रांची (RANCHI): भले ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले 4 दिनों से दिल्ली दौरे पर हो पर उनके झारखंड में ना होने के बावजूद भी राज्य में उन्हें लेकर कई चर्चाएँ लगाई जा रही हैं. ऐसे में उनके साथ उनकी पत्नी और गांडेय विधायक कल्पना सोरेन भी दिल्ली में ही मौजूद हैं. अब सोचने वाली बात यहाँ यह है की बिना किसी सरकारी कार्यक्रम के मुख्यमंत्री का इतने लंबे समय तक दिल्ली में रहना, राज्य में चर्चाएँ बटोर रहा है. जिससे इन दिनों सियासी गलियारे में तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है.
अब यहाँ सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, इतने दिनों से दिल्ली में कर क्या रहे हैं? ऐसे में कुछ मीडिया रेपोर्ट्स की माने तो आज यानि की बुधवार को, मुख्यमंत्री दिल्ली से रांची लौटने वाले हैं. हालांकि मंगलवार की शाम को भी एयरपोर्ट से सीएम आवास तक के रूट लाइन को क्लियर करने का आदेश जारी हुआ था लेकिन अचानक कैंसिल हो गया.
दिल्ली में मुख्यमंत्री के लगातार ठहराव को लेकर झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडे ने उन्हें फिलहाल इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा है कि झारखंड में महागठबंधन की सरकार जनादेश के आधार पर बनी है और अभी किसी तरह के कयासों पर वह कुछ नहीं कह सकते.
दरअसल, बिहार चुनाव के दौरान इंडिया गठबंधन में झामुमो को सीटें नहीं मिलने से नाराजगी सामने आई थी. पार्टी ने कहा था कि इस पूरी प्रक्रिया की समीक्षा की जाएगी, लेकिन इसके बाद से झामुमो चुप है. इसी बीच, 17 नवंबर को भाजपा नेता अजय आलोक के एक ट्वीट ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी. उन्होंने लिखा, “अब नया बम झारखंड में, हेमंत अब जीवंत होंगे.” हालांकि यह बात कुछ ही समय में शांत हो गई, लेकिन चर्चा का ताप कम नहीं हुआ.
अब मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे ने अटकलों को और हवा दे दी है. कहा जा रहा है कि दिल्ली में उनकी भाजपा के शीर्ष नेताओं से मुलाकात हुई है. भाजपा के कुछ नेता, भले ही नाम नहीं बता रहे, लेकिन अपने स्तर पर संभावनाओं को लेकर अनुमान जता रहे हैं. राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि भाजपा के दो–तीन नेताओं को इस फॉर्मूले से आपत्ति है और उन्हें पीछे हटने का संकेत दिया गया है. यहां तक कहा जा रहा है कि बातचीत अब मंत्रालयों और पोर्टफोलियो तक पहुंच चुकी है, और खरमास समाप्त होते ही स्थिति स्पष्ट हो सकती है.
इसी बीच कांग्रेस भी सतर्क है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू ने पहले ही चेताया था कि झामुमो तीसरे विकल्प की तलाश में हो सकता है. उन्होंने कहा कि गठबंधन में तालमेल जरूरी होता है और बिहार में सीटों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर दोष मढ़ना उचित नहीं है. उनका कहना था कि झारखंड में झामुमो बड़े भाई की भूमिका में है और निर्णय वही लेते हैं, ऐसे में किसी मतभेद पर गहराई से विचार ज़रूरी है.
अब देखना यह है कि ये सारी चर्चाएं सिर्फ अनुमान हैं या सचमुच कोई बड़ा बदलाव होने वाला है. राजनीति केवल गणित से नहीं चलती, बल्कि परिस्थितियों और लाभ–हानि के समीकरणों से तय होती है. हेमंत सोरेन को आर्थिक प्रबंधन के लिए केंद्र से सामंजस्य की जरूरत है, वहीं भाजपा आदिवासी वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है. ऐसे में दोनों दलों के बीच नए गठजोड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
