रांची(RANCHI)- केन्द्र सरकार ने भुइंहर मुंडा जाति को जनजाति मानने से इंकार कर दिया है, हेमंत सरकार के द्वारा भेजे गये प्रस्ताव को खारीज करते हुए केन्द्र ने कहा है कि राज्य के द्वारा भेजे गये प्रस्ताव में समकालिन जनजातिय विशेषताओं के साथ अन्य बिन्दुओं का उल्लेख नहीं किया गया है. दूसरी जनजातीयों के मुकाबले उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति की चर्चा नहीं की गई है.
राज्य सरकार ने 1926 में प्रकाशित गजेटियर का दिया था हवाला
यहां बता दें कि राज्य सरकार ने केन्द्र को भेजी गयी अपनी अनुशंसा में भुइंहर जाति को मुंडा जनजाति का एक हिस्सा बताया था. उसकी उपजाति बतायी थी, इसके पक्ष में राज्य सरकार के द्वारा कई संदर्भों और पुस्तकों का हवाला दिया गया था. मुख्य रुप से 1926 में प्रकाशित गजेटियर का हवाला दिया गया था, बिहार-उड़िसा में प्रकाशित इस गजेटियर में यह दावा किया गया है कि भुइंहर जनजाति मुंडा जनजाति का ही एक उप जनजाति है, जो मुख्य रुप से लातेहार जिले में निवास करती है. इस जनजाति की भी कई उपजातियां है, जिसे बिरहोर, भूमिज, नगेशिया और कोरबा के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही सीएनटी एक्ट में कई हिस्सों का भी हवाला दिया गया था.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने आगरा दस्तावेज का दिया हवाला
जनजातीय मामलों के केन्द्रीय मंत्रालय ने राज्य सरकार की अनुशंसा को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को भेज दिया. जिसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने इस विचार करने के बाद राज्य सरकार को भेजे गये अपनी रिपोर्ट में कहा कि भुंइहर और भूमिहार शब्द का पहली बार उपयोग आगरा और अवध के दस्तावेज में किया गया है. यह दो शब्दों के मेल से बना है, पहला शब्द भूमि और दूसरा शब्द हारा है, जिसका अर्थ है भूमि कब्जा करने वाला, यह जाति ब्राहमण वर्ग का एक हिस्सा है.