुनाव से बैठाने की कोशिश भी हुई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. कारा काट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के कारण भाजपा ने पार्टी से पवन सिंह को निष्कासित कर दिया है. भाजपा ने पहले उन्हें धनबाद से सटे बंगाल के आसनसोल लोकसभा सीट से टिकट दिया था. लेकिन इस सीट पर चुनाव लड़ने से पवन सिंह ने इनकार कर दिया और उस समय उन्होंने घोषणा की थी कि वह चुनाव तो जरूर लड़ेंगे. उसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. काराकाट से तीन प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे है. एनडीए की ओर से राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा खड़े हैं तो भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार है.
इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार भी है मैदान में
इंडिया गठबंधन की ओर से माले उम्मीदवार राजाराम सिंह भी किस्मत आजमा रहे है. उपेंद्र कुशवाहा बिहार के कद्दावर राजनेता है. एनडीए गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक है. एनडीए ने बिहार में राष्ट्रीय लोक मोर्चा को इकलौती सीट दी है, जिस पर खुद उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे है. उपेंद्र कुशवाहा 1984 में युवा लोकदल से राजनीति की शुरुआत की थी और संगठन के महासचिव बनाए गए थे. इसके बाद वह युवा लोक दल के राष्ट्रीय महासचिव बने. 2000 में वह विधानसभा चुनाव जीते. 2004 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने. उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी बताया जाता है. एक समय उन्हें नीतीश कुमार का स्वाभाविक बारिश भी माना जाने लगा था, लेकिन दल -बदल बार-बार करने के कारण यह अवसर उनके हाथ से चला गया. समता पार्टी के जदयू में परिवर्तित होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा जदयू में शामिल हुए. इसके बाद भी उनका दलों में आना -जाना लगा रहा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो